Edited By Mahima,Updated: 26 Dec, 2024 11:58 AM
संभल में ‘मृत्यु कूप’ की खुदाई शुरू हो गई है, जिसे स्थानीय लोग मोक्ष प्राप्ति से जोड़ते हैं। इस कूप के अलावा, शिव मंदिर और रानी की बावड़ी जैसी धार्मिक धरोहरों की खोज भी हो रही है। इन खुदाइयों से संभल की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों को पुनः उजागर...
नेशनल डेस्क: उत्तर प्रदेश के संभल जिले में पिछले कुछ दिनों से धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व से जुड़े स्थलों की खुदाई का सिलसिला तेजी से चल रहा है। इन स्थलों के जरिए न केवल जिले की सांस्कृतिक धरोहर को पुनः जागृत किया जा रहा है, बल्कि इनका धार्मिक महत्व भी स्थानीय समुदाय के लिए अहम बन गया है। हाल ही में सरथल चौकी के पास एक प्राचीन ‘मृत्यु कूप’ की खुदाई ने धार्मिक समुदाय के बीच नई चर्चा पैदा कर दी है। इस कूप को लेकर स्थानीय लोग मानते हैं कि इसके जल से स्नान करने से मोक्ष प्राप्त होता है, जो इसे और भी रहस्यमय और महत्वपूर्ण बनाता है।
‘मृत्यु कूप’ की धार्मिक मान्यता
संभल के सरथल चौकी के पास मिले इस कूप को स्थानीय लोग ‘मृत्यु कूप’ के नाम से जानते हैं। माना जाता है कि इस कूप के जल से स्नान करने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है। यह कूप शाही जामा मस्जिद से महज 150 मीटर की दूरी पर स्थित है। इस कूप की खुदाई नगर पालिका की टीम द्वारा शुरू कर दी गई है, और स्थानीय लोगों का कहना है कि यह कूप काफी प्राचीन है। साथ ही, इस कूप के पास ही महामृत्युंजय तीर्थ भी स्थित है, जो अन्य धार्मिक स्थलों की तरह पवित्र माने जाते हैं। स्थानीय लोग दावा कर रहे हैं कि कूप और तीर्थ के धार्मिक महत्व को लेकर विवाद भी हुआ था, क्योंकि दूसरे समुदाय के लोग इस भूमि पर अपने अधिकार की बात कर रहे थे।
मंदिर और बावड़ी की खुदाई की शुरुआत
संभल में खुदाई की शुरुआत 14 दिसंबर को एक मंदिर मिलने के बाद हुई थी। जब पुलिस और बिजली विभाग की टीम ने बिजली चोरी के मामले में छापेमारी की, तो उन्हें एक बंद पड़ा शिव मंदिर मिला था, जो 46 साल से बंद था। यह मंदिर सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क के घर से 200 मीटर की दूरी पर स्थित था। मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा, शिवलिंग और नंदी स्थापित थे। इस मंदिर के मिलने के बाद, भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच पूजा-पाठ का आयोजन किया गया और इसके बाद से ही संभल में खुदाई का कार्य शुरू हुआ। मंदिर के मिलने के बाद से इलाके के विभिन्न हिस्सों में और भी धार्मिक स्थल, कूप और बावड़ियां मिल रही हैं, जिन्हें जमीन के अंदर दफन कर दिया गया था। इस खुदाई के दौरान अब तक कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल और ऐतिहासिक धरोहरें उजागर हो चुकी हैं।
लक्ष्मणगंज इलाके में रानी की बावड़ी
संभल के लक्ष्मणगंज इलाके में रानी की बावड़ी भी हाल ही में मिली है। इसे लेकर डीएम को एक शिकायती पत्र दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि पहले यहां बिलारी की रानी की बावड़ी हुआ करती थी। खुदाई के दौरान तीन मंजिला बावड़ी का खुलासा हुआ है। फिलहाल खुदाई में सिर्फ पहली ऊपरी मंजिल ही मिल पाई है, जबकि बाकी दो मंजिलें अब भी मिट्टी के नीचे दबी हुई हैं। बावड़ी की खुदाई का काम जारी है। रानी सुरेंद्र बाला की पोती शिप्रा बाला ने बताया कि पहले यह इलाका हिंदू बहुल था, लेकिन बाद में यहां की जमीन बिकने के बाद मुस्लिम समुदाय की आबादी बढ़ गई। रानी की बावड़ी का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत ज्यादा है, जो आज के समय में भी लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है।
धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक विरासत
संभल में चल रही खुदाइयों ने धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों को फिर से उजागर किया है। इन स्थलों के माध्यम से न केवल प्राचीन भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित किया जा रहा है, बल्कि विभिन्न समुदायों के बीच धार्मिक सहिष्णुता का संदेश भी फैलाया जा रहा है। 'मृत्यु कूप' और अन्य धार्मिक स्थलों का पुनः उद्धार होने से क्षेत्र के लोग अपने अतीत से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इस कूप और बावड़ी से जुड़े धार्मिक मान्यताएँ और इतिहास के बारे में जानकर स्थानीय लोग गर्व महसूस कर रहे हैं। इन स्थलों की खुदाई ने स्थानीय समुदाय में एक नई ऊर्जा और विश्वास का संचार किया है।
संभल जिले में चल रही खुदाई का सिलसिला क्षेत्रीय सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर के पुनर्निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इन पुरानी धार्मिक स्थलों और कूपों की खोज न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह क्षेत्र की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक समृद्धि को भी उजागर कर रही है। इस सिलसिले के आगे बढ़ने से संभल और आसपास के क्षेत्रों में धार्मिक और सांस्कृतिक जागरूकता बढ़ेगी, और साथ ही स्थानीय समुदाय का एक नया दृष्टिकोण सामने आएगा।