Edited By Parminder Kaur,Updated: 31 Dec, 2023 03:58 PM

पाकिस्तान में दमन का सामना कर रहे हिंदू, सिखों समेत धार्मिक अल्पसंख्यक सत्ता में भागीदारी में भी हाशिए पर हैं। आबादी बढ़ने के साथ ही राजनीतिक दलों के तमाम दावों के बावजूद अल्पसंख्यकों के लिए प्रतिनिधित्व के मौके नहीं बढ़े हैं। पाकिस्तान चुनाव आयोग...
इंटरनेशनल डेस्क. पाकिस्तान में दमन का सामना कर रहे हिंदू, सिखों समेत धार्मिक अल्पसंख्यक सत्ता में भागीदारी में भी हाशिए पर हैं। आबादी बढ़ने के साथ ही राजनीतिक दलों के तमाम दावों के बावजूद अल्पसंख्यकों के लिए प्रतिनिधित्व के मौके नहीं बढ़े हैं। पाकिस्तान चुनाव आयोग (ईसीपी) के अनुसार, नेशनल एसेंबली में 342 सीटें हैं। इनमें से 10 अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं। इन पर 140 पुरुष और 10 महिला अल्पसंख्यक उम्मीदवारों ने पर्चा भरा है। 4 प्रांतीय विधानसभाओं में अल्पसंख्यकों के लिए 24 सीटें आरक्षित हैं। इनमें अल्पसंख्यक 383 उम्मीदवारों ने पर्चा भरा है। पाकिस्तान का कोई भी अल्पसंख्यक सीधे चुनाव नहीं लड़ सकता। उनका चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है। इसके अलावा केवल वे ही पर्चा भर सकते हैं जिनके नाम राजनीतिक दलों द्वारा दी गई। प्राथमिकता सूची में हैं।
सियासी दलों को विधायिका में उनकी संख्यात्मक ताकत के आधार पर आनुपातिक रूप से आरक्षित सीटें दी जाती हैं। उम्मीदवार पार्टी द्वारा उपलब्ध कराई गई सूची के क्रम से निर्वाचित होते हैं। वैसे मौलाना फजलुर रहमान उर्फ 'मौलाना डीजल' के नेतृत्व वाली धार्मिक-राजनीतिक पार्टी जमीयत उलेमा ए इस्लाम (जेयूआई-एफ) ने खैबर पख्तूनख्वा में सबसे अधिक अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को जगह दी है। ये वही प्रांत है, जहां जेयूआई एफ के एक वरिष्ठ नेता ने दिसंबर 2020 में लोगों को परमहंस महाराज की समाधि को क्षतिग्रस्त करने के लिए उकसाया था। 'डीजल' इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल रहे हैं। वह तालिबान समर्थक और उसके लिखाफ अमेरिकी कार्रवाई का विरोध कर चुके हैं। उनके पिता भी मुख्यमंत्री रहे हैं। कथित रूप से अवैध डीजल परमिट पाने के चलते उनका नाम 'मौलना डीजल' पड़ गया।