Edited By Yaspal,Updated: 08 Aug, 2023 04:53 PM
मणिपुर मुद्दे पर लोकसभा में विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर बहस शुरू हो गई है। जोकि गरूवार तक चलेगी। विपक्ष ने मणिपुर विवाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सदन में बयान की मांग की थी
नेशनल डेस्कः मणिपुर मुद्दे पर लोकसभा में विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर बहस शुरू हो गई है। जोकि गरूवार तक चलेगी। विपक्ष ने मणिपुर विवाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सदन में बयान की मांग की थी, ये मांग पूरी ना होने पर अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था। कांग्रेस की ओर से गौरव गोगोई और भारतीय जनता पार्टी की ओर से निशिकांत दुबे ने बहस की शुरुआत की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए दूसरा मौका है जब वे अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे हैं। इससे पहले मोदी सरकार को 2018 में अपने पहले 'अविश्वास' प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था। तब यह प्रस्ताव भारी अंतर से गिर गया था। देश आजाद होने के बाद यह 28वां अविश्वास प्रस्ताव है। मौजूदा भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार विपक्षी गठबंधन (I.N.D.I.A) को हर तरह से जवाब देने का दावा कर रही है। वहीं, विपक्ष इसको लेकर मोदी सरकार पर हमलावर है।
इस बीच जानते हैं कि आखिर अविश्वास प्रस्ताव होता क्या है? सबसे पहले संसद में यह कब आया? अब तक आए 27 अविश्वास प्रस्ताव में कब क्या हुआ? इनमें से कितने प्रस्ताव सफल हुए? प्रस्तावों में मतों का आंकड़ा क्या रहा?
क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव?
दरअसल, संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का कोई जिक्र नहीं है। लेकिन अनुच्छेद 118 के तहत सदन अपनी प्रक्रिया बना सकता है, जबकि नियम 198 के तहत ऐसी व्यवस्था है, जिसमें सदन के सदस्य लोकसभा अध्यक्ष को सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकते हैं। इसके बाद लोकसभा स्पीकर सभी दलों से मिलकर अविश्वास प्रस्ताव पर बहस का समय तय करते हैं।
कैसे पारित होता है प्रस्ताव?
अविश्वास प्रस्ताव पारित कराने के लिए सबसे पहले विपक्षी सांसदों को लोकसभा अध्यक्ष को इसकी लिखित सूचना देनी होती है। इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहते हैं। यह अविश्वास प्रस्ताव बहस के लिए तभी स्वीकार होता है, जब कम से कम प्रस्ताव पेश करने वाले सांसद के पास 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो। यानी अविश्वास प्रस्ताव पेस करने वाले सांसद के प्रस्ताव पर कुल 50 सांसदों का हस्ताक्षर होने चाहिए। लोकसभा अध्यक्ष की मंजूरी मिलने के बाद 10 दिन के अंदर इस पर चर्चा कराई जाती है। चर्चा के बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग कराते हैं या फिर फैलला ले सकते हैं।
क्या है अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास
संसद के गठन के बाद से अब तक लोकसभा में 28 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है। 28 में से 18 प्रस्ताव 1960 और 1980 के दशक के बीच आए। तीसरी और चोथी लोकसभा में 6-6 ऐसे प्रस्ताव आए। पांचवीं लोकसभा मे चार प्रस्ताव आए। हालांकि, पिछले तीन दशकों में अविश्वास प्रस्तावों की संख्या में काफी कमी आई है। पिछले 30 सालों में केवल 6 प्रस्ताव आए। आजादी के बाद पहले 13 वर्षों में एक भी प्रस्ताव नहीं उठाया गया। भारतीय संसद के इतिहास में पहला अविश्वास प्रस्ताव पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में अगस्त 1963 में जेबी कृपलानी ने रखा था। भारत-चीन युद्ध के तुरंत बाद आए इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े और विरोध में 347 वोट पड़े थे।
किस PM के खिलाफ कितनी बार आया अविश्वास प्रस्ताव
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। 15 वर्षों तक प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी ने आज तक आए सभी अविश्वास प्रस्तावों में से आधे से अधिक प्रस्तावों का सामना किया। 27 प्रस्तावों में से 15 प्रस्ताव उनके प्रधानमंत्री रहते हुए लाए गए। दो साल से भी कम समय तक प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री को ऐसे तीन प्रस्तावों का सामना करना पड़ा। पूरे पांच साल तक अल्पमत सरकार चलाने वाले पीवी नरसिम्हा राव को ऐसे तीन प्रस्तावों का सामना करना पड़ा।
पहली बार 1978 में गिरी सरकार
अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष को पहली बार सफलता साल 1978 में मिली। विपक्ष ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था लेकिन घटक दलों में मतभेद के चलते मोरारजी देसाई अपनी सरकार नहीं बचा सके और मत विभाजन से पहले ही संसद में इस्तीफा की घोषणा कर दी। दरअसल, इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी ने कुछ अन्य दलों के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई थी। मोरारजी को पहले भी दो बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था लेकिन तीसरी बार सरकार बचाने में नाकाम हो गए।
एच.डी. देवेगौड़ा की गिर गई थी सरकार
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में साल 1997 में दूसरी बार ऐसा हुआ जब अविश्वास प्रस्ताव के जरिए कोई सरकार गिरी हो। विपक्ष ने एच.डी. देवेगौड़ा सरकार के खिलाफ अविश्वास लाया था। देवगौड़ा अपनी सरकार नहीं बचा सके थे।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरी
बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए सरकार चला रहे अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ भी दो बार अविश्वास प्रस्ताव आया था। बात 1999 की है जब बीजेपी के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार महज एक वोट के अंतर से अविश्वास प्रस्ताव हार गई थी और अटल की सरकार गिर गई थी। दरअलस एनडीए में शामिल जयललिता की पार्टी ने अटल सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाया तो अटल की सरकार एक वोट से हार गई।
जब मनमोहन सरकार भी गिरते-गिरते बच गई थी
साल 2008 में जब मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ सीपीएम अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी। सीपीएम पहले यूपीए में ही शामिल थी लेकिन अमेरिका के साथ हुए परमाणु समझौते की वजह से उसने समर्थन वापस ले लिया और सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई। मनमोहन सिंह की सरकार महज कुछ वोटों के अंतर से बच गई थी।
मोदी के खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ यह दूसरा अविश्वास प्रस्ताव है। इससे पहले साल 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया था जो बुरी तरह फेल हो गया था। उस दौरान मोदी ने कहा था कि आप इतना तैयारी करें कि साल 2023 में फिर से अविश्वास प्रस्ताव लेकर आएं।
प्रस्तावों में मतों का आंकड़ा क्या रहा?
22 प्रस्तावों के दौरान मत विभाजन हुआ। इनमें 1993 में सीपीआई (एम) के अजॉय मुखोपाध्याय द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव पर सबसे कड़ा मतदान हुआ था जब पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे। इस दौरान प्रस्ताव केवल 14 (पक्ष में 251 और विपक्ष में 265) के अंतर से गिर गया था। अंतर के मामले में, 22 प्रस्तावों में से नौ प्रस्ताव 200 से अधिक मतों के अंतर से गिर गए, जबकि 10 अन्य प्रस्ताव 100 और 200 मतों के अंतर से पास नहीं हो सके। बाकी तीन प्रस्ताव 100 से कम मतों के अंतर से गिर गए।