सद्गुरु के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ बंदी बनाने का केस बंद, SC बोला- लड़कियां बालिग, अपनी मर्जी से आश्रम में रह रहीं

Edited By rajesh kumar,Updated: 18 Oct, 2024 04:06 PM

arrest case against sadhguru s isha foundation closed

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को बंद कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी दो बेटियों को आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव द्वारा संचालित ईशा योग केंद्र में बंदी बनाकर रखा गया है तथा उनका ब्रेनवॉश किया...

नेशनल डेस्क: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को बंद कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी दो बेटियों को आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव द्वारा संचालित ईशा योग केंद्र में बंदी बनाकर रखा गया है तथा उनका ब्रेनवॉश किया जा रहा है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने दोनों बेटियों, जिनकी उम्र 39 वर्ष और 42 वर्ष है, के बयानों पर गौर करने के बाद मामले का निपटारा कर दिया, कि वे वयस्क हैं और स्वेच्छा से आश्रम में रह रही हैं, तथा आश्रम से बाहर जाने के लिए स्वतंत्र हैं।

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पीठ ने कहा बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में किसी और निर्देश की आवश्यकता नहीं है तथा इसे बंद कर दिया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, "चूंकि दोनों वयस्क हैं और बंदी प्रत्यक्षीकरण का उद्देश्य पूरा हो चुका है, इसलिए उच्च न्यायालय से आगे कोई निर्देश देने की आवश्यकता नहीं है।" इससे पहले शीर्ष अदालत ने मद्रास उच्च न्यायालय से बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को अपने पास स्थानांतरित कर लिया था।

मद्रास उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार तमिलनाडु पुलिस को कोयंबटूर स्थित ईशा योग केंद्र के खिलाफ कोई और कार्रवाई करने से रोक दिया गया था। फाउंडेशन ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था, जिसमें पुलिस को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में आश्रम के अंदर जांच करने का निर्देश दिया गया था। आज सुनवाई के दौरान ईशा फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने उच्च न्यायालय द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को बंद करने के बजाय पुलिस को निर्देश देने पर आपत्ति जताई।

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तमिलनाडु की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने पीठ को बताया कि पुलिस के दौरे के दौरान कुछ नियामक गैर-अनुपालन की बात सामने आई और संस्थान में कोई आंतरिक शिकायत समिति नहीं है। प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि जब संस्था में महिलाएं और नाबालिग बच्चे हों तो वहां आंतरिक शिकायत समिति की जरूरत होती है, इसका उद्देश्य किसी संस्था को बदनाम करना नहीं है, बल्कि कुछ आवश्यकताएं हैं जिनका पालन किया जाना चाहिए।

अपने आदेश में पीठ ने कहा, "यह स्पष्ट किया जाता है कि इन कार्यवाहियों के बंद होने से ईशा फाउंडेशन में किसी अन्य विनियामक अनुपालन पर कोई असर नहीं पड़ेगा और श्री रोहतगी कहते हैं कि ऐसी किसी भी आवश्यकता का विधिवत अनुपालन किया जाएगा।" पीठ ने महिलाओं के पिता के वकील से कहा, "जब आपके पास बड़े बच्चे हों जो वयस्क हों, तो आप उनके जीवन को नियंत्रित करने के लिए शिकायत दर्ज नहीं कर सकते।" मद्रास उच्च न्यायालय ने 30 सितंबर को यह देखते हुए कि संस्था के खिलाफ गंभीर आरोप हैं, ईशा फाउंडेशन के खिलाफ आपराधिक मामलों का विवरण मांगा था।

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शीर्ष अदालत ने पहले दोनों बहनों से चैंबर में वर्चुअली बातचीत की थी और बातचीत के बाद कहा था कि दोनों महिलाओं ने बताया कि वे स्वेच्छा से आश्रम में रह रही हैं। अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने तब दोनों महिलाओं द्वारा दिए गए बयान को दर्ज किया था कि वे 2009 से स्वेच्छा से आश्रम में रह रही हैं और उनके माता-पिता कई मौकों पर उनसे मिलने आए हैं। कोयंबटूर के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी दो बेटियों को ईशा योग केंद्र में रहने के लिए प्रेरित किया गया था और फाउंडेशन उन्हें अपने परिवार के संपर्क में रहने की अनुमति नहीं दे रहा था। ईशा फाउंडेशन ने इस आरोप से इनकार किया है।

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