COP29 समिट में दिल्ली प्रदूषण का मुद्दा रहा हावी, भारत को मीथेन- ब्लैक कार्बन पर लगाम लगाने की मिली सलाह

Edited By Tanuja,Updated: 14 Nov, 2024 04:54 PM

delhi pollution issue dominated the cop29 summit india was advised

दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बदतर होने के बाद यहां COP29 जलवायु सम्मेलन में विशेषज्ञों ने भारत से मीथेन और ब्लैक कार्बन जैसे अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों (SLCP) को कम करने का आग्रह किया...

Baku: दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बदतर होने के बाद यहां COP29 जलवायु सम्मेलन में विशेषज्ञों ने भारत से मीथेन और ब्लैक कार्बन जैसे अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों (SLCP) को कम करने का आग्रह किया, जो वायु गुणवत्ता में गिरावट और ग्लोबल वार्मिंग दोनों के लिए प्रमुख कारक होते हैं। अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक (SLCP) ग्रीनहाउस गैसों और वायु प्रदूषकों का एक समूह होता है जो जलवायु को निकट अवधि में गर्म करता है और वायु की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। एसएलसीपी में ब्लैक कार्बन, मीथेन, ग्राउंड-लेवल ओजोन और हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) शामिल हैं।

 

नई दिल्ली की वायु गुणवत्ता इस सीजन में पहली बार 'गंभीर' स्तर पर पहुंच गई, बुधवार को वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 418 तक पहुंच गया। ‘इंस्टीट्यूट फॉर गवर्नेंस एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट' (IGSD) में भारत की कार्यक्रम निदेशक जेरीन ओशो और IGSD के अध्यक्ष ड्यूरवुड जेल्के ने बताया कि SLCP में कटौती की रणनीतियां प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग से निपटने में कैसे मदद कर सकती हैं। ड्यूरवुड जेल्के ने बताया कि वर्तमान वार्मिंग के लिए आधा जिम्मेदार SLCP है। जेलके ने  बताया, "अगर हम एसएलसीपी पर ध्यान देते हैं, तो हम तेजी से शीतलन प्रभाव प्राप्त कर सकते हैं और दीर्घकालिक कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए महत्वपूर्ण समय हासिल कर सकते हैं।"

 

उन्होंने कहा कि SLCP पर अंकुश लगाना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा तक पहुंच गया है और 2024 के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि तापमान जल्द ही इस सीमा को पार कर सकता है। ओशो ने उन महत्वपूर्ण जोखिमों पर बात की जिनकी वजह से एसएलसीपी भारत की आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए समस्या उत्पन्न करते हैं। बढ़ते तापमान का असंगठित श्रम क्षेत्र, कृषि और खाद्य सुरक्षा पर स्पष्ट प्रभाव पड़ा है। ओशो ने विश्व बैंक के निष्कर्षों का हवाला दिया कि तापमान वृद्धि के कारण भारत के असंगठित क्षेत्र में लगभग 3.4 करोड़ नौकरियां चली गईं - एसएलसीपी के कारण स्थिति और भी गंभीर हो गई है।

 

इसके अलावा, एसएलसीपी के कारण आंशिक रूप से प्रभावित बदलते मानसून परिदृश्यों से फसल चक्र पर असर पड़ता है और देश तथा विदेश में खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। चावल जैसे प्रमुख खाद्य पदार्थों के एक शीर्ष वैश्विक निर्यातक भारत को ऐसे प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है। ओशो ने जोर देकर कहा, "एसएलसीपी बढ़ती गर्मी के तनाव और अनियमित वर्षा में सीधे योगदान देता है, जिससे न केवल स्थानीय किसान बल्कि वैश्विक खाद्य श्रृंखलाएं भी प्रभावित होती हैं।" 

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