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हर घर पर बेटी की नेमप्लेट, देश के इस गांव में दिखा सोच में बड़ा बदलाव

Edited By Mahima,Updated: 12 Aug, 2024 11:45 AM

a big change in thinking seen in this village of the country

झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के आदिवासी बहुल तिरिंग गांव ने बेटियों के प्रति समाज की सोच को बदलने में एक अद्वितीय पहल की है। यहां के हर घर की नेमप्लेट अब बेटियों के नाम पर लगी है, जिससे गांव का स्लोगन "मेरी बेटी, मेरी पहचान" बन गया है।

नेशलन डेस्क:  झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के आदिवासी बहुल तिरिंग गांव ने बेटियों के प्रति समाज की सोच को बदलने में एक अद्वितीय पहल की है। यहां के हर घर की नेमप्लेट अब बेटियों के नाम पर लगी है, जिससे गांव का स्लोगन "मेरी बेटी, मेरी पहचान" बन गया है। इस अभियान ने न केवल लिंगानुपात को सुधारा है बल्कि दहेज और भ्रूण हत्या जैसे सामाजिक मुद्दों को भी काफी हद तक समाप्त किया है।

बेटियों के नाम की नेमप्लेट: एक क्रांतिकारी पहल
2016 में शुरू हुए इस अभियान के तहत, तिरिंग गांव में हर घर की नेमप्लेट पर बेटियों के नाम लिखे गए। उस समय गांव में 58 लड़के और 43 लड़कियां थीं, लेकिन अब लिंगानुपात में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। अब गांव में 107 लड़कों के मुकाबले 116 लड़कियां (1 से 20 साल के बीच) हैं। इसके चलते, तिरिंग गांव में लड़कियों की संख्या अब पुरुषों की संख्या से अधिक हो गई है, जबकि आसपास के गांवों में यह अनुपात विपरीत है।

लड़कियों को पढ़ाने के प्रति शानदार उत्साह
तिरिंग गांव के इस अभियान का एक बड़ा लाभ यह है कि यहां सभी बेटियां अब स्कूल जाती हैं। 2016 से पहले, 5 से 20 वर्ष की आयु की 70% लड़कियां ही स्कूल जाती थीं, लेकिन अब सभी लड़कियां शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। गांव की आंगनवाड़ी सहायिका सुलोचना सरदार बताती हैं कि लड़कियों को पढ़ाने के प्रति गांव में एक उत्साह देखने को मिल रहा है, जिससे हर युवा पढ़ा-लिखा है।

भ्रूण हत्या और दहेज के खिलाफ सख्त कदम
गांव के मुखिया सुखलाल सरदार ने बताया कि अभियान के बाद से गांव में एक भी भ्रूण हत्या की घटना नहीं हुई है और न ही दहेज की कोई मांग की गई है। उन्होंने बताया कि अब सभी घरों में शौचालय हैं और खाना सिलेंडर से बनता है। यह सुधार सामाजिक जागरूकता और सरकारी योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन का नतीजा है। गांव की निवासी संध्या सरदार और अनीता मुंडा ने बताया कि अभियान के शुरू होने से पहले और बाद में कई योजनाओं और कार्यक्रमों के लाभ ने गांव के हालात को बेहतर बनाया। इससे लोगों में जागरूकता आई और लड़कियों के प्रति सोच में बदलाव आया।

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