Edited By Tanuja,Updated: 24 Nov, 2024 03:05 PM
कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (CPR) की मौजूदा ट्रेनिंग प्रक्रिया महिलाओं की जान बचाने में कम प्रभावी साबित हो रही है। मेलबर्न के रॉयल वुमन हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया कि ...
International Desk: कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (CPR) की मौजूदा ट्रेनिंग प्रक्रिया महिलाओं की जान बचाने में कम प्रभावी साबित हो रही है। मेलबर्न के रॉयल वुमन हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया कि पुरुषों की शारीरिक बनावट पर आधारित मानेकिन मॉडल्स का उपयोग महिलाओं को CPR सिखाने में बाधा बन सकता है। मेलबर्न के वैज्ञानिकों की इस खोज ने CPR ट्रेनिंग के मौजूदा मानकों में सुधार की आवश्यकता को उजागर किया है। इस दिशा में कदम उठाने से न केवल महिलाओं की जान बचाई जा सकेगी, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं में लैंगिक समानता भी स्थापित होगी।
महिलाओं के लिए चुनौती
दुनियाभर में उपयोग होने वाले 20 मानेकिन मॉडल्स का विश्लेषण करने पर पाया गया कि सिर्फ एक मॉडल महिलाओं की शारीरिक बनावट को दर्शाता है। आठ मॉडल्स को पुरुष के रूप में पहचाना गया, जबकि सात मॉडल्स का कोई स्पष्ट लिंग नहीं था। इनमें अधिकांश के सीने चपटे (स्तनरहित) थे। शोधकर्ताओं का कहना है कि महिलाओं और पुरुषों के लिए सीपीआर देने की तकनीक एक जैसी होती है, लेकिन शरीर की बनावट में अंतर के कारण ट्रेनिंग के फायदे अलग हो सकते हैं।
समाधान और सुझाव
वैज्ञानिकों ने सरकारों और स्वास्थ्य संगठनों से आग्रह किया है कि वे ऐसे नियम और मानेकिन मॉडल्स विकसित करें जो पुरुषों और महिलाओं दोनों की शारीरिक बनावट को ध्यान में रखें। महिला शरीर रचना के अनुरूप मॉडल्स से सीपीआर ट्रेनिंग को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि ट्रेनिंग में दोनों लिंगों की समान भागीदारी और उनकी विशेषताओं को महत्व दिया जाए।
क्यों है यह अहम?
महिलाओं को सही सीपीआर न मिल पाने का मतलब है कि आपात स्थितियों में उनकी जान बचने की संभावना कम हो सकती है। इस शोध से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाने का अवसर मिलता है।