AI स्टार्टअप के CEO दक्ष गुप्ता ने हफ्ते में 84 घंटे काम करने वाले वर्क कल्चर की कर दी वकालत, Narayana Murthy से मेल खाती सोच

Edited By Mahima,Updated: 21 Nov, 2024 03:04 PM

ai startup ceo daksh gupta advocates a work culture of working 84 hours a week

AI स्टार्टअप Graystile के CEO दक्ष गुप्ता ने हफ्ते में 84 घंटे काम करने की वकालत की, जिसमें रात के घंटों और वीकेंड्स पर काम शामिल है। उनका मानना है कि यह स्टार्टअप की वृद्धि के लिए आवश्यक है। उनका दृष्टिकोण नारायण मूर्ति के विचारों से मेल खाता है।...

नई दिल्ली: इन दिनों भारतीय AI स्टार्टअप Graystile के CEO दक्ष गुप्ता सोशल मीडिया पर एक विवादित पोस्ट को लेकर चर्चा में हैं। उन्होंने अपनी कंपनी के कर्मचारियों के लिए हफ्ते में 84 घंटे काम करने की वकालत की है, जिससे कुछ लोग उनसे सहमत हैं, जबकि कई लोग उनकी आलोचना भी कर रहे हैं। दक्ष गुप्ता का यह दृष्टिकोण भारतीय उद्योगपति नारायण मूर्ति के विचारों से मेल खाता है, जो अपने समय में वर्क कल्चर को लेकर इसी तरह के विचार व्यक्त कर चुके थे। 

दक्ष गुप्ता का वर्क कल्चर
दक्ष गुप्ता ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा किया, जिसमें उन्होंने Graystile के वर्क कल्चर के बारे में खुलकर बात की। उन्होंने लिखा, "हमारी कंपनी में एक हफ्ते में 84 घंटे काम होता है। काम की घड़ी देर रात तक चलती है और वीकेंड पर भी कर्मचारियों को काम करना होता है।" गुप्ता ने यह भी स्पष्ट किया कि कंपनी में काम और जीवन के बीच कोई संतुलन नहीं होता है। उनके अनुसार, स्टार्टअप्स की शुरुआत में इस तरह के वर्क कल्चर को अपनाना अनिवार्य है, ताकि कंपनी तेज़ी से आगे बढ़ सके और सफलता हासिल कर सके। उन्होंने इंटरव्यू के दौरान यह भी कहा कि उन्होंने नौकरी के लिए आए उम्मीदवारों से पहले ही यह साफ कर दिया था कि Graystile में काम करने का कोई पारंपरिक वर्क-लाइफ बैलेंस नहीं है। "यहां हर दिन कर्मचारियों का काम सुबह 9 बजे से रात 11 बजे तक चलता है और वीकेंड पर भी हमें काम करना होता है।" उनका मानना है कि इस कठोर वर्क कल्चर के जरिए स्टार्टअप की विकास दर को बढ़ाया जा सकता है और यह कंपनी को प्रतिस्पर्धा में आगे रखने में मदद करेगा। 

नारायण मूर्ति का वर्क कल्चर पर दृष्टिकोण
दक्ष गुप्ता के विचारों को लेकर लोगों का कहना है कि वह भारतीय आईटी उद्योग के दिग्गज और इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति के विचारों से प्रेरित हैं। मूर्ति ने भी अपने शुरुआती दिनों में कड़ी मेहनत और लंबे घंटे काम करने के महत्व पर जोर दिया था। उनका कहना था कि जब 1986 में भारत में कंपनियों ने हफ्ते में 5 दिन काम की संस्कृति को अपनाया, तो यह उन्हें निराश कर गया था, क्योंकि उनका मानना था कि अगर किसी कंपनी को विकास करना है, तो कर्मचारियों को ज्यादा समय तक काम करना पड़ेगा। मूर्ति के अनुसार, उनके ऑफिस का कामकाजी घंटा सुबह 6:30 बजे से शुरू होकर रात 8:40 बजे तक चलता था। उन्होंने इस बारे में कहा था, "हमारे समय में कड़ी मेहनत और लंबी शिफ्टों के साथ काम करना महत्वपूर्ण था, ताकि हम कंपनी को ऊंचाइयों तक ले जा सकें।"

दक्ष गुप्ता को मिली जान से मारने की धमकियां
दक्ष गुप्ता का यह बयान सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो गया है, लेकिन उनके लिए यह चर्चा विवादों में भी बदल गई है। कई लोग उनके वर्क कल्चर की आलोचना कर रहे हैं और इसे कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मान रहे हैं। इस आलोचना के बावजूद, गुप्ता को जान से मारने की धमकियां भी मिली हैं। उन्होंने खुद बताया, "मेरे इनबॉक्स में 20% लोग मुझे जान से मारने की धमकियां भेज रहे हैं, जबकि 80% लोग नौकरी के लिए आवेदन कर रहे हैं।" इस बारे में बात करते हुए गुप्ता ने कहा, "किसी को भी किसी दूसरे के कामकाजी दृष्टिकोण के बारे में धमकी देने का अधिकार नहीं है। हम सिर्फ स्टार्टअप्स के विकास के लिए गंभीर और समर्पित कार्य करने की कोशिश कर रहे हैं।" इसके बावजूद, उन्हें मिले आलोचनाओं और धमकियों से वह विचलित नहीं हुए हैं और उन्होंने इस वर्क कल्चर के लिए अपने विश्वास को बनाए रखा है।

वर्क कल्चर पर विवाद और समर्थन
जहां कुछ लोग गुप्ता के वर्क कल्चर को उचित मानते हुए इसे एक स्टार्टअप के विकास के लिए आवश्यक मानते हैं, वहीं कई विशेषज्ञ इस विचार से असहमत हैं। उनका कहना है कि लंबे समय तक काम करने से कर्मचारियों की उत्पादकता कम हो सकती है और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि वर्क-लाइफ बैलेंस को महत्व देना आज के समय की जरूरत है, खासकर जब एक टीम को अच्छा काम और नई सोच के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा हो। वहीं, गुप्ता के समर्थन में भी कई लोग खड़े हैं, जो मानते हैं कि स्टार्टअप्स के शुरुआती दिनों में कड़ी मेहनत और लंबे घंटे काम करने से कंपनी को लाभ होता है और यह सफलता की कुंजी हो सकती है।

उनका कहना है कि कर्मचारियों को इस बात की स्पष्टता देनी चाहिए कि शुरुआत में काम के घंटों के मामले में कोई लचीलापन नहीं होगा, ताकि बाद में किसी प्रकार की उम्मीदें न हों। दक्ष गुप्ता का बयान और उनकी वर्क कल्चर की वकालत भारतीय स्टार्टअप्स और कार्य संस्कृति पर एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन गया है। जबकि यह विचार कुछ के लिए प्रेरणादायक हो सकता है, वहीं यह अन्य लोगों के लिए चिंताजनक भी हो सकता है। सवाल यह है कि क्या वर्क-लाइफ बैलेंस को नकारते हुए इस प्रकार का कठोर वर्क कल्चर स्टार्टअप्स के लिए दीर्घकालिक सफलता का रास्ता बन सकता है, या यह कर्मचारियों की सेहत और कामकाजी संतुलन को नुकसान पहुंचा सकता है।

 

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