30 साल की युवती ने शुरू की वैराग्य की यात्रा, नम आंखों से माता-पिता ने किया विदा

Edited By Mahima,Updated: 26 Jun, 2024 05:00 PM

30 year old girl started her journey of renunciation

हमारे समाज में बेटी का जन्म एक बड़ा उत्सव होता है। माता-पिता अपनी बेटी को बड़े प्यार से पालते हैं और उसकी शादी बड़े धूमधाम से करते हैं।

नेशनल डेस्क: हमारे समाज में बेटी का जन्म एक बड़ा उत्सव होता है। माता-पिता अपनी बेटी को बड़े प्यार से पालते हैं और उसकी शादी बड़े धूमधाम से करते हैं। लेकिन जब बेटी सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर वैराग्य धारण करने का निर्णय लेती है, तो परिवार में एक विशेष प्रकार का माहौल बन जाता है। ऐसा ही एक उदाहरण फिरोजाबाद की नेहा जैन ने प्रस्तुत किया है, जिन्होंने जैन धर्म के अनुसार सांसारिक बंधनों को त्याग कर सन्यास ले लिया है। अब वह दीक्षा को अंतिम रूप देने के लिए अयोध्या जा रही हैं, जहां वह अपनी गुरुमाता से संपूर्ण दीक्षा लेंगी और जीवनभर के लिए अपने परिवार से नाता तोड़ लेंगी।

बचपन से धार्मिक रुचि
नेहा जैन, जिन्हें अब श्रेया दीदी के नाम से जाना जाता है, फिरोजाबाद के गांधी नगर में रहती थीं। उन्होंने लोकल 18 से बातचीत में अपने जीवन के बारे में बताया। नेहा का कहना है कि बचपन से ही वह पास के जैन मंदिर में जाया करती थीं, जहां जैन मुनियों के प्रवचन सुनती थीं। यहीं से उनकी धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ी। इसके साथ ही नेहा ने पढ़ाई भी जारी रखी। 20 वर्ष की उम्र में उन्होंने एक प्राइवेट स्कूल से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने लगीं।

घर से भागकर हस्तिनापुर
एक दिन अचानक नेहा बिना बताए मेरठ के पास स्थित हस्तिनापुर में एक जैन मंदिर में दीक्षा लेने के लिए गुरुमाता के पास पहुंच गईं। उनके घर न लौटने पर परिवार में चिंता बढ़ गई और परिजन हस्तिनापुर पहुंच गए। लेकिन नेहा ने घर वापस आने से मना कर दिया। अब नेहा की दीक्षा को पूर्ण करने के लिए फिरोजाबाद के श्री दिगंबर जैन मंदिर में गोद भराई और बिन्दौली यात्रा निकाली जा रही है। श्रेया दीदी का कहना है कि उन्होंने संसार के मोह माया को त्याग दिया है और अब उनके परिजन भी सांसारिक लोगों की तरह हैं जिनसे उनका कोई निजी संबंध नहीं है।

परिजनों की नम आंखें
नेहा की चाची अनुपमा जैन ने बताया कि नेहा के परिवार में दो बहनें और एक भाई है। नेहा सबसे छोटी हैं। उनकी बहनों की शादी हो चुकी है और पिता का तीन साल पहले स्वर्गवास हो चुका है। नेहा बचपन से ही धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होने की रुचि रखती थीं, लेकिन परिवार ने कभी नहीं सोचा था कि वह इतनी बड़ी प्रतिज्ञा कर लेंगी। जैन धर्म में वैराग्य धारण करने वाले व्यक्ति को रोका नहीं जाता, क्योंकि ऐसा करने से पाप लगता है। इसलिए परिवार ने नेहा को रोका नहीं, लेकिन बेटी होने के कारण उनसे सपने जुड़े हुए थे। नेहा की दीक्षा लेने के लिए उनके परिवार ने मंदिर में गोदभराई की रस्म को पूरा किया और विदाई दी। नेहा अब श्रेया दीदी बन चुकी हैं और जल्द ही अपनी गुरुमाता के पास अयोध्या चली जाएंगी। परिवार में एक तरफ खुशी है और एक तरफ दुख भी, लेकिन नेहा के इस निर्णय का सभी सम्मान करते हैं।
 

 

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