Edited By Seema Sharma,Updated: 24 Jan, 2022 11:55 AM
चीन अमरीका की अदावत से पूरी दुनिया वाकिफु है। चीन दुनिया को अपने ऋण जाल में फंसाने की चाल में विफल रहा तो अब अमरीका को घेरने के लिए उसके पड़ोसी देशों लैटिन अमरीका और कैरीबियाई देशों में भारी निवेश कर रहा है
चीन अमरीका की अदावत से पूरी दुनिया वाकिफु है। चीन दुनिया को अपने ऋण जाल में फंसाने की चाल में विफल रहा तो अब अमरीका को घेरने के लिए उसके पड़ोसी देशों लैटिन अमरीका और कैरीबियाई देशों में भारी निवेश कर रहा है। चीन अपने उसी चिर-परिचित अंदाज में गरीब लैटिन अमरीकी देशों औरद्वीपीय कैरीबियाई देशों में उनका मित्र और हमदर्द बनकर घुस रहा है, बड़े-बड़े समझौते कर उन देशों में भारी निवेश कर रहा है जिससे वे चीन के हाथों अपनी अर्थव्यवस्था, राजनीतिक तंत्र और स्वामित्व गिरवी रख रहे हैं। दरअसल अमरीका जिस तरह से चीन के खिलाफ ताईवान, दक्षिण कोरिया और जापान को संरक्षण दे रहा है, उससे चीन रक्षात्मक मुद्रा में आ गया था, लेकिन अब वह अमरीका को उसी की चाल से मारने की जुगत में है।
इसके लिए चीन लैटिन में अमरीकी देशों जैसे ब्राजील, अर्जेंटीना, कोलंबिया, बोलीविया, इक्वाडोर, वेनेजुएला, उरुग्वे, चिली के साथ-साथ कैरेबियाई देशों, जैसे बहामास, क्यूबा, जमैका आदि के साथ भी समझौते कर रहा है। हालांकि अभी यह कह पाना जल्दबाजी होगी कि चीन अपनी शातिराना चालों में कहां तक सफल हो पाएगा, क्योंकि अमरीका जब भी कोई कदम उठाता है, उसके पीछे एक परिपक्व थिंकटैंक की सूझबूझ साथ होती है। वहीं चीन की बात करें तो उसके पास जो थिंकटैंक हैं, वे परिपक्वता में उतने सटीक नहीं, जितने अमरीकी थिंकटैंक हैं। दरअसल चीन लैटिन अमरीकी और करीबियाई देशों में दशकों से निवेश कर रहा है और शुरूआत से ही निकट और दूर भविष्य के लाभ, दोनों आयामों पर काम करता रहा है। अमरीका के निकटतम पड़ोसियों से चीन ने पहले व्यापारिक समझौते किए, जिससे उसे सीधा आर्थिक लाभ हुआ। चीन ने इन देशों में आधारभूत संरचनाओं में पैसा लगाया, जिनमें बंदरगाह, सड़कें, रेल लाइन, बांध, बिजलीघरों का आधुनिकीकरण और परमाणु बिजलीघर बनाना, फोन नैटवर्क तंत्र, स्टेडियम और इस जैसी बड़ी इमारतें शामिल हैं।
चीन ने हाल ही में लैटिन अमरीकी देशों के साथ करीब 140 अरब अमरीकी डॉलर के निवेश के समझौते किए हैं। यहां पर एक बात बता देना आवश्यक है कि चीन कई देशों के साथ गुप्त समझौते भी कर रहा है, जिसकी जानकारी किसी तीसरे पक्ष को नहीं है। हालांकि प्रथम विश्व युद्ध के बाद जब लीग ऑफ नेशन्स की स्थापना हुई थी, उसी समय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह तय हो गया था कि अब कोई भी देश किसी दूसरे देश के साथ न कोई गुप्त समझौता नहीं करेगा और यह बात द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रावधानों में भी जारी रखी गई थी। लेकिन समय समय पर देखा गया कि शीतयुद्ध के दौरान रूस, उत्तर कोरिया, चीन, ईरान, ईराक, सीरिया और कुछ अफ्रीकी देशों ने अन्य देशों के साथ गुप्त समझौते भी किए। इस परिपाटी को चीन आज भी आगे बढ़ा रहा है।
