पहले गैंगरेप, फिर मुंह में डाला एसिड और मौत...42 साल पहले कूचबिहार की रोंगटे खड़े कर देने वाली रेप घटना, नहीं मिला न्याय

Edited By Parminder Kaur,Updated: 30 Aug, 2024 12:01 PM

42 years ago the hair raising rape incident of cooch behar

कोलकाता में आरजी कर अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और मर्डर की घटना के बाद से शहर में जबरदस्त आक्रोश है। लोग सड़कों पर उतर आए हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं। धरना-प्रदर्शन और हिंसक विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है। सीबीआई मामले की जांच कर...

नेशनल डेस्क. कोलकाता में आरजी कर अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और मर्डर की घटना के बाद से शहर में जबरदस्त आक्रोश है। लोग सड़कों पर उतर आए हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं। धरना-प्रदर्शन और हिंसक विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है। सीबीआई मामले की जांच कर रही है। इन सभी के बीच पीड़िता की चीख और न्याय की मांग दबकर रह गई है। लोग चाहते हैं कि अपराधियों को सजा मिले और यह वादा किया जाए कि भविष्य में कोई और पीड़िता ऐसी स्थिति का सामना न करे।


पश्चिम बंगाल का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है और हाल की घटना को देखते हुए यह पुराना हादसा याद आता है। 42 साल पहले भी इस पूर्वी राज्य ने मूसलधार बारिश के बीच एक पीड़िता की चीख सुनी थी। तब से अब तक बारिश का मौसम आता और चला जाता है, लेकिन उस समय की अमानवीयता और न्याय की कमी का मलाल जस का तस बना रहता है। जून 1982 की उस रात में जो दर्दनाक घटना घटी, अगर पत्रकार अरबिंद भट्टाचार्य उसे सामने न लाते, तो शायद उस पीड़िता की चीख कभी नहीं सुनाई देती।

जून 1982 की रात क्या हुआ था:

जून का महीना कूचबिहार में हमेशा मूसलधार बारिश का समय होता है। साल 1982 था, पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु की सरकार सत्ता में थी और सीपीआई(एम) राज्य में प्रभावशाली थी। कूचबिहार उस समय एक छोटा शहर था, जहां राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियाँ काफी सीमित थीं। इस दौरान कूचबिहार में एक भयानक घटना घटी, जिसमें एक पीड़िता के साथ अमानवीयता की हदें पार की गईं। उस समय की रात की घटना ने समाज को हिला दिया, लेकिन न्याय की कमी और राजनीतिक दबाव ने उस पीड़िता की चीख को अनसुना कर दिया। इस प्रकार की घटनाएँ हमें याद दिलाती हैं कि हमें सिर्फ वर्तमान घटनाओं पर ही नहीं, बल्कि अतीत से भी सबक लेना चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी अमानवीयता को रोका जा सके।

उत्तरी बंगाल के बलूरघाट की एक युवती सरकारी नौकरी के सिलसिले में कूचबिहार आई थी। वह महाराजा जितेंद्र नारायण अस्पताल में स्टाफ नर्स के रूप में काम कर रही थी। वह अपनी बहन और जीजा के साथ एक छोटे से किराए के घर में रहती थी, जो पुराने पोस्ट ऑफिस के पास था। यह मोहल्ला उस पोस्ट ऑफिस के नाम से जाना जाता था। वह दिन भी अन्य दिनों की तरह ही था। उस शाम, वह काम से घर लौट आई थी। उस दिन उत्तर बंगाल में मूसलधार बारिश हो रही थी और पूरा शहर पानी से लबालब हो गया था। बारिश दिनभर, रातभर और अगले दिन भी जारी रही। शहर की सड़कों पर पानी भर गया, जिससे परिवहन और सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था।

सुबह के समय नर्स के पड़ोसियों ने उसे नग्न और अधमरी हालत में पाया। वह बोल भी नहीं पा रही थी। उसके शरीर की स्थिति से साफ था कि उसके साथ रेप हुआ था। उसके गले और निजी अंगों पर एसिड डाला गया था, जिससे वह जल गई थी। उसके मुंह में एसिड डाला गया था और चेहरे पर भी एसिड से जलने के निशान थे। वह इतनी बुरी हालत में थी कि अगर वह अपने अपराधियों को देख भी लेती, तो उन्हें पहचान नहीं सकती थी। रेप के निशान मिटाने के लिए भी एसिड का उपयोग किया गया था। बारिश की तेज आवाज में उसकी चीखें दब गई थीं।

स्थानीय लोग उसे रिक्शे पर बैठाकर उसी अस्पताल ले गए जहां वह काम करती थी। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन कुछ घंटे बाद उसकी मौत हो गई। इस घटना ने शहर को हिला दिया और लोग सड़कों पर उतर आए।

लोगों के गुस्से को देखते हुए मामले में तुरंत कार्रवाई की गई। दस लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन न्याय की प्रक्रिया बहुत धीमी और असंतोषजनक रही। इनमें से तीन आरोपियों को दस साल की जेल की सजा सुनाई गई, लेकिन हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद वे रिहा हो गए। बाकी सात आरोपियों को भी छोड़ दिया गया। इस अपराध के मुख्य आरोपी कथित रूप से बहुत प्रभावशाली और सत्ताधारी सरकार के करीबी थे, जिन्होंने अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल करके न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित किया। उनकी पहचान छिपाने के लिए एसिड का उपयोग किया गया और अदालतों में उनकी ताकत ने न्याय को और अधिक जटिल बना दिया।

पुलिस ने कुछ संदिग्धों से पूछताछ की, लेकिन राजनीतिक प्रभाव के कारण उन्हें भी रिहा कर दिया गया। उस समय कूचबिहार एक छोटा शहर था और मीडिया की सक्रियता भी सीमित थी। लेकिन जब यह कहानी लोकल अखबार 'उत्तर बंगा समाचार' में छपी, तो जनता आक्रोशित हो गई और वे सड़कों पर उतर आए। शहर ने उस लड़की की आवाज को फिर से उठाने की कोशिश की, लेकिन न्याय के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए। कूचबिहार के लोगों के लिए यह घटना सिर्फ एक दुखद याद बनकर रह गई है। घटना के कुछ दिनों बाद उस नर्स के दुखी पिता का निधन हो गया। उसकी बहन और जीजा आज भी 42 साल बाद अपनी बहन के लिए न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

इन 42 वर्षों में कूचबिहार ने आठ सरकारें, तीन मुख्यमंत्री और दो राजनीतिक दल देखे हैं। शहर ने बार-बार डूबती सड़कों और सरकारी उपेक्षा का सामना किया है। हर जून में मूसलधार बारिश होती है और शहर के लोग हर साल उस जून की रात की दुखद यादों को लेकर गहरी सांस लेते हैं और फिर अपने रोजमर्रा के काम में लग जाते हैं। पुराना पोस्ट ऑफिस, जो उस इलाके की पहचान था और जून की रात की घटना से जुड़ा था। अब नहीं रहा। इसके साथ ही उस घटना के लिए न्याय की उम्मीदें भी समाप्त हो गई हैं।

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