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वक्फ बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे असदुद्दीन ओवैसी, दायर की याचिका

Edited By Harman Kaur,Updated: 04 Apr, 2025 07:00 PM

asaduddin owaisi reached supreme court against waqf bill filed a petition

कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 की वैधता को चुनौती दी। दोनों नेताओं ने आरोप लगाया कि यह विधेयक संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है और मुस्लिम समुदाय के...

नेशनल डेस्क: कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 की वैधता को चुनौती दी। दोनों नेताओं ने आरोप लगाया कि यह विधेयक संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है और मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों को कमजोर करेगा।

ओवैसी का आरोप
ओवैसी ने भी अपनी याचिका में विधेयक के खिलाफ कई आरोप लगाए हैं। ओवैसी का कहना है कि इस विधेयक के तहत वक्फ संपत्तियों की प्रकृति तय करने की शक्ति अब वक्फ बोर्ड से लेकर जिला कलेक्टर को सौंप दी गई है, जिससे वक्फ प्रशासन की स्वायत्तता कमजोर होगी। यह विधेयक वक्फ प्रशासन में राज्य प्राधिकारियों की बढ़ी हुई भूमिका को भी बढ़ावा देता है, जो मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन है।

ओवैसी ने यह भी आरोप लगाया कि विधेयक में वक्फ न्यायाधिकरणों की संरचना और शक्तियों में बदलाव किया गया है, जिससे विवादों के समाधान की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, यह विधेयक उच्चतम न्यायालय के 1954 के उस फैसले के खिलाफ है जिसमें कहा गया था कि धार्मिक संपत्तियों का नियंत्रण धर्मनिरपेक्ष अधिकारियों को सौंपना धार्मिक और संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन है।

जावेद की याचिका में क्या आरोप हैं?
जावेद ने अपनी याचिका में कहा कि इस विधेयक के तहत वक्फ संपत्तियों और उनके प्रबंधन पर "मनमाने प्रतिबंध" लगाए गए हैं। उनका मानना है कि इस तरह के प्रतिबंध मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता को कमजोर करेंगे। जावेद के अनुसार, विधेयक में ऐसे प्रतिबंध लगाए गए हैं जो अन्य धार्मिक बंदोबस्तों पर लागू नहीं होते। उन्होंने कहा कि यह मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करने का प्रयास है और यह संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद 15 किसी भी व्यक्ति के धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव करने से मना करता है।

जावेद की याचिका में यह भी कहा गया है कि इस विधेयक के तहत वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना में बदलाव किया गया है, जिससे गैर-मुस्लिम सदस्य इन संस्थाओं में अनिवार्य रूप से शामिल होंगे। जावेद का कहना है कि यह हिंदू धार्मिक संस्थाओं पर किसी भी समान शर्तों के बिना हस्तक्षेप है, और यह अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है।

संविधान और धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन
जावेद और ओवैसी दोनों ने यह दावा किया कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के कारण वक्फ संपत्तियों को सरकारी नियंत्रण में देने से व्यक्तियों की धार्मिक उद्देश्यों के लिए संपत्ति समर्पित करने की क्षमता सीमित हो जाएगी। विधेयक के खिलाफ दायर याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि इस विधेयक में "वक्फ-बाय-यूजर" की अवधारणा को नकारा गया है, जबकि अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में उच्चतम न्यायालय ने इस सिद्धांत को स्वीकार किया था।

विधेयक का पारित होना और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
यह विधेयक राज्यसभा में 128 वोटों से पास हुआ, जबकि 95 वोट इसके खिलाफ थे। लोकसभा में भी विधेयक को बहुमत से मंजूरी मिल गई थी। इस विधेयक के पारित होने के बाद, जावेद और ओवैसी ने उच्चतम न्यायालय में इसकी वैधता को चुनौती दी है और इसे संवैधानिक उल्लंघन मानते हुए इसे निरस्त करने की मांग की है।

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