टेंशन बढ़ी तो खुशखबरी भी मिली... जानिए कैसा रहा Indian Economy के लिए 2024 ?

Edited By Mahima,Updated: 24 Dec, 2024 04:29 PM

as tension increased good news was also received

साल 2024 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मिश्रित परिणामों वाला रहा। महंगाई और ब्याज दरों के दबाव के बावजूद, निर्यात, विदेशी मुद्रा भंडार और FDI में वृद्धि हुई। GDP ग्रोथ दर में गिरावट आई, और महंगाई ने खपत को प्रभावित किया। हालांकि, इन्फ्रास्ट्रक्चर में...

नेशनल डेस्क: साल 2024 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मिश्रित नतीजों वाला वर्ष साबित हुआ। एक तरफ जहां महंगाई और ब्याज दरों की वृद्धि ने अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतियां पैदा कीं, वहीं दूसरी ओर निवेश, निर्यात, और विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड वृद्धि जैसे सकारात्मक संकेत भी मिले। इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था ने कई उतार-चढ़ाव देखे, जिससे सरकार, उद्योग, और आम नागरिकों के लिए अवसर और संकट दोनों उत्पन्न हुए। आइए जानते हैं 2024 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख पहलुओं पर विस्तार से।

RBI की नीतियों ने बढ़ाया तनाव
2024 का साल महंगाई के मोर्चे पर बेहद चुनौतीपूर्ण रहा। सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने महंगाई को नियंत्रित करने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन उच्च महंगाई दर पूरे साल बनी रही। अक्टूबर 2024 तक महंगाई दर 6.21% तक पहुंच गई, जो कि पिछले 14 महीनों का उच्चतम स्तर था। सब्जियों, खाद्य तेल और अन्य उपभोक्ता वस्त्रों की बढ़ती कीमतों ने महंगाई को बढ़ावा दिया। खासतौर पर सब्जियों की कीमतों में उछाल ने महंगाई को और बढ़ा दिया, जिससे उपभोक्ताओं को भारी दबाव का सामना करना पड़ा। इस महंगाई को नियंत्रित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट पर सख्त रुख अपनाए रखा, जिससे बैंकों की उधारी दरें भी बढ़ गईं। इसका सीधा असर घरेलू खपत पर पड़ा, क्योंकि उपभोक्ता वस्त्रों की कीमतों में वृद्धि से खपत में कमी आई। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चिंताजनक संकेत था।

ब्याज दरों में कोई राहत नहीं
2024 के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से कारोबार और उद्योग जगत को उम्मीद थी कि ब्याज दरों में कटौती की जाएगी, ताकि महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सके और उधारी को सस्ता किया जा सके। लेकिन RBI ने ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं की। इसके बजाय, 6 दिसंबर को उसने नकद आरक्षित अनुपात (CRR) को 4.50% से घटाकर 4.25% कर दिया। CRR वह राशि है जो बैंकों को अपनी कुल जमा राशि में से भारतीय रिजर्व बैंक के पास रखनी होती है, ताकि बैंकों के पास उधारी देने के लिए अधिक रकम उपलब्ध हो। यह कदम बैंकों के लिए थोड़ा राहतकारी था, क्योंकि इससे उनके पास अधिक पूंजी थी, लेकिन ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद पूरी नहीं हो पाई। इस फैसले ने RBI की महंगाई को नियंत्रित करने की नीति को स्पष्ट किया, जिसमें ब्याज दरों को स्थिर बनाए रखना शामिल था। इससे व्यापारियों और उपभोक्ताओं को राहत नहीं मिल पाई, जिनकी उम्मीद थी कि कम ब्याज दरें आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करेंगी।

खपत में कमी और FMCG कंपनियों की कीमतों में वृद्धि
महंगाई के साथ-साथ खपत में भी गिरावट आई। खासतौर पर खाद्य एवं उपभोक्ता वस्त्र (FMCG) कंपनियों ने कीमतों में वृद्धि की, जिसका असर सामान्य उपभोक्ता पर पड़ा। हिंदुस्तान यूनिलीवर, गोदरेज कंजम्पशन, मैरिको, नेस्ले, पारले प्रोडक्ट्स जैसी प्रमुख FMCG कंपनियों ने उत्पादन लागत और सीमा शुल्क में बढ़ोतरी के कारण अपने उत्पादों की कीमतों में 5% से 20% तक की बढ़ोतरी की। इससे चाय, साबुन, खाद्य तेल, और स्किनकेयर जैसे सामान्य उपभोक्ता उत्पाद महंगे हो गए, जो खपत में और गिरावट का कारण बने। इसकी वजह से उपभोक्ताओं को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ी, और विभिन्न उत्पादों की मांग में गिरावट आई। विशेष रूप से मध्यवर्गीय और निम्न वर्ग के उपभोक्ताओं पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। कंपनियों के लिए ये परिस्थितियां चुनौतीपूर्ण थीं, क्योंकि उन्हें कीमतें बढ़ाने और साथ ही खपत में कमी का सामना करना पड़ा।

