ड्रैगन की गिद्ध दृष्टि अब अफ्रीकी देशों पर, विकास की आढ़ में अफ्रीका में ऋण जाल बिछा रहा चीन

Edited By Tanuja,Updated: 26 Sep, 2024 04:52 PM

africa should be cautious of china

हाल ही में बीजिंग (Bejing) में हुए 'चीन-अफ्रीका सहयोग मंच' (FOCAC) के नौवें मंत्रीस्तरीय सम्मेलन ने एक बार फिर चीन और अफ्रीका...

International Desk: हाल ही में बीजिंग (Bejing) में हुए 'चीन-अफ्रीका सहयोग मंच' (FOCAC) के नौवें मंत्रीस्तरीय सम्मेलन ने एक बार फिर चीन और अफ्रीका के संबंधों में मौजूद जटिलताओं और विरोधाभासों को उजागर किया है।  चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने $51 अरब के निवेश पैकेज और "साझा समृद्धि" के वादों के साथ आकर्षक घोषणाएँ कीं, लेकिन करीब से देखने पर यह स्पष्ट होता है कि यह रिश्ता असंतुलन और अफ्रीका की बढ़ती निर्भरता से भरा हुआ है। 24 वर्षों से चीन लगातार इस मंच के जरिए अपने हित साध रहा है, जबकि अफ्रीकी देशों की संप्रभुता और दीर्घकालिक विकास पर खतरा मंडरा रहा है।

 

चीन-अफ्रीका संबंधों का असल सच
बीजिंग डिक्लेरेशन के जरिए एक “साझा भविष्य” का सपना दिखाया गया है, लेकिन यह भविष्य चीन के पक्ष में झुका हुआ है। अफ्रीकी देशों के लिए यह आर्थिक जाल साबित हो सकता है। चीनी निवेश के वादों के बावजूद, अफ्रीका को आर्थिक तौर पर अधिक कुछ हासिल नहीं हुआ है। चीन पिछले एक दशक से अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, लेकिन इसका अधिकांश लाभ चीन को ही मिल रहा है।

 

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव   जाल
चीन का बहुप्रचारित 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' (BRI), जिसे अफ्रीका की आधारभूत संरचना को सुधारने के लिए बताया जाता है, असल में कर्ज के जाल का हिस्सा है। ज़ाम्बिया और घाना जैसे देशों ने भारी चीनी कर्ज में डूबने के बाद अपने कर्ज का भुगतान करने में असमर्थता जताई है, जिससे साफ है कि चीन के वित्तीय सहयोग की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।

 

छोटे प्रोजेक्ट्स का मकसद
हाल ही में चीन ने “छोटे और खूबसूरत” प्रोजेक्ट्स पर जोर देना शुरू किया है, जो उसकी आर्थिक मंदी का परिणाम है। हालांकि, यह कदम कम जोखिम में प्रभाव बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा है। 2016 में अफ्रीका में चीन का निवेश $28 अरब से घटकर 2022 में केवल $1 अरब रह गया, जिससे कई अफ्रीकी देशों के अधूरे प्रोजेक्ट्स अटक गए हैं।

 

 अफ्रीकी संघ की चेतावनी
अफ्रीकी संघ ने 'चीन-अफ्रीका आर्थिक साझेदारी समझौते' (CAEPA) को लेकर चिंता जाहिर की है, क्योंकि इससे 'अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र' (AfCFTA) और अफ्रीका की औद्योगिकीकरण योजनाओं पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि अफ्रीकी देशों को चीन की “विभाजन और शासन” रणनीति से सतर्क रहना चाहिए और सामूहिक रूप से बातचीत करनी चाहिए।


 
 चीन के वादों के पीछे साजिश
अफ्रीकी नेताओं को यह समझने की जरूरत है कि चीन के वादों के पीछे उसके अपने आर्थिक और राजनीतिक हित छिपे हैं। अफ्रीका को अपनी औद्योगिकीकरण की दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए और कच्चे माल की बजाय तैयार उत्पादों का निर्यात बढ़ाना चाहिए। चीन द्वारा 'वैश्विक सुरक्षा पहल' और 'वैश्विक सभ्यता पहल' जैसी योजनाओं पर भी अफ्रीकी देशों को सावधानी से विचार करना होगा, ताकि उनकी संप्रभुता और स्वतंत्रता कायम रह सके।

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