Edited By ,Updated: 16 Dec, 2015 08:46 AM
श्री गुरु तेग बहादुर जी को ‘हिंद दी चादर’ कहा जाता है। उन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा हेतु अपने प्राण न्यौछावर किए थे। गुरु जी सिख धर्म के नौवें गुरु थे। गुरु जी का प्रकाश श्री गुरु हरगोबिंद साहिब के गृह में 1621 ई. को माता नानकी जी की कोख से गुरु के...
श्री गुरु तेग बहादुर जी को ‘हिंद दी चादर’ कहा जाता है। उन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा हेतु अपने प्राण न्यौछावर किए थे। गुरु जी सिख धर्म के नौवें गुरु थे। गुरु जी का प्रकाश श्री गुरु हरगोबिंद साहिब के गृह में 1621 ई. को माता नानकी जी की कोख से गुरु के महल अमृतसर साहिब में हुआ। आप बचपन से ही वैराग की मूर्त थे। एकांत में बैठ कर आप घंटों तक प्रभु की भक्ति में लीन रहते। आपका नाम त्याग मल्ल था परंतु करतारपुर साहिब में गुरु हरगोबिंद साहिब जी के साथ मुगलों की लड़ाई में आपने अपनी तलवार के ऐसे जौहर दिखाए कि गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने खुश होकर आपका नाम त्याग मल्ल जी से बदलकर (गुरु) तेग बहादुर रख दिया।
गुरु हरगोबिंद साहिब आप जी की बाल लीला को देख कर अक्सर कहा करते थे कि यह एक सच्चे संत, धर्म रक्षक, हिंदवायन का स्तंभ होंगे। बचपन से ही आपके द्वार पर जो भी कुछ मांगने के लिए आता खाली नहीं जाता था। आपके पास जो भी होता था वह सब कुछ गरीबों को दे दिया करते थे।
आपके बड़े भ्राता बाबा गुरदित्ता जी की शादी के समय आप जी के लिए बहुत ही सुंदर वस्त्र तथा गहने बनाए गए परंतु एक गरीब ब्राह्मण ने जब आप के कपड़ों की ओर लालसा भरी निगाहों से देखा तो आप ने गहने व कीमती कपड़े उस ब्राह्मण को दे दिए।
गुरु जी की शादी लाल चंद सुभिखिया की बेटी (माता) गुजरी जी के साथ जालंधर के निकट करतारपुर साहिब में हुई। उनका पैतृक गांव लखनौर साहिब है, जोकि अंबाला के निकट है। लाल चंद जी बाद में गुरु अर्जुन देव जी द्वारा स्थापित गांव करतारपुर साहिब आकर बस गए थे।
गुरु हरगोबिंद साहिब जी के बाद आप जी के भतीजे गुरु हरिराय जी को गुरु गद्दी मिली तथा उनके बाद आप जी के पौत्र गुरु हरिकृष्ण जी सिखों के आठवें गुरु बने। गुरु हरिकृष्ण जी ने अपने दादा गुरु तेग बहादुर जी को गुरु गद्दी दी।
आप जी ने कई वर्ष तक बाबा बकाला नगर में घोर तपस्या की। आप जी की माता नानकी जी तथा पत्नी माता गुजरी भी आपके संग रहे। यहीं पर मक्खन शाह लुबाना ने आप जी को ‘गुरु लाधो रे’ कहते हुए गुरु के रूप में दुनिया के सामने लाया।
गुरु तेग बहादुर जी के घर एक पुत्र श्री गुरु गोबिंद राय (सिंह) का प्रकाश हुआ जो बाद में दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी कहलाए। गुरु जी ने सतलुज के किनारे पहाड़ी राजाओं से जमीन खरीदी तथा आनंदपुर साहिब नामक नगर बसाया।
इसी नगर में औरंगजेब के जुल्मों के सताए हुए कुछ कश्मीरी ब्राह्मण पंडित कृपा राम जी के नेतृत्व में प्रार्थी बनकर आप जी के समक्ष उपस्थित हुए। दरअसल, औरंगजेब हिदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनने के लिए विवश कर रहा था तथा अपना धर्म बचाने के लिए कश्मीरी ब्राह्मण गुरु जी के पास आए।
इनके निवेदन को स्वीकार करते हुए गुरु जी ने अपना बलिदान देने का निश्चय कर लिया। यह बहुत ही विलक्षण बात थी कि कोई मक्तूल (कत्ल होने वाला) अपने कातिल के पास स्वयं चलकर पहुंचे। गुरु तेग बहादुर जी ने ऐसा किया।
गुरु जी के साथ गए सिखों में से भाई मतीदास जी को औरंगजेब के आदेश पर आरे से जिंदा चीर दिया गया, भाई सतीदास जी को कपास में जिंदा लपेटकर आग लगा दी गई तथा भाई दयाला जी को देग (वलटोही) में पानी डालकर उसमें उबाल दिया गया।
गुरु जी को भी करामात दिखाने को कहा गया, परंतु गुरु जी ने इंकार कर दिया। आखिर 1675 ई. में आप जी को चांदनी चौक में शहीद कर दिया गया। लोगों को सदैव यही संदेश दिया कि मनुष्य का यह प्रमुख कर्तव्य है कि वह प्रभु की भक्ति करे। प्रभु की भक्ति के बगैर मनुष्य अपना कीमती जीवन व्यर्थ गंवा लेता है।
—गुरप्रीत सिंह नियामियां