Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 May, 2018 11:02 AM

अरोड़ा समाज के इतिहास के अनुपम प्रवर्तक अरूट जी का संदेश था कि अपनी उन्नति के लिए प्रयत्न करने के साथ समाज की प्रगति में प्रयत्नशील रहना हर सभ्य नागरिक का सामाजिक उत्तरदायित्व है।
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अरोड़ा समाज के इतिहास के अनुपम प्रवर्तक अरूट जी का संदेश था कि अपनी उन्नति के लिए प्रयत्न करने के साथ समाज की प्रगति में प्रयत्नशील रहना हर सभ्य नागरिक का सामाजिक उत्तरदायित्व है।
30 मई का दिन इस निर्भय समाज के लिए उमंग से भरपूर दिन होता है, जब वह अपने युग प्रवर्तक अरूट जी महाराज को शीश झुका शुभाशीष लेते हैं कि वह अपने समाज की संवेदनाओं और अपेक्षाओं के पूर्ण रक्षक बन इसे नेतृत्व प्रदान करेंगे। भगवान श्री राम के सुपुत्र लव को लाहौर का राज्य उत्तराधिकार में मिला था तो उनके कुल में कालराय राजा हुए। उनकी दो रानियां थीं। एक रानी का पुत्र शांत स्वभाव का था इसलिए उसे अरूट कहा जाता था। राजा ने मंत्री की राय से अरूट को अपना सारा ख़जाना दे दिया तथा दूसरी रानी के सुपुत्र छोटे राजकुमार को राज्य का उत्तराधिकारी मनोनीत किया।

बड़े राज कुमार अरूट ने लाहौर नगर छोड़ कर मुल्तान की ओर प्रस्थान किया साथ ही अनेक नागरिक और सैनिक राजा की आज्ञा का पालन करते हुए चल पड़े। सिंधु नदी के किनारे एक किला बना उसका नाम अरूट कोट रखा जिसे तत्पश्चात अरोड़कोट कहा जाने लगा।

इस तरह जो बांशिदे राजा की टोली में थे उन्हें अरोड़ा कहलाने का गौरव प्राप्त हुआ तथा अरोड़ा समाज की उत्पत्ति हुई। आज जब अरोड़ वंश समाज के 862 उपजातियों के बंधु अरूट जी महाराज को पुष्पांजलि दे कर उनके जीवन मूल्यों को स्मरण करें तो याद रखना होगा कि हम भावी पीढ़ी में अपने सेनापति के आदर्शों व उनके जीवन मूल्यों को हर कार्यकर्ता के मस्तिष्क तक पहुंचा समाज को उत्कृष्टता की भावना से जागरूक करेंगे।

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