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न  नमाज और न ही रोजा, यहां मुसलमान अनूठे तरीके से करते हैं इबादत, कहते- "जन्नत कोई आखिरी मंजिल नहीं"

Edited By Tanuja,Updated: 25 Jan, 2025 05:58 PM

muslim group that doesn t fast or perform daily prayers

इस्लाम में नमाज, रोजा, जकात और हज को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। दुनियाभर के मुसलमान इन नियमों का पालन करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा ...

International Desk: इस्लाम में नमाज, रोजा, जकात और हज को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। दुनियाभर के मुसलमान इन नियमों का पालन करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा मुस्लिम समुदाय भी है, जो न तो पांच वक्त की नमाज पढ़ता है और न ही रमजान के महीने में रोजा रखता है। यह अनोखा समुदाय है  सेनेगल के बाय फॉल मुसलमानों का।  अफ्रीका के पश्चिमी देश सेनेगल में रहने वाला बाय फॉल समुदाय इबादत का एक अनूठा तरीका अपनाता है। ये लोग मस्जिद के बाहर छोटे-छोटे घेरे बनाकर इकट्ठा होते हैं और नाच-गाकर अल्लाह की इबादत करते हैं। गाते हुए झूमने और नृत्य करने के दौरान वे इतने भाव-विभोर हो जाते हैं कि पसीने से तर-बतर हो जाते हैं।

 

दुनिया के बाकी मुसलमानों के विपरीत, जो दिन में 5 बार नमाज अदा करते हैं, बाय फॉल समुदाय के लोग हफ्ते में केवल दो बार इबादत करते हैं। लेकिन उनकी यह इबादत 2 घंटे तक चलती है। उनके लिए इबादत का मतलब केवल झूमना-गाना नहीं है, बल्कि कठिन परिश्रम और सामुदायिक सेवा को भी इबादत का रूप माना जाता है।  बाय फॉल के अनुयायियों का मानना है कि जन्नत कोई आखिरी मंजिल नहीं है। उनके लिए जन्नत उन लोगों के लिए अल्लाह का इनाम है, जो कड़ी मेहनत और निस्वार्थ सेवा करते हैं। इसीलिए वे सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहते हैं, जैसे कि स्कूल बनाना, स्वास्थ्य केंद्र चलाना और सामुदायिक व्यापार को बढ़ावा देना।  
 

बाय फॉल मुसलमानों का पहनावा भी बेहद खास और अलग होता है। वे ऐसे कपड़े पहनते हैं जिन पर अलग-अलग रंगों के पैबंद लगे होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि उनके संस्थापक  इब्राहिमा फॉल अपने गुरु  शेख अहमदौ बाम्बा की सेवा में इतने लीन रहते थे कि अपनी व्यक्तिगत देखभाल, जैसे खाना खाना या कपड़े बदलना, तक भूल जाते थे। उनकी इसी भक्ति को सम्मान देने के लिए बाय फॉल अनुयायी पैबंद वाले कपड़े पहनते हैं।  यह समुदाय मौराइड ब्रदरहुड का उप-समूह है, जो सूफी इस्लाम का एक बड़ा केंद्र है। इसकी स्थापना 19वीं सदी में शेख अहमदौ बाम्बा ने की थी। माना जाता है कि इब्राहिमा फॉल ने बाम्बा के प्रति अपनी पूरी जिंदगी समर्पित कर दी थी।  

 

हालांकि, बाय फॉल समुदाय की प्रथाओं को लेकर कई बार विवाद भी होते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि इनके रीति-रिवाज इस्लाम की शिक्षाओं से मेल नहीं खाते। आरोप लगाए जाते हैं कि इस समुदाय के लोग शराब और गांजे का सेवन करते हैं, जो इस्लाम में हराम माने गए हैं। सेनेगल की 1.7 करोड़ आबादी में बाय फॉल मुसलमानों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन उनकी प्रथाएं और समाज सेवा की भावना उन्हें अलग पहचान देती हैं। उनका जीवन दर्शन यह सिखाता है कि धर्म केवल रीति-रिवाजों तक सीमित नहीं है, बल्कि परिश्रम और सेवा भी अल्लाह की इबादत का जरिया हो सकते हैं।

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