Edited By Rohini Oberoi,Updated: 31 Jan, 2025 10:00 AM
झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले से एक अनोखा मामला सामने आया है जहां एक गांव में सिर्फ एक पुरुष बचा था और उसकी भी बीमारी से मौत हो गई। चौंकाने वाली बात यह है कि गांव की महिलाओं ने ही उसकी अर्थी तैयार की बेटियों ने कंधा दिया और पत्नी अंतिम यात्रा में...
नेशनल डेस्क। झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले से एक अनोखा मामला सामने आया है जहां एक गांव में सिर्फ एक पुरुष बचा था और उसकी भी बीमारी से मौत हो गई। चौंकाने वाली बात यह है कि गांव की महिलाओं ने ही उसकी अर्थी तैयार की बेटियों ने कंधा दिया और पत्नी अंतिम यात्रा में शामिल हुई।
गांव में सिर्फ एक ही पुरुष बचा था
यह मामला जिले के घाटशिला थाना क्षेत्र के कालचिती पंचायत के रामचंद्रपुर गांव का है। यहां रहने वाले 40 वर्षीय जुंआ सबर गांव के इकलौते पुरुष थे। गांव में बाकी सभी पुरुष मजदूरी के लिए केरल और तमिलनाडु चले गए थे और मुश्किल से कभी गांव आ पाते हैं। जुंआ सबर की मौत के बाद गांव में कोई पुरुष नहीं बचा जिससे महिलाओं ने ही अंतिम संस्कार की सारी रस्में निभाईं।
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कैसे हुआ अंतिम संस्कार?
जुंआ सबर की मौत के बाद गांव की महिलाओं ने मिलकर उनकी अर्थी तैयार की। उनकी बेटियों ने पिता को कंधा दिया और दूसरी पत्नी शवयात्रा में शामिल हुई। गांव की महिलाओं ने मिलकर शव को दफनाने के लिए गड्ढा भी खोदा।
गांव की दयनीय स्थिति
रामचंद्रपुर गांव जंगलों के बीच बसा एक पिछड़ा गांव है। यहां सबर जाति के 28 परिवार रहते हैं जिनकी कुल आबादी लगभग 80-85 लोगों की है। गांव के करीब 20 पुरुष मजदूरी के लिए दूसरे राज्यों में रहते हैं, जिससे गांव में सिर्फ महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग ही रह जाते हैं। गांव में कोई पक्की सड़क या अन्य सुविधाएं नहीं हैं जिससे लोगों को बेहद कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
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मृतक का परिवार
जुंआ सबर ने दो शादियां की थीं। उनकी पहली पत्नी की पहले ही मौत हो चुकी थी। उनका 17 वर्षीय बेटा तमिलनाडु में मजदूरी करता है और दूसरा 10 साल का बेटा किसी रिश्तेदार के घर था। उनकी मौत के बाद पूरे गांव में मातम छा गया है।
यह घटना क्यों महत्वपूर्ण है?
यह घटना बताती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में किस तरह लोग रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं जिससे गांव खाली हो रहे हैं। साथ ही यह भी दिखाता है कि समाज में महिलाएं किस तरह से हर जिम्मेदारी निभाने में सक्षम हो रही हैं भले ही वह अंतिम संस्कार जैसा परंपरागत रूप से पुरुषों का काम ही क्यों न हो।
वहीं इस घटना से प्रशासन को सीख लेनी चाहिए और ऐसे गांवों में रोजगार और विकास के लिए कदम उठाने चाहिए ताकि लोग अपने गांवों को छोड़ने के लिए मजबूर न हों।