Baba Sodal Mela: मन्नत पूरी होने पर बैंड-बाजे के साथ जाते हैं दरबार, पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Sep, 2024 06:55 AM

shri sidh baba sodal ji mela

श्री सिद्ध बाबा सोढल जी का मंदिर और तालाब लगभग 200 वर्ष पुराना है। इससे पहले यहां चारों ओर घना जंगल होता था। दीवार में उनका श्री रूप स्थापित है। जिससे मंदिर का स्वरूप दिया गया है।

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Baba Sodal Mela 2024: श्री सिद्ध बाबा सोढल जी का मंदिर और तालाब लगभग 200 वर्ष पुराना है। इससे पहले यहां चारों ओर घना जंगल होता था। दीवार में उनका श्री रूप स्थापित है। जिससे मंदिर का स्वरूप दिया गया है। अनेक श्रद्धालुजन अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मंदिर में आते हैं। यह मंदिर सिद्ध स्थान के रूप में प्रसिद्ध है। यहां एक तालाब है जिसके चारों ओर पक्की सीढ़ियां बनी हुई हैं तथा मध्य में एक गोल चबूतरे के बीच शेष नाग का स्वरूप है।
 
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भाद्रपद की अनन्त चतुर्दशी को यहां विशेष मेला लगता है। चड्ढा बिरादरी के जठेरे बाबा सोढल में हर धर्म व समुदाय के लोग नतमस्तक होते हैं। अपनी मन्नत की पूर्ति होने पर लोग बैंड-बाजों के साथ बाबा जी के दरबार में आते हैं। बाबा जी को भेंट व 14 रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं, जिसमें से 7 रोट प्रसाद के रूप में वापिस मिल जाते हैं। उस प्रसाद को घर की बेटी तो खा सकती है परन्तु उसके पति व बच्चों को देना वर्जित है। वर्तमान में यह मंदिर सोढल रोड पर विद्यमान है।

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Baba Sodal katha: श्री सिद्ध बाबा सोढल जी की कथा
प्राचीन समय में श्री सिद्ध बाबा सोढल जी का जहां मंदिर स्थापित है उस स्थान पर एक संत जी की कुटिया और तालाब था। यह तालाब अब सूख चूका है, परन्तु उस समय पानी से भरा रहता था। संत जी भोले भंडारी के परम भक्त थे। जनमानस उनके पास अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आया करते थे।

चड्ढा परिवार की बहू जो उनकी भक्त थी, बुझी सी रहती। एक दिन संत जी ने पूछा कि बेटी तू इतनी उदास क्यों रहती है? मुझे बता मैं भोले भंडारी से प्रार्थना करूंगा वो तुम्हारी समस्या का समाधान अवश्य करेंगे। संत जी की बात सुनकर उन्होंने कहा कि मेरी कोई सन्तान नहीं है और सन्तानहीन स्त्री का जीवन नर्क भोगने के समान होता है। संत जी ने कुछ सोचा फिर बोले, बेटी तेरे भाग्य में तो सन्तान सुख है ही नहीं, मगर तुम भोले भंडारी पर विश्वास रखो वो तुम्हारी गोद अवश्य भरेंगे।
 
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संत जी ने भोले भंडारी से प्रार्थना की कि चड्ढा परिवार की बहू को ऐसा पुत्र रत्न दो, जो संसार में आकर भक्ति व धर्म पर चलने का संदेश दे। भोले भंडारी ने नाग देवता को चड्ढा परिवार की बहू की कोख से जन्म लेने का आदेश दिया। नौ महीने के उपरांत चड्ढा बिरादरी में बाबा सोढल जी का जन्म हुआ। जब यह बालक चार साल का था तब एक दिन वह अपनी माता के साथ कपड़े धोने के लिए तालाब पर आया। वहां वह भूख से विचलित हो रहा था तथा मां से घर चल कर खाना बनाने को कहने लगा। मगर मां काम छोड़कर जाने के लिए तैयार नहीं थी। तब बालक ने कुछ देर इंतजार करके तालाब में छलांग लगा दी तथा आंखों से ओझल हो गया।

मां फफक-फफक कर रोने लगी, मां का रोना सुनकर बाबा सोढल नाग रूप में तालाब से बाहर आए तथा धर्म एवं भक्ति का संदेश दिया और कहा कि जो भी मुझे पूजेगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। ऐसा कहकर नाग देवता के रूप में बाबा सोढल फिर तालाब में समा गए। बाबा के प्रति लोगों में अटूट श्रद्धा और विश्वास बन गया कालांतर में एक कच्ची दीवार में उनकी मूर्ति स्थापित की गई जिसको बाद में मंदिर का स्वरूप दे दिया गया।
 
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