श्रुति सेठ ने विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर 'कोटो' पर थैरेपी की भूमिका को बताया महत्वपूर्ण

Updated: 10 Oct, 2024 01:42 PM

shruti seth said the role of therapy on  koto  is important

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (World Mental Health Day) के मौके पर जानी-मानी एक्ट्रेस और सर्टिफाइड मेंटल वेलनेस एक्सपर्ट श्रुति सेठ ने मौजूदा समय में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देने की अहमियत को लेकर बात की।

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (World Mental Health Day) के मौके पर जानी-मानी एक्ट्रेस और सर्टिफाइड मेंटल वेलनेस एक्सपर्ट श्रुति सेठ ने मौजूदा समय में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देने की अहमियत को लेकर बात की। सिर्फ़ महिलाओं के सोशल कम्युनिटी प्लैटफ़ॉर्म ‘कोटो’ पर अपनी कम्यूनिटी “आई विश आई न्यू दिस सूनर” की मदद से इस चुनौती को हराने वाली श्रुति सेठ ने कहा कि खास तौर पर महिलाएं अपने मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी जटिलताओं को बहुत हल्के में लेती हैं।

मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े अपने निजी अनुभव के बारे में बात करते हुए श्रुति ने कहा, “एक अभिनेत्री के तौर पर मेरी जिंदगी बहुत सारी चिंताओं से घिर गई थी। पिछले 25 साल से मुझे इस बात का डर लगा रहता था कि पता नहीं कब मुझे काम मिलना बंद हो जाएगा। मैं एक अनिश्चितता (uncertainty)-भरी ज़िंदगी जी रही थी जिसमें मेरे पास तय कमाई नहीं थी और इससे कुछ चिंता होती ही है। कई बार मुझे ऐसा महसूस होता था कि मुझे किसी के साथ इसे शेयर करने की जरूरत है। कुछ परिवार से जुड़े मुद्दे थे, मेरे काम और करियर की परेशानियां थीं, बच्चे को जन्म देने के बाद होने वाला डिप्रेशन था, बेटी के जन्म के बाद मेरे पति के साथ मेरा रिश्ते के बदले समीकरण थे और इनके अलावा भी बहुत-सी बातें थीं। आपके प्रियजन और परिजन जितना उनसे हो सकती है उतनी मदद करते हैं लेकिन फिर भी आपको एक डॉक्टर (थेरेपिस्ट) की जरूरत होती है जो आपको अपनी उन चीज़ों और खासियतों की याद दिला सके जो चिंताओं के बीच होने के कारण शायद आप भुला बैठे हैं”। 

श्रुति ने आगे कहा कि मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करते हुए ‘ट्रिगर’, ‘ट्रॉमा’, ‘ऐंग्ज़ाइटी’ और ‘स्ट्रेस’ जैसे शब्दों के बिना अपना हाल बता पाना बहुत मुश्किल होता है। श्रुति कहती हैं, 'लोग समझ नहीं पाते हैं कि इस स्थिति में व्यक्ति खुद को कितना ज़्यादा कमजोर पाता है। हर किसी को ज़िंदगी में तनाव महसूस होता है, तब व्यक्ति का दिल जोर से धड़कता है, एड्रेनेलिन हार्मोन आपके शरीर में दौड़ने लगता है और आपकी सास और भी गहरी हो जाती है। हालांकि ये सभी लक्षण वर्कआउट के दौरान भी दिखते हैं तो इसकी तरफ़ व्यक्ति का ध्यान तब ही जा पाता है जब तनाव की वजह से रोज की जिंदगी या रोजमर्रा के कामों पर असर पड़ने लगता है। मुझे पता है कि महिलाएं इस स्थिति में कितनी अकेली होती हैं और मानसिक स्वास्थ्य की चुनौती से निपटने के लिए रास्ते खोजने में पुरुषों के मुकाबले उनकी चुनौती इसलिए ज़्यादा बड़ी होती है। मुझे लगता है कि ऐसी स्थिति में महीने में कम से कम एक बार तो डॉक्टर से परामर्श (Counseling) लेना चाहिए और अगर यह जरूरी नहीं हो तो दो या तीन महीने में कम से कम एक बार तो उनसे मिलना चाहिए। इस सिलसिले में ‘कोटो’ पर मिलने वाला लाइव परामर्श बहुत महत्वपूर्ण और अहम है। इस प्लैटफ़ॉर्म पर महिलाओं को उनकी स्पेस, सहजता और बिना अपनी पहचान उजागर किए खुलकर अपनी बात कहने का मौका मिलता है। उन्हें यह डर नहीं होता कि लोग उनके बारे में क्या राय बनाएंगे। यह बहुत ही अच्छा और अहम मंच है जहां लोग अपने मन की उलझनों को बता सकते हैं, दिल की भड़ास निकाल सकते हैं, चीज़ों को देखने का नया नजरिया पा सकते हैं और अपनी मुश्किलों का एक तार्किक (logical) हल उन्हें मिलता है'।

Source: Navodaya Times

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