Edited By Tanuja,Updated: 13 Apr, 2025 05:31 PM
प्रयोगशाला में तैयार किया गया मांस यानी कल्टीवेटेड मीट आजकल गर्म बहस का विषय बना हुआ है। इसके समर्थक इसे जलवायु परिवर्तन रोकने और पशु कल्याण के लिए फायदेमंद मानते...
London: प्रयोगशाला में तैयार किया गया मांस यानी कल्टीवेटेड मीट आजकल गर्म बहस का विषय बना हुआ है। इसके समर्थक इसे जलवायु परिवर्तन रोकने और पशु कल्याण के लिए फायदेमंद मानते हैं, जबकि विरोधी इसे जोखिम भरा और अप्राकृतिक बता रहे हैं। असल में, इस मांस को कुछ पशु कोशिकाओं से शुरू कर बायोरिएक्टर में उगाया जाता है, जिसमें मांसपेशी कोशिकाएं, वसा कोशिकाएं और कोलेजन बनाने वाली कोशिकाएं होती हैं। इसका उद्देश्य जानवरों को मारे बिना असली मांस बनाना है। कुछ कंपनियां तो यकृत जैसे खास अंगों के ऊतक भी प्रयोगशाला में बनाने की कोशिश कर रही हैं। ब्रिटेन के मिल्टन कीन्स स्थित "ओपन यूनिवर्सिटी" के जेम्स हेग ने बताया कि भले ही प्रयोगशाला में तैयार मांस (Lab-Grown Meat) का विचार थोड़ा अजीब लगता हो, लेकिन इसका भविष्य चिकित्सा अनुसंधान में बेहद अहम हो सकता है।
प्रयोगशाला में तैयार मांस क्या है?
- यह असली मांस है, जिसे जानवरों को मारने के बिना प्रयोगशाला में तैयार किया जाता है।
- इसे बनाने के लिए जानवरों से कुछ कोशिकाएं (Cells) ली जाती हैं।
- फिर इन कोशिकाओं को बायोरिएक्टर (Bioreactor) नामक एक मशीन में विकसित किया जाता है।
- बायोरिएक्टर में वे कोशिकाएं उसी तरह बढ़ती हैं जैसे जानवर के शरीर के अंदर होती हैं।
- इन कोशिकाओं से मांसपेशियां, वसा (Fat Cells) और कोलेजन बनाने वाली कोशिकाएं (Fibroblasts) बनती हैं।
- यही कोशिकाएं मांस को उसका असली स्वाद और बनावट देती हैं।
- यह सोया बर्गर या पौधों से बने मांस जैसे विकल्पों से अलग है। यह असली मांस होता है, बस जानवरों के बिना
इसे कई नामों से जाना जाता है:
- संवर्धित मांस (Cultivated Meat)
- कृत्रिम मांस (Artificial Meat)
- प्रयोगशाला में तैयार मांस (Lab-Grown Meat)
- कोशिका कृषि (Cell Agriculture)
क्यों जरूरी है प्रयोगशाला में तैयार मांस?
जानवरों को मारना नहीं पड़ता।
ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होता है, जिससे पर्यावरण को फायदा होता है।
कुछ कंपनियां विशेष मांस जैसे फोई ग्रास (बत्तख या हंस के जिगर से बना व्यंजन) को भी लैब में तैयार कर रही हैं।
चिकित्सा अनुसंधान में कैसे मदद करेगा?
दिलचस्प बात यह है कि इस तकनीक से सिर्फ मांस ही नहीं, बल्कि भविष्य में मानव अंगों के निर्माण में भी मदद मिल सकती है। मांस की तरह, अंगों के ऊतकों को भी सही आकार और संरचना में विकसित करना होता है। हालांकि चिकित्सा ऊतक को मांस से अलग तरह के कार्य करने पड़ते हैं, फिर भी प्रयोगशाला में तैयार मांस से मिली सीख को उपचार और अंग प्रत्यारोपण में उपयोग किया जा सकता है।असल में, प्रयोगशाला में तैयार मांस बनाने वाली तकनीकें पहले से ही चिकित्सा क्षेत्र के लिए बनाई गई थीं। इसका मूल उद्देश्य था:
- अंग प्रत्यारोपण (Organ Transplantation)
- पुनरुत्पादक चिकित्सा (Regenerative Medicine)
- नई दवाओं का परीक्षण (Drug Testing)
- भविष्य में क्या हो सकता है?
- शरीर में खराब यकृत (Liver) को बदला जा सकेगा।
- दुर्घटना में क्षतिग्रस्त अंगों को दोबारा बनाया जा सकेगा।
- कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज नए ऊतकों से किया जा सकेगा।
क्या चुनौतियां हैं?
मांस और चिकित्सा ऊतकों के बीच मुख्य फर्क: मांस को खाने के लिए बस बढ़ना होता है। उसे जिंदा रहना या काम करना जरूरी नहीं। लेकिन शरीर में प्रत्यारोपण के लिए ऊतक को सही तरह से काम करना भी जरूरी होता है (जैसे मांसपेशी सिकुड़ती है, यकृत पाचन में मदद करता है)। इसमें डिजाइन और विकास की चुनौतियां भी हैं जैसे कोशिकाओं को सही संरचना (Structure) में उगाना। 3D प्रिंटिंग जैसी नई तकनीकों का प्रयोग। टेथरिंग (Tethering) यानी ऊतक को खींच कर आकार देना। महीनों या सालों तक लगातार परीक्षण करना।