Edited By Yaspal,Updated: 20 May, 2024 08:00 PM
ब्रिटेन के संक्रमित रक्त प्रकरण की जांच में सोमवार को पाया गया कि अधिकारियों और लोक स्वास्थ्य सेवा ने जानकारी रहने के बावजूद हजारों मरीजों को संदूषित रक्त के जरिये जानलेवा संक्रमण कराया।
इंटरनेशनल डेस्कः ब्रिटेन के संक्रमित रक्त प्रकरण की जांच में सोमवार को पाया गया कि अधिकारियों और लोक स्वास्थ्य सेवा ने जानकारी रहने के बावजूद हजारों मरीजों को संदूषित रक्त के जरिये जानलेवा संक्रमण कराया। यह माना जाता है कि ब्रिटेन में, 1970 के दशक से लेकर 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों तक एचआईवी या हेपटाइटिस से संक्रमित रक्त आधान करने से करीब 3,000 लोगों की मौत हुई। इस प्रकरण को 1948 से ब्रिटेन की सरकार संचालित राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) के इतिहास में सबसे घातक आपदा माना जाता है।
जांच समिति की अध्यक्षता करने वाले पूर्व न्यायाधीश ब्रायन लैंगस्टाफ ने आपदा को टालने में नाकाम रहने के लिए तत्कालीन सरकारों और मेडिकल पेशेवरों की आलोचना की है। उन्होंने पाया कि आपदा को छिपाने के लिए जानबूझ कर प्रयास किये गए और सरकारी अधिकारियों द्वारा सबूत नष्ट करने के साक्ष्य हैं।
लैंगस्टाफ ने कहा, ‘‘यह आपदा एक दुर्घटना नहीं थी। संक्रमण इसलिए हुए कि प्राधिकार-चिकित्सक, रक्त सेवा प्रदाता और तत्कालीन सरकारों ने मरीजों की सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी।'' प्रभावित हुए ज्यादातर लोग ‘हेमोफिलिया' से ग्रसित थे। इसके चलते रक्त में थक्का बनना कम हो जाता है। 1970 के दशक में मरीजों को नया उपचार दिया गया जिसे ब्रिटेन ने अमेरिका से अपनाया था। कुछ प्लाज्मा, कैदियों सहित ऐसे लोगों के थे जिन्हें रक्त के एवज में भुगतान किया गया था।
जांच रिपोर्ट के अनुसार, करीब 1,250 लोग रक्स्राव की समस्याओं से ग्रसित थे जिनमें 380 बच्चे थे। ये लोग एचआईवी वाले रक्त आधान करने से संक्रमित हुए थे। उनमें से तीन-चौथाई की मौत हो गई, जबकि 5,000 लोग ‘हेपटाइटिस सी' से ग्रसित हो गए जो एक प्रकार का यकृत संक्रमण है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बीच, रक्त आधान करने पर करीब 26,800 अन्य लोग भी ‘हेपटाइटिस सी' से संक्रमित हुए। इस प्रकरण पर, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के सोमवार देर शाम खेद व्यक्त करने की उम्मीद है और अधिकारियों द्वारा करीब 12.7 अरब अमेरिकी डॉलर के मुआवजे की घोषणा करने की संभावना है। करीब 1,500 पीड़ितों का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता डेस कोलिन्स ने रिपोर्ट के प्रकाशन को ‘‘सच्चाई का दिन'' करार दिया।