Edited By Mahima,Updated: 03 Jan, 2025 04:25 PM
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की ईमानदारी का एक प्रेरक किस्सा सामने आया है, जिसमें उन्होंने चुनाव हारने के बाद भी खुशवंत सिंह से लिया गया चंदा पूरी तरह से लौटाया। राहुल सिंह ने अपने पिता खुशवंत सिंह के हवाले से यह किस्सा साझा किया, जो डॉ. सिंह...
नेशनल डेस्क: पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, जिनका 26 दिसंबर 2024 को निधन हुआ, उनके जीवन से जुड़ी कई दिलचस्प और प्रेरणादायक घटनाएँ अब सामने आ रही हैं। एक ऐसा ही दिल छूने वाला किस्सा हाल ही में वरिष्ठ पत्रकार राजीव सरदेसाई ने साझा किया, जो भारतीय राजनीति में डॉ. मनमोहन सिंह के ईमानदार, परिश्रमी और निष्ठावान व्यक्तित्व को उजागर करता है। इस घटना को राहुल सिंह ने अपने पिता खुशवंत सिंह के शब्दों में बताया। यह घटना 1999 के लोकसभा चुनाव से संबंधित है, जब डॉ. मनमोहन सिंह दिल्ली से चुनाव लड़ रहे थे।
दिल्ली लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे
1999 में, जब डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में दिल्ली लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे, उनका चुनाव प्रचार जोरों से चल रहा था। चुनावी अभियान के लिए फंड जुटाने की जिम्मेदारी उनके भाई पर थी। इस दौरान उनके भाई ने कई प्रमुख लोगों से मदद मांगी और धन एकत्रित किया। इनमें से एक प्रमुख नाम था भारत के प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार खुशवंत सिंह का। खुशवंत सिंह, जो एक बेबाक और स्वतंत्र विचारक थे, डॉ. सिंह के अच्छे मित्र थे। उन्हें देश के इस समर्पित नेता से गहरी मित्रता थी, और वे उनके मार्गदर्शन से प्रभावित थे। चुनावी सहायता के रूप में खुशवंत सिंह ने डॉ. सिंह के भाई को एक लाख रुपये की राशि दी। हालांकि, दुर्भाग्यवश, डॉ. सिंह को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, लेकिन इस हार के बावजूद उन्होंने अपनी ईमानदारी का एक ऐसा उदाहरण पेश किया, जो आज भी राजनीति में एक आदर्श के रूप में देखा जाता है।
यह आपके पैसे हैं, मैं इन्हें वापस कर रहा हूँ
चुनाव परिणाम आने के कुछ दिनों बाद, खुशवंत सिंह को डॉ. मनमोहन सिंह का एक फोन आया। डॉ. सिंह ने उन्हें मिलने का समय माँगा। खुशवंत सिंह, जो अपने जीवन में सैकड़ों लोगों से मिले थे, लेकिन एक प्रधानमंत्री से मिलने का अवसर और भी महत्वपूर्ण था, उन्होंने उन्हें मिलने का समय दिया। जब दोनों मिलकर सामान्य बातचीत कर रहे थे, तभी डॉ. मनमोहन सिंह ने अचानक कहा, "मुझे लगता है कि आपने मेरे भाई को कुछ पैसे दिए थे।" खुशवंत सिंह ने इसे हल्के में लेते हुए कहा कि यह कोई बड़ी बात नहीं है, बस चुनाव प्रचार के लिए थोड़ी मदद की थी। लेकिन डॉ. सिंह ने उन्हें बिल्कुल नज़रअंदाज नहीं किया और अपनी जेब से एक लिफाफा निकाला। वह लिफाफा खुशवंत सिंह के हाथ में थमाते हुए बोले, "यह आपके पैसे हैं, मैं इन्हें वापस कर रहा हूँ।" यह कदम डॉ. मनमोहन सिंह की ईमानदारी और स्वाभिमान को दर्शाता है। हार के बाद भी उन्होंने अपने दानकर्ताओं से लिया गया एक भी पैसा बिना शर्त और बिना किसी दबाव के वापस कर दिया। उनका यह कार्य उन नेताओं के लिए एक मिसाल बन गया, जो धन और राजनीति में पारदर्शिता की बात करते हैं, लेकिन खुद उसका पालन नहीं करते।
कौन सा भारतीय राजनेता ऐसा करेगा?
राहुल सिंह ने अपने पिता खुशवंत सिंह की प्रतिक्रिया को साझा करते हुए बताया कि उनके पिता इस किस्से को अक्सर अपनी मित्र मंडली में सुनाया करते थे। वे कहते थे, "कौन सा भारतीय राजनेता ऐसा करेगा?" यह सवाल न केवल डॉ. मनमोहन सिंह की ईमानदारी को सम्मानित करने वाला था, बल्कि यह भारतीय राजनीति में एक पारदर्शी और नैतिक नेतृत्व के लिए एक चैलेंज भी था। उनके लिए डॉ. सिंह का यह कदम एक मिसाल था कि राजनीति केवल सत्ता के लिए नहीं, बल्कि नैतिकता, पारदर्शिता और देश के प्रति सच्चे समर्पण के लिए होती है।
डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन: समर्पण और विनम्रता का प्रतीक
डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन एक आदर्श था, जो न केवल एक महान नेता, बल्कि एक ईमानदार और समर्पित इंसान के रूप में सामने आया। उनकी नीतियों और निर्णयों ने भारत को वैश्विक मंच पर एक मजबूत स्थान दिलवाया। हालांकि वे एक बेहद विनम्र और शांत स्वभाव के व्यक्ति थे, लेकिन उनकी नीतियों और नेतृत्व क्षमता ने भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक ऐतिहासिक परिवर्तन लाया। वे हमेशा कहते थे कि उनका उद्देश्य देश की सेवा करना है, न कि व्यक्तिगत लाभ अर्जित करना। उनके शासनकाल में कई ऐतिहासिक आर्थिक सुधार हुए, जिनका असर आज भी देखा जा सकता है। डॉ. मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व हमेशा पारदर्शिता, विनम्रता, और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक था। उनकी नीतियों और उनके व्यक्तित्व ने उन्हें सिर्फ उनके समर्थकों से ही नहीं, बल्कि उनके आलोचकों से भी सम्मान प्राप्त किया।
डॉ. मनमोहन सिंह की विरासत
राहुल सिंह ने इस घटना को साझा करते हुए यह भी कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह का निधन केवल उनके परिवार के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक गहरी व्यक्तिगत क्षति है। उनके निधन से न केवल उनके समर्थकों, बल्कि उनके आलोचकों को भी एक बड़ी कमी महसूस हो रही है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि राजनीति में ईमानदारी, पारदर्शिता और देश के प्रति सच्ची निष्ठा सबसे महत्वपूर्ण गुण हैं। डॉ. मनमोहन सिंह के इस किस्से से यह संदेश मिलता है कि हर क्षेत्र में महानता सिर्फ कार्यों से नहीं, बल्कि चरित्र से भी मापी जाती है। उनके नेतृत्व की यह विशेषताएँ भारतीय राजनीति में एक नई दिशा और आदर्श स्थापित करती हैं।