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Mahakumbh में 350 साधु करेंगे खप्पर तपस्या, बसंत पंचमी से शुरू होगी कठोर साधना

Edited By Rohini Oberoi,Updated: 31 Jan, 2025 01:07 PM

350 sadhus will perform khapar penance in mahakumbh

प्रयागराज में इस वक्त महाकुंभ की धूम जारी है जहां देश-विदेश से श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए आ रहे हैं। इस बीच वैष्णव परंपरा के तपस्वी वसंत पंचमी से कुंभनगरी में अपनी परंपरागत सबसे कठिन साधना शुरू करने जा रहे हैं। खाक चौक में इसकी तैयारियां पहले ही...

नेशनल डेस्क। प्रयागराज में इस वक्त महाकुंभ की धूम जारी है जहां देश-विदेश से श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए आ रहे हैं। इस बीच वैष्णव परंपरा के तपस्वी वसंत पंचमी से कुंभनगरी में अपनी परंपरागत सबसे कठिन साधना शुरू करने जा रहे हैं। खाक चौक में इसकी तैयारियां पहले ही शुरू हो चुकी हैं। इस बार करीब 350 साधक खप्पर तपस्या करेंगे। खप्पर तपस्या को धूनी साधना की सबसे कठिन श्रेणी माना जाता है और इसके आधार पर ही अखाड़े में साधुओं की वरिष्ठता तय की जाती है।

वैष्णव परंपरा और खप्पर तपस्या

वैष्णव परंपरा के तहत श्रीसंप्रदाय (रामानंदी संप्रदाय) में धूनी तापना सबसे बड़ी तपस्या मानी जाती है। पंचांग के अनुसार यह तपस्या सूर्य उत्तरायण के शुक्ल पक्ष से शुरू होती है। तपस्या से पहले साधक निराजली व्रत रखते हैं और फिर धूनी में बैठकर तपस्या की प्रक्रिया शुरू होती है। यह तपस्या छह चरणों में पूरी होती है जिनमें पंच, सप्त, द्वादश, चौरासी, कोटि और खप्पर श्रेणी शामिल हैं। हर श्रेणी तीन साल में पूरी होती है और इस तरह कुल 18 साल का समय लगता है।

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धिगंबर अखाड़े का दृष्टिकोण

दिगंबर अखाड़े के सीताराम दास ने बताया कि इन छह श्रेणियों में तपस्या की अलग-अलग प्रक्रिया होती है। सबसे प्रारंभिक तपस्या पंच श्रेणी होती है जिसमें साधक पांच जगह पर आग जलाकर उसकी आंच में तपस्या करते हैं। इसके बाद अन्य श्रेणियाँ आती हैं, जैसे सात स्थान पर अग्नि जलाना (सप्त), बारह स्थान पर (द्वादश), 84 स्थानों पर (चौरासी) और कोटि श्रेणी में सैकड़ों स्थानों पर अग्नि की आंच में तपस्या करनी होती है।

 

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खप्पर तपस्या – सबसे कठिन साधना

खप्पर तपस्या को सबसे कठिन माना जाता है। परमात्मा दास के अनुसार इस तपस्या में साधक अपने सिर पर मटके में रखकर अग्नि प्रज्वलित करते हैं। इस तपस्या की आंच के बीच साधक को रोजाना 6 से 16 घंटे तक तपस्या करनी होती है। यह तपस्या बसंत से गंगा दशहरा तक चलती है और तीन साल तक चलती है। इसके बाद साधक की 18 साल लंबी तपस्या पूरी मानी जाती है।

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साधक और उनकी वरिष्ठता

खाक चौक के तपस्वियों के लिए खप्पर तपस्या केवल एक साधना नहीं बल्कि उनकी वरिष्ठता भी तय करती है। महाकुंभ में कई साधक अपनी साधना की शुरुआत पंच धूना से करते हैं और जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते हैं खप्पर तपस्या तक पहुँचते हैं जिसे आखिरी और सबसे कठिन माना जाता है। खप्पर तपस्या करने वाले साधक को साधु समाज में सबसे वरिष्ठ माना जाता है। कुछ साधक खप्पर तपस्या पूरी करने के बाद इसे फिर से दोबारा भी शुरू करते हैं।

इस तरह कुंभ में खप्पर तपस्या की शुरुआत साधकों के लिए एक अहम अवसर है और यह उनकी साधना यात्रा का एक महत्वपूर्ण और कठिन कदम है।

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