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गीता शोध को लेकर विश्व का यह एक अलग-सा केन्द्र रहेगा

Edited By ,Updated: 27 Jun, 2016 03:31 PM

gyananand swami maharaj

महापुरुष फूलों के समान होते हैं जो स्वयं तो सुगंध के भंडार होते ही हैं, दूसरों को भी अपनी खुशबू से मालामाल करते हैं। फूल अपनी सुगंध वहीं तक भेज पाते हैं जहां तक हवा के झोंके उसे ले जाएं मगर महापुरुष ऐसे फूल हैं जिनकी खुशबू अनुकूल या प्रतिकूल हवा पर...

महापुरुष फूलों के समान होते हैं जो स्वयं तो सुगंध के भंडार होते ही हैं, दूसरों को भी अपनी खुशबू से मालामाल करते हैं। फूल अपनी सुगंध वहीं तक भेज पाते हैं जहां तक हवा के झोंके उसे ले जाएं मगर महापुरुष ऐसे फूल हैं जिनकी खुशबू अनुकूल या प्रतिकूल हवा पर निर्भर नहीं, वे सब को समान रूप से सुगंध और सौंदर्य देते चले जाते हैं और परमार्थ जीवन जीते हैं। गीता मनीषी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज, ऐसे ही महापुरुष हैं।
 
स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज का जन्म 15 मई 1957 को धर्म नगरी अबाला शहर के समीप गांव काकरू में हुआ। पिता श्री राम जी दास व माता कौशल्या देवी के संस्कारों ने इन पर काफी प्रभाव डाला। महाराज श्री ने बचपन से ही गीता नगरी स्थित तपस्वी ब्रह्मनिष्ठ परम श्रद्धेय पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी श्री गीतानंद जी महाराज ‘वीर जी ’ के आश्रम में जाना शुरू कर दिया था। वीर जी महाराज  के द्वारा वर्णित गीता वाणी का एक-एक शब्द आपके हृदय में घर करता चला गया और प्रेरणा बनता चला गया। इसी काल में आपने श्री गीता जी के प्रत्येक श्लोक पर गहन चिंतन किया। संत-महात्माओं का पावन आशीर्वाद लेकर स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज भारतीय संस्कृति की धरोहर भगवान श्री कृष्ण की अमर वाणी श्रीमद् भगवद गीता के प्रचार-प्रसार द्वारा जन-जन के जीव को सजाने, संवारने, शोक, मोह, अकर्मण्यता जैसे द्वंदों से मुक्त कराने, उन्हें अपने कर्त्तव्य को बोध कराने, दरिद्र नारायण की सेवा में लगाने एवं प्रभु मिलन के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रयत्नशील बनने निकल पड़े।
 
स्वामी जी का दृढ़ मत रहता है कि संत जीवन सत् से जुडऩे और सत् से जोडऩे का ही नाम है। आज के वातावरण में इसकी प्रबल आवश्यकता है कि मनुष्य सत से अर्थात अध्यात्म से जुड़कर रहें। आज के बढ़ते भौतिकवादी प्रभाव में चारों और तनाव, दबाव, दुर्भाव और व्यापक रूप में लूटमार, अनीति, अराजकता अपना दुष्प्रभाव जमाती दिखाई दे रही हैं। बचपन संस्कारहीन हो रहा है और यौवन पथ भ्रष्ट। 
 
समाधान एक ही है कि बाल्यकाल से ही अध्यात्म को साथ लेकर जीवन यात्रा में आगे बढ़ा जाए। भगवद् गीता इसी भाव की एक सशक्त प्रेरणा है। स्वामी ज्ञानानंद जी ने इसीलिए यह संकल्प लिया है कि ‘जीओ गीता’ के माध्यम से भगवद् गीता को हर क्षेत्र की प्रेरणा बनाया जाए। गीता केवल आस्था ही नहीं, जीवन जीने की एक कला है। इसीलिए ‘जीओ गीता’ के माध्यम से स्वामी ज्ञानानंद जी मानवता के लिए यह आह्वान करते हैं ‘जीओ गीता के संग, सीखो जीने का ढंग।’
 
गीता आदि अनेक क्षेत्रों में भगवद् गीता पर शोध, साहित्य स्वामी ज्ञानानंद जी द्वारा इन दिनों प्रकाशित हुआ है। ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों जीओ गीता के इस विलक्षण प्रयास को देते हुए हरियाणा सरकार ने गीता की प्राकट्य स्थली कुरुक्षेत्र में 6 एकड़ भूमि उपलब्ध करवाई जिसमें गीता ज्ञान संस्थानम् के रूप में एक विशाल केन्द्र स्थापित होगा। इसमें गीता शोध, अध्ययन, गीता संग्रहालय, गीता पुस्तकालय और योग एवं ध्यान केंद्र आदि अनेक विभाग होंगे। अपनी प्रकार की गीता शोध को लेकर विश्व का यह एक अलग-सा केन्द्र रहेगा।
 

—पंडित तिलक राज शर्मा 

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