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पति ने मानी थी पत्नी के हत्या की बात, डेढ़ साल जेल में भी बिताए, कोर्ट में अचानक पहुंची जिंदा महिला

Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 05 Apr, 2025 05:31 PM

a living woman suddenly arrived in court

कर्नाटक के मैसूर से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पुलिस जांच की गंभीरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक व्यक्ति जिसने अपनी पत्नी की कथित हत्या कबूल की, डेढ़ साल जेल में बिताए और अब वही “मृत पत्नी” कोर्ट में जिंदा पहुंच गई। यह न सिर्फ पुलिस की जांच...

नेशनल डेस्क: कर्नाटक के मैसूर से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पुलिस जांच की गंभीरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक व्यक्ति जिसने अपनी पत्नी की कथित हत्या कबूल की, डेढ़ साल जेल में बिताए और अब वही “मृत पत्नी” कोर्ट में जिंदा पहुंच गई। यह न सिर्फ पुलिस की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाता है बल्कि इंसाफ की सच्ची तस्वीर भी दिखाता है — कैसे लापरवाही एक निर्दोष की जिंदगी बदल सकती है।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला 38 वर्षीय कुरुबारा सुरेश से जुड़ा है। दिसंबर 2020 में सुरेश ने कोडागु जिले के पुलिस स्टेशन में अपनी पत्नी मल्लिगे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। कुछ समय तक कोई सुराग नहीं मिला। लेकिन जून 2021 में बेट्टादपुरा पुलिस को एक अज्ञात महिला का कंकाल मिला। बिना डीएनए टेस्ट के, केवल कपड़ों और चूड़ियों के आधार पर पुलिस ने मान लिया कि वह कंकाल मल्लिगे का है। सुरेश पर दबाव डाला गया और उसे पत्नी की हत्या का आरोपी बना दिया गया। इसके बाद सितंबर 2022 से मुकदमा शुरू हुआ और सुरेश ने डेढ़ साल से ज्यादा वक्त जेल में बिता दिया।

जब “मृत” पत्नी खुद कोर्ट में आई

1 अप्रैल 2025 को कहानी में बड़ा मोड़ आया। मल्लिगे को मैसूर के मदीकेरी में कुछ परिचितों ने देखा और पुलिस को सूचित किया। अगले ही दिन मल्लिगे जिंदा कोर्ट में पेश हुई। कोर्ट में मल्लिगे ने बयान दिया कि वह अपने प्रेमी के साथ रह रही थी और उसे अपने पति सुरेश पर लगे किसी आरोप की कोई जानकारी नहीं थी। उसने साफ किया कि कंकाल के पास मिले कपड़े और चूड़ियाँ उसकी नहीं थीं।

कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने इस मामले में पुलिस जांच को बेहद लापरवाह और अनुमान आधारित बताया। न्यायाधीश ने सवाल उठाया कि,

“कपड़े और चूड़ियों के आधार पर किसी की पहचान कैसे तय की जा सकती है? बिना डीएनए टेस्ट, बिना डिजिटल सबूत कैसे हत्या का मामला दर्ज कर दिया गया?”

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह देश में तीसरी या चौथी ऐसी घटना है, जहां बिना पर्याप्त सबूत के किसी को आरोपी बना दिया गया।

पुलिस की कार्यशैली पर उठे सवाल

मैसूर के पुलिस अधीक्षक एन. विष्णुवर्धन को इस मामले की नई जांच करने का आदेश दिया गया है और 17 अप्रैल तक रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है। अदालत ने पहले दर्ज आरोपपत्र को रद्द करने योग्य बताया क्योंकि यह सिर्फ अनुमान और मनमानी पर आधारित था।

सुरेश के परिवार की पीड़ा

सुरेश के पिता कुरुबार गांधी ने कहा कि पुलिस ने उनके बेटे को झूठा फंसा कर प्रताड़ित किया। उन्होंने मांग की कि सुरेश को उसके खोए हुए डेढ़ साल के लिए उचित मुआवजा दिया जाए। सुरेश के वकील ने भी बताया कि वह हाई कोर्ट में मुआवजे के लिए याचिका दाखिल करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि इस घटना ने सुरेश की सामाजिक और मानसिक स्थिति को बुरी तरह प्रभावित किया है।

 

 

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