Edited By Tanuja,Updated: 14 Oct, 2024 06:26 PM
चीन का बढ़ता प्रभाव अब सिर्फ नेपाल की राजनीति और अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि तिब्बती शरणार्थियों के जीवन पर भी इसका गहरा असर पड़...
Bejing: चीन का बढ़ता प्रभाव अब सिर्फ नेपाल की राजनीति और अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि तिब्बती शरणार्थियों के जीवन पर भी इसका गहरा असर पड़ रहा है। नेपाल में लगभग 10,000 तिब्बती शरणार्थियों के लिए हालात अब दिन-ब-दिन मुश्किल होते जा रहे हैं। इस साल, मैंने नेपाल में एक महीने बिताया और तिब्बती शरणार्थी शिविरों का दौरा किया, जहां मैंने देखा कि चीन के बढ़ते दबाव से तिब्बतियों की सांस्कृतिक स्वतंत्रता खतरे में है। नेपाल में चीन द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं की बाढ़ आ गई है। लुम्बिनी और पोखरा में क्षेत्रीय हवाई अड्डों के निर्माण से लेकर इलेक्ट्रिक बसों की शुरुआत तक, हर जगह चीनी प्रभाव दिखाई दे रहा है।
इन परियोजनाओं से नेपाल को अल्पकालिक आर्थिक लाभ मिल सकते हैं, लेकिन इसकी बड़ी कीमत नेपाल की स्वतंत्रता के रूप में चुकानी पड़ रही है। नेपाल, जो वर्षों से भारत और चीन के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा था, अब तेजी से चीनी प्रभाव में फंसता जा रहा है। चीन की आर्थिक मदद से नेपाल की नीतियों में बदलाव हो रहा है, जो उसके दीर्घकालिक संप्रभुता के लिए चिंता का विषय बन गया है। इसका सबसे बड़ा असर तिब्बती शरणार्थी समुदाय पर पड़ा है। जो तिब्बती कभी अपने देश से भागकर नेपाल आए थे, अब उन्हें नेपाल में भी सांस्कृतिक दमन का सामना करना पड़ रहा है। तिब्बती पहचान के प्रतीक, जैसे 'फ्री तिब्बत' का टी-शर्ट पहनना, तिब्बती झंडा लहराना या पारंपरिक सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेना, अब मुश्किल हो गया है।
स्थानीय प्रशासन, जो संभवतः चीनी दबाव के तहत काम कर रहा है, तिब्बती सांस्कृतिक कार्यक्रमों को रोकने लगा है। एक ऐसा सांस्कृतिक कार्यक्रम जो खतरे में है, वह है ल्हाकार (सफेद बुधवार)। यह तिब्बती गर्व और पहचान की साप्ताहिक अभिव्यक्ति है। हर बुधवार, तिब्बती लोग अपनी भाषा बोलते हैं, पारंपरिक पोशाक पहनते हैं और तिब्बती स्वामित्व वाले व्यवसायों का समर्थन करते हैं। लेकिन अब यह भी मुश्किल हो गया है, क्योंकि चीन के प्रभाव में नेपाल में तिब्बतियों के लिए अपनी परंपराओं को जीवित रखना कठिन हो गया है। यह स्थिति तिब्बती शरणार्थियों के मौलिक अधिकारों पर सीधा हमला है। तिब्बती समुदाय, जो नेपाल में शांति और स्वतंत्रता की तलाश में आए थे, अब खुद को उसी तरह के दमन का शिकार पा रहे हैं, जिससे वे बचने के लिए भागे थे।