Edited By Tanuja,Updated: 04 Nov, 2024 06:46 PM
अमेरिका में 5 नवंबर को 47वें राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए मतदान होगा। रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता कमला हैरिस के बीच कड़ा मुकाबला दिख रहा है ...
Washington: अमेरिका में 5 नवंबर को 47वें राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए मतदान होगा। रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता कमला हैरिस के बीच कड़ा मुकाबला दिख रहा है। माना जा रहा है कि यह मुकाबला ऐतिहासिक होने वाला है और इतिहास में पिछले कई दशकों में व्हाइट हाउस (अमेरिका के राष्ट्रपति का आधिकारिक कार्यालय एवं आवास) के लिए सबसे करीबी मुकाबले के रूप में दर्ज होने वाला है। चुनाव के दिन की उल्टी गिनती शुरू होने के साथ ही पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप (78) ने 2020 के चुनाव की कड़वी यादें ताजा करते हुए कहा कि उन्हें व्हाइट हाउस नहीं छोड़ना चाहिए था। उनके इस बयान से यह आशंका पैदा हो गई कि अगर वह हैरिस (60) से चुनाव हार गए तो शायद वह पांच नवंबर के मतदान के नतीजे को स्वीकार नहीं करेंगे।
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दरअसल, अमेरिका (US) में राष्ट्रपति पद के लिए अहम चुनाव से दो दिन पहले एक नए सर्वेक्षण में दिखाया गया कि आयोवा में संभावित मतदाताओं के बीच उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से 44 प्रतिशत के मुकाबले 47 प्रतिशत की बढ़त बनाए हुई हैं। रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ट्रंप ने इस सर्वेक्षण को ‘‘फर्जी'' और ‘‘भ्रामक'' बताकर खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि यह सर्वेक्षण डेमोक्रेटिक पार्टी की उनकी प्रतिद्वंद्वी के पक्ष में किया गया है। उन्होंने अहम चुनावी क्षेत्र पेनसिल्वेनिया में एक रैली में कहा, ‘‘मेरे दुश्मनों में से एक ने एक सर्वेक्षण जारी किया है कि मैं तीन अंक से पीछे हूं। आयोवा में मतदान के परिणाम को ट्रंप के लिए निराशाजनक संकेत के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि इससे हैरिस की ओर झुकाव का संकेत मिलता है। सितंबर में इसी समाचार संस्था द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में ट्रंप को हैरिस से चार अंक आगे दिखाया गया था।
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जून में जब राष्ट्रपति जो बाइडन राष्ट्रपति पद की दौड़ में थे, तब ट्रंप डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता से 18 अंकों से आगे थे। हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, महिलाओं और स्वतंत्र मतदाताओं के समर्थन के कारण डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैरिस दौड़ में आगे दिख रही हैं। अमेरिका भर में प्रारंभिक और डाक से मतदान पर नजर रखने वाले फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के ‘इलेक्शन लैब' के अनुसार, रविवार तक 7.5 करोड़ से अधिक अमेरिकी लोग अपने वोट डाल चुके हैं। ‘एनबीसी न्यूज' के एक अलग सर्वेक्षण में हैरिस और ट्रंप के बीच कड़ी टक्कर दिख रही है। सर्वेक्षण से पता चलता है कि हैरिस को 49 प्रतिशत पंजीकृत मतदाताओं का समर्थन मिला, जबकि ट्रंप को भी 49 प्रतिशत का समर्थन मिला।
न्यूयॉर्क के मतपत्रों पर बांग्ला एकमात्र भारतीय भाषा
न्यूयॉर्क में 200 से ज्यादा भाषाएं बोली जाती हैं, जिसकी वजह से इसे अमेरिका का सबसे बड़ा बहुभाषी राज्य कहा जाता है, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए कल पांच नवंबर को होने जा रहे चुनाव में, मतपत्रों में अंग्रेजी के अलावा सिर्फ चार अन्य भाषाएं होंगी, जिसमें बांग्ला एकमात्र भारतीय भाषा है। न्यूयार्क के नगर नियोजन विभाग ने यह जानकारी दी। अमेरिका में मंगलवार को 47वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान होगा। न्यूयॉर्क स्थित ‘बोर्ड ऑफ इलेक्शन' के कार्यकारी निदेशक माइकल जे रयान ने बताया, “हमें अंग्रेजी के अलावा चार अन्य भाषाओं को भी शामिल करना होता है।
एशियाई भाषाओं में चीनी, स्पेनिश, कोरियाई और बांग्ला शामिल हैं।” ‘टाइम्स स्क्वायर' स्थित एक स्टोर में सेल्स एजेंट के तौर पर काम करने वाले सुभाशीष का ताल्लुक बंगाल से है। उन्हें खुशी है कि क्वीन्स इलाके में रहने वाले उनके पिता को वोट डालने के लिए भाषाई सहायता मिलेगी। सुभाशीष ने कहा, “मेरे जैसे लोग अंग्रेजी जानते हैं लेकिन हमारे समुदाय में ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें यह भाषा नहीं आती। इससे (मतपत्र में बांग्ला भाषा शामिल किए जाने से) उन्हें मतदान केंद्र पर मदद मिलेगी। मुझे यकीन है कि मेरे पिता को बांग्ला भाषा का मतपत्र देखने का विचार पसंद आएगा।” मतपत्रों पर बांग्ला भाषा का इस्तेमाल सिर्फ शिष्टाचार नहीं बल्कि एक कानूनी आवश्यकता भी है। कानून के अनुसार, न्यूयॉर्क शहर के कुछ मतदान स्थलों पर बांग्ला में मतदान सामग्री उपलब्ध कराना अनिवार्य है। यह अनिवार्यता सिर्फ मतपत्रों पर नहीं बल्कि मतदान से जुड़ी अन्य आवश्यक सामग्री पर भी लागू है, जिससे बांग्ला भाषी मतदाताओं को मदद मिलती है।
रयान ने बताया कि सिर्फ बांग्ला ही क्यों उन भाषाओं की सूची में शामिल है, जिन्हें ‘बोर्ड ऑफ इलेक्शन' ने अंग्रेजी के अलावा चुनाव है। उन्होंने बताया, “भाषा की जानकारी को लेकर एक मुकदमा दायर किया गया था और जैसा कि आप जानते हैं कि भारत में बहुत सी अलग-अलग भाषाएं हैं। उस मुकदमे के निपटारे के लिए एक निश्चित जनसंख्या घनत्व के भीतर एक एशियाई भारतीय भाषा का होना जरूरी था। बातचीत के जरिए बांग्ला पर सहमति बनी। मैं बांग्ला को चुनने की सीमाओं को समझता हूं लेकिन यह एक मुकदमे की वजह से हुआ है।” न्यूयॉर्क के क्वीन्स इलाके में दक्षिण एशियाई समुदाय को पहली बार 2013 में बांग्ला में अनुवादित मतपत्र मिले थे।