Edited By Mahima,Updated: 08 Feb, 2025 01:49 PM
दिल्ली विधानसभा चुनाव के शुरुआती परिणामों में आम आदमी पार्टी को बीजेपी से कड़ी चुनौती मिल रही है। अरविंद केजरीवाल की विश्वसनीयता, महिला योजनाओं का लागू न होना, शीशमहल विवाद, कांग्रेस से गठबंधन न होना और पानी और सफाई की समस्या जैसी कई वजहों से AAP को...
नेशनल डेस्क: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में बीजेपी करीब 47 सीटों के साथ सरकार बनाती हुई नजर आ रही है। करीब 27 साल बाद बीजेपी दिल्ली पर राज करेगी तो वहीं आम आदमी पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। आप के बड़े नेताओं को हार का सामना करना पड़ा। सीएम अतिशी को छोड़कर अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया अपनी सीट नहीं बचा सके। आखिर क्या वो 5 कारण रहे जिसके चलते लगातार 15 साल सत्ता में रहने वाली आप को हार का सामना करना पड़ा? आइए जानें-
1. अनर्गल आरोपों और झूठ से समर्थकों की नाराजगी
अरविंद केजरीवाल पर अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि वे अपने विरोधियों पर बिना आधार के आरोप लगाते रहे हैं। इसके चलते कई बार उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी है, जिससे उनकी छवि एक ऐसे नेता की बनती गई, जिसकी बातों पर भरोसा करना मुश्किल हो गया। सबसे बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब उन्होंने हरियाणा सरकार पर जानबूझकर दिल्ली को जहरीला पानी भेजने का आरोप लगाया। उन्होंने यह तक कहा कि हरियाणा सरकार दिल्ली में नरसंहार करना चाहती है। इस आरोप पर हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने खुद दिल्ली बॉर्डर पर जाकर यमुना का पानी पीकर इस दावे को गलत साबित किया। इस स्थिति ने न केवल उनके विरोधियों को मौका दिया, बल्कि उनके हार्डकोर समर्थक भी नाराज हो गए, क्योंकि वे इस तरह के बिना आधार के आरोपों से परेशान थे।
2. ‘शीशमहल’ विवाद ने सादगी की छवि को नुकसान पहुंचाया
अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में आने से पहले वीवीआईपी कल्चर के खिलाफ आवाज उठाई थी और कहा था कि वे कभी भी सरकारी सुविधाओं का उपयोग नहीं करेंगे। लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने न केवल सरकारी बंगले और गाड़ियों का इस्तेमाल किया, बल्कि अपने लिए एक बेहद महंगा मुख्यमंत्री आवास भी बनवाया, जिसे मीडिया ने ‘शीशमहल’ का नाम दिया। सीएजी (कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) की रिपोर्ट में भी उनके मुख्यमंत्री आवास पर हुए भारी खर्च पर सवाल उठाए गए। इससे उनकी सादगी वाली छवि को बड़ा झटका लगा, और जनता में उनके प्रति अविश्वास बढ़ गया। जनता को यह संदेश गया कि उनका रवैया अब पहले जैसा नहीं रहा, और यह मुद्दा उनके खिलाफ खड़ा हो गया।
3. कांग्रेस और AAP का गठबंधन न होना
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र चुनावों के दौरान 'बंटे तो कटे' का नारा दिया था, जो हिंदू एकता के संदर्भ में था। इस नारे से कुछ राजनीतिक दलों ने यह सिखा कि जब विपक्षी दल एकजुट होते हैं तो उनका वोट एकजुट हो सकता है। हालांकि, दिल्ली में AAP और कांग्रेस के बीच कोई गठबंधन नहीं बन सका। कांग्रेस ने कभी भी AAP के साथ गठबंधन करने के लिए गंभीर कोशिश नहीं की। इससे वोटों का विभाजन हुआ और इसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ। इसके कारण भाजपा को अधिक सीटों पर जीत मिली, क्योंकि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के वोट अलग-अलग बंट गए।
4. महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता योजना का लागू न होना
अरविंद केजरीवाल ने चुनाव से पहले महिलाओं के लिए एक निश्चित आर्थिक सहायता योजना का वादा किया था। लेकिन यह योजना चुनाव से पहले लागू नहीं हो पाई, जिससे जनता में यह संदेश गया कि वे अगर चुनाव से पहले इस योजना को लागू नहीं कर सके, तो भविष्य में भी इसे लागू करने में असफल हो सकते हैं। झारखंड में झामूमो सरकार की जीत का एक बड़ा कारण महिलाओं के लिए लागू की गई आर्थिक सहायता योजना थी, लेकिन दिल्ली में ऐसा नहीं हो सका। इस योजना को लागू न करने से महिला मतदाताओं में निराशा फैल गई, जो AAP के खिलाफ गई।
5. गंदे पानी और सफाई की समस्या
दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने मुफ्त सुविधाओं के वादे किए थे और इसने जनता का समर्थन भी पाया था, लेकिन जब बुनियादी सुविधाओं की बात आई तो सरकार को पूरी तरह से विफलता का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ा मुद्दा पानी की सप्लाई का था। गर्मियों में दिल्ली में लोग साफ पानी के लिए परेशान रहते थे, और टैंकर माफिया पूरी तरह हावी हो चुका था। अरविंद केजरीवाल ने 24 घंटे स्वच्छ जल सप्लाई का वादा किया था, लेकिन यह वादा पूरा नहीं हुआ। इसके अलावा, दिल्ली की सफाई व्यवस्था भी पूरी तरह से खराब हो गई थी। एमसीडी में भी आम आदमी पार्टी की सरकार थी, और इस कारण पार्टी के पास कोई बहाना नहीं था। इससे जनता में सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ी, जो इस हार का एक और बड़ा कारण बन गया।