Edited By Utsav Singh,Updated: 22 Sep, 2024 03:26 PM
भारत में हर धर्म के लिए विशेष धार्मिक स्थल होते हैं, और अक्सर देखा जाता है कि मंदिर और मस्जिद एक-दूसरे के निकट स्थित होते हैं। हालांकि, यह बहुत ही दुर्लभ होता है कि एक मंदिर परिसर के अंदर मस्जिद भी बनी हो। आज हम आपको बिहार के रोहतास जिले में स्थित...
नेशनल डेस्क : हम एक धर्मनिरपेक्ष देश में रहते हैं, जहां विभिन्न धर्मों के लोग मिलकर शांति और सौहार्द के साथ जीवन बिताते हैं। भारत में हर धर्म के लिए विशेष धार्मिक स्थल होते हैं, और अक्सर देखा जाता है कि मंदिर और मस्जिद एक-दूसरे के निकट स्थित होते हैं। हालांकि, यह बहुत ही दुर्लभ होता है कि एक मंदिर परिसर के अंदर मस्जिद भी बनी हो। आज हम आपको बिहार के रोहतास जिले में स्थित एक ऐसी ही मस्जिद के बारे में बताने जा रहे हैं, जो एक मंदिर परिसर में बनी हुई है, लेकिन इसके निर्माण के बाद से यहां नमाज़ नहीं पढ़ी गई है।
क्या है मस्जिद का निर्माण का इतिहास
यह मस्जिद 16वीं सदी के दौरान मुग़ल शासक औरंगजेब के शासनकाल में बनवाई गई थी। औरंगजेब ने उस समय देशभर में मंदिरों को नष्ट करने का अभियान चलाया था। सासाराम के मां ताराचंडी मंदिर को भी उसने निशाना बनाया, लेकिन मंदिर को तोड़ने में असफल रहा। इसके बाद उसने मंदिर परिसर में एक मस्जिद का निर्माण करवाया। मस्जिद का निर्माण उस समय की इस्लामी वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसकी दीवारों पर की गई नक्काशी और सुंदर आर्किटेक्चर उस काल के कला और निर्माण शैली को दर्शाती है।
मंदिर परिसर में मस्जिद का स्थान
मंदिर के परिसर में स्थित होने के कारण, जहां मुख्यतः हिंदू भक्त मां ताराचंडी की पूजा-अर्चना के लिए आते हैं, मस्जिद का उपयोग नमाज़ के लिए नहीं हुआ। इसके अलावा, मस्जिद की देखभाल और प्रबंधन में कमी भी एक कारण हो सकता है कि इसे नमाज़ के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया। फिर भी, इस मस्जिद को एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया है। इसका ऐतिहासिक महत्व आज भी कायम है और यह सांस्कृतिक और वास्तुकला की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। मस्जिद का यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व उसे एक अनमोल धरोहर बनाता है, जिसे आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जा रहा है।
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ताराचंडी का मंदिर हिंदू धर्म के लिए महत्वपूर्ण स्थल
मां ताराचंडी का मंदिर हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में मां तारा का पवित्र रूप वास करता है, जो श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाओं को पूरा करने में सक्षम है। इस मंदिर की पूजा-अर्चना के लिए देशभर से भक्त यहां आते हैं और इसे अपने जीवन के लिए अत्यंत शुभ मानते हैं। मंदिर के गर्भगृह में मां तारा की एक दिव्य और पवित्र मूर्ति स्थापित की गई है। भक्त इस मूर्ति को देखकर आत्मिक शांति और ऊर्जा का अनुभव करते हैं। यह मूर्ति मां तारा की शक्ति और दिव्यता का प्रतीक मानी जाती है।
क्या है धार्मिक मान्यताएँ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां ताराचंडी की पूजा करने से जीवन के सभी दुख-दर्द समाप्त हो जाते हैं और सुख-समृद्धि का आगमन होता है। भक्तों का विश्वास है कि मां तारा की कृपा से उनके जीवन में खुशहाली और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, जिससे वे मानसिक और भावनात्मक रूप से सशक्त महसूस करते हैं।
यह मस्जिद हिंदू- मुस्लिम एकता का प्रतीक
यह मस्जिद औरंगजेब द्वारा बनवाई गई उस समय की इस्लामी कला और निर्माण शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मस्जिद की दीवारों पर उकेरी गई नक्काशी और उसकी खूबसूरत आर्किटेक्चर उस दौर के वास्तुकला की विशेषताओं को दर्शाती है। मस्जिद का निर्माण उस काल में हुआ था जब धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक समरसता की भावना का महत्व था। शेर शाह सूरी के शासनकाल में हिंदू-मुस्लिम एकता को बनाए रखने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए थे, और यह मस्जिद उसी भावना का प्रतीक मानी जाती है।
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इस परिसर में कभी नमाज़ अदा नहीं की गई
इतिहासकारों के अनुसार, इस मस्जिद में लंबे समय से नमाज़ अदा नहीं की गई है। इसके पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं, जैसे कि मुख्य रूप से एक हिंदू धार्मिक स्थल होने की वजह से नमाज़ पढ़े जाने की परंपरा का न होना, और मस्जिद की देखभाल और प्रबंधन में कमी। फिर भी, इस मस्जिद को ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया है। इसका ऐतिहासिक महत्व आज भी अटूट है और यह सांस्कृतिक और वास्तुकला की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। मस्जिद का यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व उसे एक अनमोल धरोहर बनाता है, जिसे आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जा रहा है।