Edited By Harman Kaur,Updated: 13 Feb, 2025 12:40 PM
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सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम से जुड़ा एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई शादी अमान्य घोषित भी हो जाती है, तो भी उस व्यक्ति को स्थायी गुजारा भत्ता और अंतरिम भरण-पोषण से इंकार नहीं किया जा सकता। यह फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि...
नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम से जुड़ा एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई शादी अमान्य घोषित भी हो जाती है, तो भी उस व्यक्ति को स्थायी गुजारा भत्ता और अंतरिम भरण-पोषण से इंकार नहीं किया जा सकता। यह फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि केस के तथ्यों और संबंधित पक्षों का आचरण क्या है।
कोर्ट ने क्या कहा ?
सुप्रीम कोर्ट की बेंच में जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने 12 फरवरी को इस मामले की सुनवाई की। यह विवाद सुखदेव सिंह और उनकी पत्नी सुखबीर कौर के बीच हुआ था। सुखदेव ने दलील दी कि उनकी शादी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत अमान्य घोषित हो चुकी है, इसलिए उनकी पत्नी सुखबीर कौर गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं हैं।
कोर्ट ने कहा, "अगर किसी शादी को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत अमान्य घोषित किया जाता है, तो भी संबंधित व्यक्ति को धारा 25 के तहत मुआवजा मिल सकता है। यह पूरी तरह से केस के तथ्यों और पक्षों के आचरण पर निर्भर करेगा।"
पिछले फैसलों में था मतभेद
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट की जजों की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की थी, लेकिन इसके बाद इसे तीन जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया गया था। दरअसल, हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह के अमान्य होने पर भरण पोषण देने के मुद्दे पर विभिन्न बेंचों के फैसलों में विरोधाभास था।
अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने कहा था कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह अमान्य होने पर भी भरण पोषण दिया जाएगा, जबकि कुछ अन्य फैसलों में यह कहा गया था कि ऐसे मामलों में भरण पोषण नहीं दिया जाएगा। सुखबीर कौर की तरफ से पेश वकील महालक्ष्मी पवनी ने अदालत को बताया कि इस मुद्दे पर दो जजों के फैसले लगातार विरोधी रहे हैं। इसी कारण इस मामले को तीन जजों की बेंच के पास भेजा गया था। इस फैसले से यह साफ हो गया है कि किसी भी शादी के अमान्य होने के बाद भी भरण पोषण का अधिकार तब तक बने रहता है, जब तक केस के तथ्यों और संबंधित पक्षों के आचरण की समीक्षा नहीं की जाती।