Edited By Utsav Singh,Updated: 10 Oct, 2024 03:06 PM
केंद्र में NDA की सरकार है। बहुमत हासिल प्राप्त करने में असफल रही बीजेपी ने अन्य सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बना ली है। जिसके वजह से मोदी सरकार को इस बार बहुत संभल कर चलना पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि सरकार अब अपने दम पर नहीं, बल्कि अपने...
नेशनल डेस्क : केंद्र में NDA की सरकार है। बहुमत हासिल प्राप्त करने में असफल रही बीजेपी ने अन्य सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बना ली है। जिसके वजह से मोदी सरकार को इस बार बहुत संभल कर चलना पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि सरकार अब अपने दम पर नहीं, बल्कि अपने सहयोगियों के साथ मिलकर काम कर रही है। ऐसे में गठबंधन के अन्य दल लगातार सरकार से विभिन्न मुद्दों पर मांगें कर रहे हैं। हाल ही में जातीय जनगणना का मामला काफी चर्चा में आया है। सरकार के सहयोगी दल विभिन्न मुद्दों पर अपनी आवाज उठा रहे हैं, जिससे सरकार को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें से एक प्रमुख मुद्दा जातीय जनगणना है, जो हाल के समय में अधिक महत्व प्राप्त कर चुका है।
चंद्रबाबू नायडू की मांग
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने हाल ही में एक इंटरव्यू में जातीय जनगणना की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस जनगणना से समाज के विभिन्न वर्गों की स्थिति का सही आंकड़ा सामने आएगा। नायडू का मानना है कि जातिगत जनगणना कराना आवश्यक है और यह जनता की भावनाओं के अनुसार है।
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बिहार का उदाहरण
सीएम नीतीश कुमार ने जब आरजेडी के साथ बिहार में सरकार बनाई थी, तब उन्होंने जातीय जनगणना करवाई थी। इसके बाद उन्होंने आरक्षण की व्यवस्था को नए सिरे से लागू किया। बिहार में एनडीए के अन्य सहयोगी, जैसे चिराग पासवान और जीतन राम मांझी, भी जातीय जनगणना की मांग कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश से अनुप्रिया पटेल, संजय निषाद और ओपी राजभर भी इस मुद्दे पर अपनी आवाज उठा चुके हैं।
नायडू का तर्क
चंद्रबाबू नायडू ने स्पष्ट रूप से कहा कि जातीय जनगणना से आर्थिक विश्लेषण और कौशल सर्वेक्षण (स्किल सेंसस) करने में मदद मिलेगी। उनका मानना है कि इससे विभिन्न जातियों के आर्थिक हालात का सही आंकड़ा सामने आएगा। इससे न केवल सामाजिक समरसता में सुधार होगा, बल्कि सरकार को जरूरतमंद समुदायों की पहचान करने और उन्हें उचित सहायता प्रदान करने में भी मदद मिलेगी। इस तरह की जानकारी से नीति निर्धारण में भी सुधार होगा, जिससे आर्थिक विषमताओं को कम किया जा सकेगा।
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गरीबी का मुद्दा
चंद्रबाबू नायडू ने यह भी कहा कि देश में गरीबी सबसे बड़ा मुद्दा है। उनका तर्क है कि यदि कोई व्यक्ति निचली जाति से है और आर्थिक रूप से सक्षम है, तो उसे समाज में सम्मान प्राप्त होता है। इसके विपरीत, अगर कोई ऊंची जाति से है लेकिन गरीब है, तो उसे उचित महत्व नहीं मिलता। इस प्रकार, उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आर्थिक स्थिति ही समानता का सबसे बड़ा मानक है। नायडू का मानना है कि सामाजिक असमानताओं को समझने और सुलझाने के लिए आर्थिक हालात को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
RSS का रुख
एनडीए के सहयोगियों के साथ-साथ आरएसएस ने भी जातीय जनगणना का समर्थन किया है। उनकी बैठक में यह कहा गया कि अगर समाज को इसकी जरूरत है, तो जातीय जनगणना कराई जा सकती है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इसका उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए नहीं होना चाहिए। जातीय जनगणना का मुद्दा अब राजनीतिक चर्चा का केंद्र बन चुका है। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता इस पर अपनी राय दे रहे हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस पर कैसे कदम उठाती है।