Edited By Tanuja,Updated: 01 Feb, 2025 07:03 PM
बीते 10 जनवरी को Deepseek ने अपना पहला मुफ्त चैटबॉट ऐप लॉन्च किया, जिसके बाद इसने स्टॉक बाजार में एनवीडिया जैसी दिग्गज कंपनी को भारी नुकसान पहुंचाया। लेकिन शोधकर्ताओं की मानें...
International Desk: बीते 10 जनवरी को Deepseek ने अपना पहला मुफ्त चैटबॉट ऐप लॉन्च किया, जिसके बाद इसने स्टॉक बाजार में एनवीडिया जैसी दिग्गज कंपनी को भारी नुकसान पहुंचाया। लेकिन शोधकर्ताओं की मानें तो यह चैटबॉट न केवल चीनी सत्ताधारी पार्टी का प्रोपोगैंडा फैला रहा है, बल्कि गलत जानकारी भी दे रहा है। इससे वैश्विक स्तर पर जनता की राय प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई है।
चीन के नजरिए को पेश करता है Deepseek
न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, डीपसीक एक एआई आधारित प्लेटफॉर्म है, जिसका उपयोग करने पर यह अक्सर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के दृष्टिकोण को ही बढ़ावा देता है। सीधे शब्दों में कहें तो यह एक ऐसा टूल है जो चीनी सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम कर रहा है। न्यूजगार्ड और अन्य संगठनों के शोधकर्ताओं ने पाया कि डीपसीक जानबूझकर तथ्यों से छेड़छाड़ कर रहा है। उदाहरण के तौर पर, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर की ताइवान पर टिप्पणी और झिंजियांग के हालात से जुड़ी जानकारी को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है।
यह चैटबॉट उइगरों पर हो रहे दमन, कोविड-19 महामारी और अन्य संवेदनशील मुद्दों पर चीनी सरकार की आधिकारिक लाइन को ही दोहराता है। यह टिकटॉक के संभावित खतरों को भी उजागर करता है और दिखाता है कि चीन किस तरह से तकनीक के जरिए वैश्विक धारणाओं को प्रभावित कर रहा है। डिजिटल रिसर्च कंपनी ग्राफिका के चीफ रिसर्च ऑफिसर जैक स्टब्स ने कहा कि चीन सूचना अभियानों में नई तकनीकों का तेजी से फायदा उठा रहा है। न्यूजगार्ड की जांच में पाया गया कि डीपसीक द्वारा दिए गए 80% जवाब चीन के विचारों से मेल खाते हैं।
संवेदनशील मुद्दों पर चुप्पी
इसके अलावा, एक तिहाई उत्तर पूरी तरह से झूठे पाए गए। उदाहरण के तौर पर, बुचा नरसंहार से जुड़ी जानकारी मांगने पर इसने चीनी अधिकारियों के बयान दोहराए और सीधी टिप्पणी करने से बचते हुए, निर्णायक सबूत की जरूरत बताई। Deepseek कई संवेदनशील मुद्दों जैसे कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, तियानमेन चौक और ताइवान पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं देता। यह एआई टूल चीनी सरकार के सूचना नियंत्रण के बड़े एजेंडे का हिस्सा लगता है, जो वैश्विक स्तर पर प्रोपोगैंडा को बढ़ावा दे सकता है।