Edited By Anil dev,Updated: 07 Dec, 2018 11:08 AM
राजस्थान में हर पांच साल बाद सरकारें बदलने की बीते 25 साल से चली आ रही परंपरा इस बार भी बरकरार रहती दिख रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 13, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की 32, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की 75 और आदित्यनाथ योगी, रमन सिंह, शिवराज...
जयपुर (नवोदय टाइम्स): राजस्थान में हर पांच साल बाद सरकारें बदलने की बीते 25 साल से चली आ रही परंपरा इस बार भी बरकरार रहती दिख रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 13, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की 32, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की 75 और आदित्यनाथ योगी, रमन सिंह, शिवराज सिंह समेत बाकियों की 222 जनसभाएं तथा 15 रोड शो के बाद भी भाजपा जनमानस की धारणा बदल पाने में कामयाब नहीं दिख रही। हालांकि प्रचार में इतनी ताकत झोंकने से भाजपा मैदान में डटी है। लोगों की धारणा (परसेप्शन) न बदल पाने के पीछे कांग्रेस की माइक्रो प्लानिंग को मुख्य वजह कहा जा रहा है।
राजस्थान चुनाव के लिए कांग्रेस ने पहले ही भेज दी है टीम
जानकार बता रहे हैं कि राजस्थान चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपनी एक टीम काफी पहले ही राज्य में भेज दी थी। इस टीम ने गांव-गांव, घर-घर जाकर लोगों से उनकी इच्छा, अपेक्षा, सरकार के प्रति उनकी भावना और केंद्र व राज्य की सरकारी योजनाओं के प्रति लोगों की राय जानी। जो फीडबैक मिला, उसे दिल्ली पहुंचाया। इसी दौरान राज्य में कांग्रेस संगठन की स्थिति का भी आकलन किया गया। इसके बाद चुनाव रणनीतिकार से चर्चा कर अभियान की रूपरेखा तैयार की गई। छह महीने में कांग्रेस ने बूथ स्तर तक संगठन को सक्रिय कर लिया। फायदा यह हुआ कि वसुंधरा सरकार से विभिन्न वर्गों की नाराजगी को हवा देकर कांग्रेस प्रदेश भर में सत्ता विरोधी लहर खड़ा करने में सफल हुई। चाहे आनंदपाल एनकाउंटर से उपजी राजपूतों की नाराजगी रही हो या फिर बेरोजगारी से तंग युवाओं की आत्महत्या या किसानों की उपज की वाजिब कीमत न मिलना, कर्मचारियों से किए वादे पूरे न होने और गौशालाओं में गायों की मौत जैसे मुद्दे सुर्खियां बन गईं। इससे वसुंधरा सरकार के खिलाफ माहौल बनता चला गया।
चुनावी प्लानिंग में भाजपा ने कर दी थोड़ी देर
वरिष्ठ पत्रकार सुबोध परीक की मानें तो चुनावी प्लानिंग में भाजपा ने थोड़ी देर कर दी। लोगों में वसुंधरा राजे को लेकर जो नाराजगी बनी, उसे भांपने और काउंटर करने का प्रयास भी खास नहीं दिखता। वहीं वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मी पंत का मानना है कि लोगों के मन में जो बात घर कर गई है, उसे कैसे खत्म किया जा सकता है। वे पिछले दिनों हुए उपचुनावों और निकाय चुनावों का उदाहरण देते हैं, जिसमें सत्ता में रहते हुए भाजपा की बुरी हार हुई। वे यह भी मानते हैं कि कांग्रेस की इसमें कोई भूमिका नहीं, यह जनता का अपना मिजाज है। राजस्थान चुनाव को करीब से देख रहे चुनाव रणनीतिकार नरेश अरोड़ा इसका श्रेय कांग्रेस की माइक्रो प्लानिंग और जनसंवाद वाले अभियानों को देते हैं। नरेश के दावे के मुताबिक कांग्रेस के घोषणापत्र को तैयार कराने में उनकी अहम भूमिका रही। उनकी कंपनी डिजाइन्डबॉक्स ने राज्य के हर क्षेत्र के लोगों से सुझाव इक्ट्टा कर इसे तैयार कराया। इसी के साथ ही राजस्थान का रिपोर्ट कार्ड नाम से सोशल मीडिया पर अभियान चलाया, जो काफी सफल रहा।
कर्मचारियों का हर है वसुंधरा सरकार से नाराज
इस माइक्रो प्लानिंग को क्रियान्वित कराने में सबसे अहम भूमिका कांग्रेस के वार रूम का रहा, जहां से चुनावी रणनीति बनाकर बूथ स्तर तक क्रियान्वित किया जाता रहा है। इस वार रूम के इंचार्ज उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट बताते हैं कि उनकी टीम में 8-10 लोग हैं। सुबह 9 बजे से रात जब तक काम न खत्म हो जाए, वार रूम चलता रहता है। बूथ स्तर तक के संगठन के नेता और प्रत्याशी व पार्टी के पर्यवेक्षकों से जुड़े रहकर फीडबैक लेने और रणनीतियों को क्रियान्वित कराने का काम इस वार रूम का है। चुरु डिस्ट्रिक्ट के रहने वाले पुलिसकर्मी गंगा प्रसाद चौधरी भी यह मानते हैं कि राज्य में बदलाव की बयार है। वे बताते हैं, आम जनता के साथ कर्मचारियों का हर वर्ग वसुंधरा सरकार से नाराज है। कपड़ा व्यापारी सोहन नोटबंदी और जीएसटी से परेशान होते हुए भी मानते हैं कि केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार होनी चाहिए।