Edited By Tanuja,Updated: 21 Dec, 2024 04:59 PM
अगस्त 2024 में शेख हसीना की सत्ता से जबरन विदाई के बाद, बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा, हत्या और...
International Desk: अगस्त 2024 में शेख हसीना की सत्ता से जबरन विदाई के बाद, बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा, हत्या और गिरफ्तारी की घटनाएं तेज़ी से बढ़ी हैं। इस हिंसा का ताज़ा शिकार एक हिंदू साधु और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाले चिन्मय कृष्ण दास हैं।
25 नवंबर 2024 को ढाका एयरपोर्ट पर चिन्मय कृष्ण दास को गिरफ्तार किया गया। वह बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा के लिए प्रदर्शन कर रहे थे। उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया, जिसमें कहा गया कि उन्होंने अक्टूबर 2024 में चटग्राम में एक रैली के दौरान बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया। 26 नवंबर को उन्हें चटग्राम की अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया।
उनकी जमानत सुनवाई पहले 3 दिसंबर को होनी थी, लेकिन अब इसे 2 जनवरी 2025 तक टाल दिया गया है, क्योंकि उनके वकील रमन रॉय पर हमला हुआ। ISKCON के प्रवक्ता राधारमण दास ने बताया कि रॉय को उनके घर पर बुरी तरह पीटा गया और उनका घर भी तहस-नहस कर दिया गया। वह अभी ICU में हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद, बांग्लादेश में इस्लामिस्ट ताकतें और मज़बूत हो गई हैं। मोहम्मद यूनुस के अंतरिम सरकार का प्रमुख बनने के बाद, कई प्रतिबंधित जिहादी संगठनों को फिर से मान्यता दी गई और उनके नेताओं को जेल से रिहा कर दिया गया। यूनुस ने आतंकवादी संगठनों के नेताओं से मुलाकात की, जिससे बांग्लादेश में हिंदुओं, ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों पर हमलों का सिलसिला तेज़ हो गया।
भारत में शरण ले रहीं शेख हसीना ने आरोप लगाया कि उनकी सत्ता से विदाई में अमेरिका ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि यदि वह सेंट मार्टिन द्वीप पर अमेरिकी प्रभाव को मान लेतीं, तो वह सत्ता में बनी रह सकती थीं। शेख हसीना की सरकार को हटाने और मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाने में बाइडेन प्रशासन की कथित भूमिका सवालों के घेरे में है। 'संडे गार्जियन' की रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में शुरू की गई इस योजना के तहत, अमेरिका ने बांग्लादेश में 'प्रमोशन ऑफ अकाउंटेबिलिटी एंड इनक्लूसिविटी' जैसे कार्यक्रम चलाए। इसके तहत, कलाकारों, संगीतकारों और सामाजिक संगठनों को फंड दिया गया। करीब 400,000 बांग्लादेशी नागरिकों तक पहुंच बनाई गई। लेकिन इस योजना का मुख्य उद्देश्य भारत के प्रभाव को कम करना था। जहां अमेरिका बांग्लादेश में अपने प्रभाव के लिए NGO और फंडिंग पर निर्भर रहा, वहीं चीन ने $38 बिलियन के निवेश के जरिए अपनी आर्थिक पकड़ मज़बूत की।
बांग्लादेश में अमेरिका की विफलता दक्षिण एशिया में अमेरिकी नीतियों की कमज़ोरी को उजागर करती है। सिविल सोसायटी संगठनों और वीज़ा प्रतिबंधों से राजनीतिक बदलाव लाना अब कारगर नहीं है। पश्चिम-समर्थक नेताओं को स्थापित करके चीन के प्रभाव को कम करना कठिन है। लोकतांत्रिक सिद्धांतों का चयनात्मक उपयोग अमेरिका की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा रहा है। बांग्लादेश में अमेरिका की रणनीति न केवल विफल रही, बल्कि इसने भारत के साथ उसके संबंधों को भी तनावपूर्ण बना दिया। अब समय आ गया है कि अमेरिका अपनी दक्षिण एशिया नीति की गहन समीक्षा करे।