Justin Trudeau Resignation: इन 10 कारणों के चलते प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को देना पड़ा इस्तीफा

Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 07 Jan, 2025 12:04 PM

these are the 10 reasons why prime minister justin trudeau had to resign

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाल ही में अपने पद से इस्तीफा देकर वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी। साल 2015 में प्रधानमंत्री बनने के बाद, उन्होंने अपनी प्रगतिशील नीतियों और करिश्माई नेतृत्व के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई।

इंटरनेशनल डेस्क : कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाल ही में अपने पद से इस्तीफा देकर वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी। साल 2015 में प्रधानमंत्री बनने के बाद, उन्होंने अपनी प्रगतिशील नीतियों और करिश्माई नेतृत्व के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। हालांकि, हाल के वर्षों में कई विवादों और चुनौतियों ने उनकी सरकार को कमजोर किया। यहां उनके इस्तीफे और सरकार गिरने के 10 प्रमुख कारणों पर विस्तृत चर्चा की गई है।

1. खालिस्तान विवाद भारत-कनाडा संबंधों में तनाव

जस्टिन ट्रूडो की सरकार खालिस्तान समर्थक गतिविधियों को लेकर भारत के साथ लगातार विवादों में रही। ट्रूडो पर आरोप लगे कि उनकी सरकार ने खालिस्तान समर्थकों को पनाह दी और उनकी गतिविधियों को अनदेखा किया। ट्रूडो सरकार पर खालिस्तानी तत्वों को शह देने के आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं। भारत सरकार ने इस मुद्दे पर कनाडा के रुख को लेकर नाराजगी जताई थी। इस कारण भारत और कनाडा के संबंधों में बड़ी दरार आई। भारतीय प्रवासियों का एक बड़ा वर्ग, जो कनाडा की राजनीति में प्रभावशाली है, इस विवाद से नाराज हुआ और इसका असर ट्रूडो की लोकप्रियता पर पड़ा। इसके साथ ही ट्रूडो के हालिया बयान, जिसमें उन्होंने भारत पर खालिस्तान आंदोलन से जुड़े हिंसक घटनाओं में शामिल होने का अप्रत्यक्ष आरोप लगाया, इसने विवाद को और भड़का दिया। इससे दोनों देशों के बीच संबंधों में बड़ी खाई पैदा हो गई और ट्रूडो की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचा।

2. भारत-कनाडा संबंधों में गिरावट

पिछले कुछ वर्षों में भारत और कनाडा के संबंधों में लगातार तनाव देखा गया है। इसके पीछे मुख्य कारणों में राजनीतिक और कूटनीतिक विवाद शामिल हैं। भारतीय समुदाय कनाडा में एक बड़ी और प्रभावशाली आबादी है, और उनका कनाडाई राजनीति में सक्रिय भागीदारी है। इसके बावजूद, कुछ मुद्दों पर दोनों देशों के बीच मतभेद गहराते गए। गुरपतवंत सिंह पन्नू, जो सिख फॉर जस्टिस (SFJ) संगठन के प्रमुख हैं, को भारत सरकार ने लंबे समय से आतंकवादी घोषित किया हुआ है। पन्नू के विवादास्पद बयानों और गतिविधियों के चलते भारत ने कनाडा से कई बार उनकी गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग की। हालांकि, ट्रुडो सरकार ने इस मामले में भारत के रुख को नजरअंदाज करते हुए पन्नू और उनके संगठन को कार्य करने की छूट दी। यह भारत के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया और दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ावा दिया।

3. प्रवासियों को पनाह देने से उत्पन्न समस्याएं

ट्रूडो सरकार ने बड़ी संख्या में प्रवासियों और शरणार्थियों को कनाडा में पनाह दी। इस नीति ने आवास, रोजगार, और सार्वजनिक सेवाओं पर भारी दबाव डाला। जनता ने महसूस किया कि सरकार अपनी प्रवासी नीति को नियंत्रित करने में विफल रही, जिससे समाज में असमानता और असंतोष बढ़ा। बता दें ट्रूडो की सरकार ने प्रवासियों और शरणार्थियों को पनाह देने की नीति को खुलकर समर्थन दिया था। हालांकि, इस कदम से कनाडा के आर्थिक और सामाजिक ढांचे पर भारी दबाव पड़ा। आवास संकट, स्वास्थ्य सेवाओं में गिरावट और रोजगार की कमी जैसे मुद्दे सामने आए। विपक्ष और जनता ने ट्रूडो की प्रवासी नीति की कड़ी आलोचना की, जिससे उनकी लोकप्रियता पर असर पड़ा।

