Edited By Pardeep,Updated: 12 Jan, 2025 12:55 AM
लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन के "हफ्ते में 90 घंटे काम करने" वाले बयान पर विवाद गहराता जा रहा है।
नेशनल डेस्कः लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन के "हफ्ते में 90 घंटे काम करने" वाले बयान पर विवाद गहराता जा रहा है। उनके इस बयान ने सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया पैदा की। सुब्रह्मण्यन ने हाल ही में कर्मचारियों से ऑनलाइन बातचीत के दौरान सुझाव दिया था कि कंपनी अगर संभव हो, तो कर्मचारियों को रविवार को भी काम करना चाहिए।
इस विवाद के बीच, महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने अपनी प्रतिक्रिया दी, जिसने बहस को एक नई दिशा दे दी। महिंद्रा ने काम और जीवन के बीच संतुलन बनाने की वकालत करते हुए कहा कि "आउटपुट" ज्यादा महत्वपूर्ण है, न कि काम के घंटे।
'घंटे नहीं, आउटपुट मायने रखता है' – आनंद महिंद्रा
एक कार्यक्रम में बोलते हुए आनंद महिंद्रा ने कहा, "यह बहस गलत दिशा में जा रही है। यह काम के घंटे गिनने की बजाय आउटपुट पर होनी चाहिए। चाहे आप 40 घंटे काम करें या 90 घंटे, असली सवाल यह है कि आप कितना प्रभावी परिणाम दे रहे हैं।" उन्होंने आगे कहा, "अगर आप परिवार, दोस्तों के साथ समय नहीं बिता रहे, पढ़ाई या सोचने का समय नहीं निकाल रहे, तो आप सही फैसले नहीं ले सकते। अच्छी जिंदगी और सही निर्णय लेने के लिए संतुलन जरूरी है।"
'पत्नी को निहारना पसंद है' – महिंद्रा का चुटीला जवाब
जब महिंद्रा से सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा, "मुझसे अक्सर पूछा जाता है कि मैं X (पूर्व में ट्विटर) पर इतना समय क्यों बिताता हूं। मैं कहना चाहता हूं कि मेरी पत्नी बहुत अच्छी हैं, और मुझे उन्हें निहारना अच्छा लगता है। मैं यहां दोस्त बनाने नहीं, बल्कि सोशल मीडिया को बिजनेस टूल के रूप में इस्तेमाल करने आया हूं।"
सुब्रह्मण्यन के विवादित बयान पर प्रतिक्रियाएं
एसएन सुब्रह्मण्यन ने अपने बयान में कहा था, "रविवार को आप घर बैठकर क्या करेंगे? अपनी पत्नी को कब तक निहारेंगे? पत्नियां अपने पतियों को कब तक निहारेंगी? ऑफिस जाइए और काम कीजिए।" उनके इस बयान ने सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना बटोरी। कई लोगों ने इसे कर्मचारियों की निजी जिंदगी में हस्तक्षेप बताया और इसे अनुचित करार दिया।
महिंद्रा के बयान ने दी बहस को नई दिशा
आनंद महिंद्रा के बयान ने इस बहस को और गहराई दी। उन्होंने जोर देकर कहा कि जीवन में काम के अलावा अन्य पहलुओं का भी महत्व है। सोशल मीडिया पर महिंद्रा के इस संतुलित दृष्टिकोण को काफी सराहा जा रहा है। एक सोशल मीडिया उपयोगकर्ता ने लिखा, "महिंद्रा का यह नजरिया दिखाता है कि एक अच्छे लीडर का दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए। काम के घंटे नहीं, बल्कि उसकी गुणवत्ता मायने रखती है।"
महिंद्रा बनाम सुब्रह्मण्यन: दो दृष्टिकोण
जहां सुब्रह्मण्यन का बयान एक आक्रामक कार्य संस्कृति को दर्शाता है, वहीं आनंद महिंद्रा का दृष्टिकोण संतुलित और प्रेरणादायक है।
सुब्रह्मण्यन का दृष्टिकोण:
- कर्मचारी अधिक घंटे काम करें।
- रविवार को भी ऑफिस में समय बिताएं।
- काम को प्राथमिकता दें।
आनंद महिंद्रा का दृष्टिकोण:
- आउटपुट और गुणवत्ता को प्राथमिकता दें।
- काम और निजी जीवन के बीच संतुलन बनाएं।
- परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने की अहमियत समझें।
यह विवाद केवल काम के घंटों पर ही नहीं, बल्कि काम की संस्कृति और नेतृत्व के दृष्टिकोण पर भी सवाल उठाता है। आनंद महिंद्रा का बयान एक उदाहरण है कि किस तरह एक सफल उद्योगपति काम और जीवन में संतुलन की वकालत कर सकता है। वहीं, सुब्रह्मण्यन का बयान इस बात को उजागर करता है कि भारतीय कॉर्पोरेट जगत में वर्क-लाइफ बैलेंस की कितनी कमी है।