वृद्धि का अनुमान कम हुआ
मार्च 2024 को समाप्त वित्तीय वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था ने 8.2% की शानदार GDP ग्रोथ दर दर्ज की थी, जो पहले के अनुमान से कहीं ज्यादा थी। इसने सरकार और अर्थशास्त्रियों को आशा दी थी कि भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार मजबूत हो रही है। लेकिन जैसे-जैसे साल आगे बढ़ा, घरेलू खपत में गिरावट, बढ़ते निर्यात और महंगाई के दबाव ने GDP ग्रोथ को धीमा कर दिया। वित्तीय वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में GDP ग्रोथ दर घटकर 5.4% पर आ गई। भारतीय रिजर्व बैंक ने इस घटती GDP ग्रोथ को देखते हुए 7.2% के अनुमान को घटाकर 6.6% कर दिया। इसी तरह, तीसरी तिमाही के लिए अनुमान 7.4% से घटकर 6.8% और चौथी तिमाही के लिए 7.3% से घटकर 6.9% हो गया। हालांकि, यह गिरावट चिंताजनक थी, लेकिन सरकार और RBI की कोशिशें अर्थव्यवस्था को संभालने की दिशा में थीं।

निर्यात में वृद्धि और ट्रेड सरप्लस
वहीं, निर्यात के मोर्चे पर भारत ने अच्छा प्रदर्शन किया। 2024 के अप्रैल से नवंबर तक भारतीय निर्यात में 7.61% की वृद्धि दर्ज की गई, जो 536.25 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान था। इसके अलावा, आयात में भी 9.55% की वृद्धि होने की संभावना जताई गई, और यह 619.20 अरब डॉलर तक पहुंच सकता था। इस दौरान, भारत का ट्रेड सरप्लस 82.95 अरब डॉलर तक रहने का अनुमान था, जो कि एक बहुत ही सकारात्मक संकेत था। भारत ने अमेरिका समेत 151 देशों के साथ व्यापार में सरप्लस बनाए रखा। इसका मुख्य कारण था भारत का मजबूत निर्यात, खासतौर पर टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक मजबूत व्यापारिक आधार दिया और व्यापार घाटे को नियंत्रित करने में मदद की।

विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड वृद्धि
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 2024 में लगातार बढ़ता गया और सितंबर 2024 तक यह 704.88 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर तक पहुंच गया। यह भारतीय रिजर्व बैंक की मजबूत नीतियों और निर्यात में वृद्धि का परिणाम था। हालांकि, इस सकारात्मक स्थिति के बावजूद, रुपये ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोरी दिखाई। 19 दिसंबर 2024 को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 85.06 के निचले स्तर पर पहुंच गया। विशेषज्ञों का मानना था कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की आक्रामक नीतियों और अंतरराष्ट्रीय बाजार की अनिश्चितताओं के कारण रुपये पर दबाव पड़ा, जिसके चलते यह ऐतिहासिक गिरावट देखी गई।

एफडीआई में भारी वृद्धि
प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना और अन्य सरकारी नीतियों के कारण, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में भी वृद्धि देखने को मिली। 2024-25 के पहले छह महीनों में FDI में 26% की बढ़ोतरी हुई और यह 42.1 अरब डॉलर तक पहुंच गया। यह भारत के लिए सकारात्मक संकेत था, क्योंकि विदेशी निवेशकों का भरोसा भारतीय बाजारों पर मजबूत बना हुआ है। विशेष रूप से मैन्युफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी क्षेत्रों में विदेशी निवेश आकर्षित हुआ, जो आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद हो सकता है।

कुल मिलाकर, 2024 का वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मिश्रित नतीजों वाला रहा। महंगाई, ब्याज दरों की वृद्धि और गिरती जीडीपी ग्रोथ दर ने निश्चित रूप से चिंता बढ़ाई, लेकिन निर्यात में वृद्धि, विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड बढ़ोतरी, और FDI में भारी निवेश जैसी घटनाओं ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक मजबूत आधार प्रदान किया। सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक की नीतियां आने वाले समय में अर्थव्यवस्था को संभालने में मददगार साबित हो सकती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि वैश्विक और घरेलू परिस्थितियां अनुकूल रहती हैं, तो अगला साल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए और भी बेहतर हो सकता है।

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