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चीन की प्लानिंग को तगड़ा झटका: सऊदी अरब ने J-35 फाइटर जेट खरीदने से किया इंकार

Edited By Tanuja,Updated: 13 Mar, 2025 08:13 PM

setback for china saudi arabia rejects j 35 fighter jet deal

चीन की मध्य पूर्व रणनीति को करारा झटका लगा है, क्योंकि सऊदी अरब ने उसके J-35 स्टील्थ फाइटर जेट खरीदने से साफ इनकार कर दिया है। यह फैसला चीन के लिए दोहरे झटके ...

Bejing: चीन की मध्य पूर्व रणनीति को करारा झटका लगा है, क्योंकि सऊदी अरब ने उसके J-35 स्टील्थ फाइटर जेट खरीदने से साफ इनकार कर दिया है। यह फैसला चीन के लिए दोहरे झटके की तरह है पहला, उसकी हथियार इंडस्ट्री को मिडिल ईस्ट में पैर जमाने का मौका नहीं मिला और दूसरा, रणनीतिक रूप से अमेरिका को इस बाजार से बाहर करने की उसकी योजना ध्वस्त हो गई। सऊदी अरब ने J-35 को लेने से इनकार करते हुए ब्रिटेन, इटली और जापान के साथ मिलकर छठी पीढ़ी के फाइटर जेट बनाने की योजना पर जोर दिया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस नए प्रोजेक्ट को लेकर बातचीत काफी आगे बढ़ चुकी है और साल के अंत तक डील पक्की हो सकती है।  

 

चीनी मीडिया ने पहले दावा किया था कि सऊदी अरब J-35 खरीदने के लिए इच्छुक है, लेकिन जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद सारा समीकरण बदल गया। सऊदी अब उन देशों के साथ मिलकर उन्नत युद्धक विमानों का निर्माण करने जा रहा है, जिनकी रक्षा तकनीक चीन की तुलना में कहीं अधिक उन्नत मानी जाती है। J-35 के लिए चीन को अब तक सिर्फ पाकिस्तान से ही खरीद का आश्वासन मिला है, लेकिन रक्षा विशेषज्ञ इसके प्रदर्शन और क्षमता को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। माना जा रहा है कि पाकिस्तान ने भी इस सौदे को पूरी तरह से चीन के दबाव में स्वीकार किया है।  

 

सऊदी अरब ने हालांकि चीन के कुछ सैन्य उपकरण जरूर खरीदे हैं, लेकिन उसने कभी भी चीनी हथियारों को अपनी मुख्य रक्षा रणनीति का हिस्सा नहीं बनाया। यही वजह है कि सऊदी ने J-35 को लेकर कोई उत्साह नहीं दिखाया और अब इस इनकार से चीन के अन्य संभावित खरीदारों के पीछे हटने की आशंका भी बढ़ गई है।  
 चीन की योजना थी कि वह मिडिल ईस्ट में अमेरिका के प्रभुत्व को खत्म कर अपनी रक्षा इंडस्ट्री को मजबूती देगा, लेकिन सऊदी अरब के इस फैसले ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की रक्षा तकनीक अभी भी पश्चिमी देशों के मुकाबले कमजोर है, और यही कारण है कि कई देश उसके सैन्य उत्पादों को लेकर भरोसा नहीं जता रहे हैं।  

 

इसके अलावा, चीन के हथियार निर्माण में 77% हिस्सेदारी रूस के आयातित कंपोनेंट्स की होती है, जिससे यह साफ होता है कि चीन अब भी रक्षा तकनीक में पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं है। यही वजह है कि उसकी हथियार इंडस्ट्री अंतरराष्ट्रीय बाजार में ज्यादा प्रभाव नहीं जमा पा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन ने भले ही अपने हथियारों को आधुनिक बनाने में काफी तरक्की की हो, लेकिन अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को आकर्षित करने में उसे अब भी संघर्ष करना पड़ रहा है। सऊदी अरब के इस इनकार के बाद, मिडिल ईस्ट के अन्य देशों के लिए भी यह एक संकेत हो सकता है कि चीनी हथियारों में भरोसे की कमी है। इस झटके के बाद अब देखने वाली बात होगी कि चीन अपनी रक्षा रणनीति को कैसे बदलेगा और क्या उसे मिडिल ईस्ट में कोई दूसरा बड़ा ग्राहक मिल पाएगा या नहीं।

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