Edited By rajesh kumar,Updated: 29 Jan, 2025 02:37 PM
प्रयागराज में आज (29 जनवरी) मौनी अमावस्या के दिन दूसरा शाही स्नान हो रहा था, तभी रात करीब एक बजे संगम पर भगदड़ मच गई। इस हादसे में एक दर्जन लोग मारे गए और कई लोग घायल हो गए।
नई दिल्ली: प्रयागराज में आज (29 जनवरी) मौनी अमावस्या के दिन दूसरा शाही स्नान हो रहा था, तभी रात करीब एक बजे संगम पर भगदड़ मच गई। इस हादसे में एक दर्जन लोग मारे गए और कई लोग घायल हो गए। घटनास्थल की तस्वीरें काफी परेशान करने वाली थीं, जिनमें कपड़े, बैग, जूते-चप्पल और अन्य सामान इधर-उधर पड़े हुए थे, जबकि अस्पतालों में लाशें फर्श पर पड़ी हुई थीं। यह हादसा 71 साल पहले हुए महाकुंभ हादसे की याद दिलाता है, जिसमें 800 से ज्यादा लोग मारे गए थे। आइए जानते में कब-कब हुए बड़े हादसे...
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1954 में भारत में स्वतंत्रता के बाद पहला महाकुंभ इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में आयोजित हुआ था। उस समय भी 3 फरवरी को मौनी अमावस्या थी और शाही स्नान के लिए लाखों लोग संगम तट पर मौजूद थे। उस दिन पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी वहां थे। कहा जाता है कि उन्हें देखने के लिए लगी भारी भीड़ के कारण भगदड़ मची। हालांकि, उस समय के अखबारों के मुताबिक, भगदड़ की वजह कुछ और थी।
1954 के महाकुंभ में मारे गए थे 800 से ज्यादा लोग
1954 के महाकुंभ में जब शाही स्नान के लिए लोग संगम के किनारे खड़े थे, तो अखाड़ों का जुलूस निकल रहा था। जुलूस के कारण रास्ता बंद हो गया था और लोग निकलने के लिए धक्का-मुक्की करने लगे। इस दौरान नागा साधुओं ने अपने त्रिशूल श्रद्धालुओं की ओर मोड़े, जिससे भगदड़ मच गई। कुछ लोग जुलूस के बीच से निकलने की कोशिश कर रहे थे, जबकि कुछ लोग गंगा में गिर गए। इस हादसे में कई लोग मारे गए और 2000 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि उस दिन सुबह 10 बजे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की कार त्रिवेणी रोड से निकली थी। लोगों ने यह जानकर बैरीकेड तोड़ दिए और उन्हें देखने के लिए दौड़ पड़े, जिसके बाद नागा साधुओं का जुलूस सामने आ गया और भगदड़ मच गई। इस हादसे में 800 से 1000 लोगों के मारे जाने की खबरें आईं थीं। इस घटना के कुछ दिन बाद, प्रधानमंत्री नेहरू ने बजट सत्र के दौरान इस हादसे पर गहरा शोक व्यक्त किया था।
1986 में 200 लोगों की गई थी जान
वहीं, साल 1986 में कुंभ मेले में एक भगदड़ में कम से कम 200 लोगों की जान चली गई थी। उस समय तत्कालीन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सांसदों के साथ हरिद्धार पहुंचे। उन्हें देखने के लिए भीड़ इक्ट्ठा हो गई। जब सुरक्षाकर्मियों ने आम लोगों को नदी के किनारे जाने से रोका तो भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ मच गई।
2013 में 42 लोगों की गई थी जान
ऐसी ही एक और त्रासदी 2003 में हुई जिसमें महिलाओं समेत कम से कम 39 लोग मारे गए और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। यह मुंबई के नासिक में उस समय भगदड़ मची गई जब कुंभ मेले के दौरान पवित्र स्नान के लिए गोदावरी नदी में हजारों श्रद्धालु इक्ट्ठा हो गए थे और भगदड़ मच गई थी। उत्तर प्रदेश के कुंभ मेले में 10 फरवरी 2013 को इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर एक फुटब्रिज के ढह जाने से भगदड़ मच गई थी और इसमें 42 लोगों की जान चली गई जबकि 45 लोगो घायल हुए थे। इसके बाद साल 2025 में मंगलवार-बुधवार की रात को महाकुंभ के संगम नोज पर भगदड़ जैसे हालात बन गए और कई लोग घायल हो गए।