4. डोनाल्ड ट्रंप के साथ पुराने और नए विवाद

ट्रूडो और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच कई विवाद सामने आए। दोनों नेताओं के बीच व्यापार समझौतों, जलवायु परिवर्तन और अन्य अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर तीखी बहस होती रहती थी। ट्रंप के कार्यकाल के दौरान से ही अमेरिका-कनाडा संबंध कमजोर हुए। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ जस्टिन ट्रूडो के विवाद हमेशा सुर्खियों में रहे। ट्रंप के जाने के बाद भी, कुछ नीतिगत मुद्दों और व्यापारिक मतभेदों ने कनाडा-अमेरिका संबंधों को पटरी पर नहीं लौटने दिया। पिछले कुछ समय से डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार जस्टिन ट्रूडो को संयुक्त राज्य अमेरिका के 51वें राज्य के गवर्नर के रूप में संदर्भित किया है, जिससे कनाडा की संप्रभुता पर सवाल उठा, इससे भी बहुत मायने निकाले जा रहे हैं।

5. आर्थिक संकट और बढ़ती महंगाई

कनाडा में हाल के वर्षों में आर्थिक स्थिति काफी खराब हुई है। महंगाई दर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई, और जीवन यापन की लागत बढ़ने से जनता में गुस्सा बढ़ा। बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़े और आवासीय संकट ने ट्रूडो सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए।

6. चीन और विदेशी संबंधों पर असफलता

चीन के साथ खराब होते संबंध और विदेश नीति पर कमजोर प्रदर्शन ने टूडो सरकार की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचाया। कनाडा-चीन तनाव, जिसमें माइकल कोवरिंग और माइकल स्पावोर की गिरफ्तारी जैसे मुद्दे शामिल थे, इसने सरकार को कमजोर किया। इसके अलावा, अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंधों में गिरावट ने उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए।

7. भ्रष्टाचार के आरोप और एसएनसी-लावालिन विवाद

जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में लिबरल पार्टी को कई बार भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा। साल 2019 में एसएनसी-लावालिन मामले ने उनकी छवि को गहरा धक्का पहुंचाया। इस विवाद में, उन पर एक बड़ी इंजीनियरिंग कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई रोकने के लिए अटॉर्नी जनरल पर दबाव डालने का आरोप लगा। यह मामला उनकी नैतिकता और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

8. पार्टी में आंतरिक कलह 

लिबरल पार्टी के भीतर असहमति और मतभेद बढ़ते गए। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने ट्रूडो की नेतृत्व शैली और फैसलों पर सवाल उठाए। यह आंतरिक कलह उनकी सरकार के गिरने का एक बड़ा कारण बनी।

9. जलवायु परिवर्तन और पाइपलाइन परियोजना विवाद

टूडो सरकार ने जलवायु परिवर्तन को अपनी प्राथमिकताओं में रखा, लेकिन उनकी कुछ नीतियां विवादित रहीं। उन्होंने पाइपलाइन विस्तार परियोजना को मंजूरी दी, जिससे पर्यावरणविदों और आदिवासी समुदायों में आक्रोश फैल गया। यह टूडो की हरित नीतियों के साथ विरोधाभास किया और उनकी प्रगतिशील छवि को धूमिल किया।

10. स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में खामियां 

कनाडा की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में कई खामियां उभर कर आई हैं, जिनकी वजह से नागरिकों की नाराजगी बढ़ी है। सबसे पहली समस्या है सेवाओं तक पहुंच। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने में कठिनाई होती है। डॉक्टरों और विशेषज्ञों की कमी के कारण उन्हें लंबे समय तक इलाज का इंतजार करना पड़ता है। लंबी प्रतीक्षा समय भी एक गंभीर समस्या है। मरीजों को सर्जरी या विशेषज्ञों के पास जाने के लिए कई हफ्तों या महीनों का इंतजार करना पड़ता है, जिससे इलाज में देरी होती है और स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं। स्वास्थ्य कर्मचारियों की कमी भी एक और बड़ी समस्या है।

कई डॉक्टर और नर्स उच्च कार्यभार और बर्नआउट के कारण काम छोड़ रहे हैं, जिससे सेवाओं की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है। इसके अलावा, स्वास्थ्य देखभाल में वित्तीय दबाव और ग्रामीण-शहरी असमानता ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। बड़े शहरों में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में संसाधनों की भारी कमी है। इन खामियों के कारण नागरिकों में असंतोष और सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा था।

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