चीन की महत्वाकांक्षा दुनिया का बॉस बनने की है और इस दिशा में उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा अमरीका है। दुनियाभर में सामरिक समझौते कर चीन समुद्री मार्गों पर कब्जा करना चाहता है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है प्रशांत महासागर, हिन्द महासागर, मलाका की खाड़ी और अटलांटिक महासागर इन समुद्री मार्गों से सबसे अधिक व्यापार होता है और वर्तमान में समुद्री व्यापार का 80 फीसदी हिस्सा अमरीका के कब्जे में है। चीन अपनी महत्वाकांक्षी वैल्ट एंड रोड परियोजना के तहत समुद्री व्यापार मार्ग के 80 फीसदी हिस्से पर काबिज होना चाहता है। वर्ष 2005 के बाद चीन लैटिन अमरीकी देशों में बहुत सक्रिय हो गया, जहां उस समय चीन और लैटिन अमरीकी व्यापार महज 12 अरब डॉलर का था, जो बढ़ते बढ़ते वर्ष 2020 में 315 अरब डॉलर का हो गया।
इसके अलावा कुछ जगहों पर उसने सैन्य अड्डे भी बनाए हैं, जिसके लिए चीन अपने व्यापारिक जहाजों की सुरक्षा का हवाला देता है, लेकिन चीन का असल मकसद अमरीका को समुद्र में घेरना है, जिसके लिए उसने इस पूरे क्षेत्र में जो बड़े निवेश किए हैं, उनमें से कुछ हैं- अर्जेंटीना में 2 बड़े बिजली घरों में करोड़ों डॉलर का निवेश, ब्राजील के परानागुआ कंटेनर पोर्ट में 90 फीसदी हिस्सेदारी चीन ने खरीदी है, वहीं ब्राज़ील में चीन 130 करोड़ डॉलर के पुल का निर्माण कर रहा है। कोलंबिया में सड़कों के साथ परिवहन तंत्र को उन्नत बना रहा है, बोगोटा में नई मैट्रो लाइन, ट्राम और विद्युत बसों का तंत्र भी चीन बना रहा है। चिली में 5 अरब डॉलर का बिजली संयंत्र चीन ने खरीद लिया है।
दूसरी वजह यह है अमरीका द्वारा अपने मित्र देश ताईवान को चीन के विरुद्ध सुरक्षा देना। पराग्वे, वेनेजुएला, इक्वाडोर, ग्रेनाडा और डोमिनिकन गणराज्य आदि देशों के सकल घरेलू उत्पाद में 10 फीसदी से अधिक हिस्सा चीन का कर्ज है। चीन ने इन देशों में लाखों डॉलर का निवेश किया है और अब ये देश उसे चुका पाने में नाकाम दिखाई दे रहे हैं। इस पूरे क्षेत्र में चीन से सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले देशों में पहला नाम वेनेजुएला का आता है, जिसने 62 अरब डॉलर से अधिक कर्ज चीन से लिया हुआ है। इसके बाद ब्राजील, बोलीविया, इक्वाडोर और अर्जेंटीना का स्थान आता है।
अमरीका अगर चीन की नकेल कसना चाहता है तो उसे भी अपने पड़ोसियों के साथ-साथ अफ्रीका महाद्वीप में कम ब्याज दरों पर कर्ज देना होगा, साथ ही उन्नत तकनीक और सस्ता श्रम मुहैया करवाना होगा। इस समय भी वैश्विक व्यवस्था अमरीका के पक्ष में है, क्योंकि चीन के बढ़ते कदमों ने दुनिया को दिखा दिया है कि बाकी देशों के लिए यह कितना खतरनाक है। जिस रफ्तार से चीन इस समय चल रहा है, उसे देख कर यह लगता है कि वर्ष 2050 के बाद चीन दुनिया का नया सिरमौर बनेगा। इसके लिए अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के रास्ते पर वह तेजी से चल रहा है। लेकिन अमरीकी थिकटैंक और जी 7 देश चीन को आगे नहीं बढ़ने देंगे, इस बात से जानकार सहमत नज़र आते हैं। लेकिन वे यह भी कहते हैं कि इन सभी देशों को ड्रैगन की शातिराना चाल को रोकने के लिए तुरंत काम करना होगा, नहीं तो समय रेत की तरह मुट्ठी से फिसल रहा है।