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बाली प्रतिपदा: ये है पूजा का शुभ मुहूर्त और कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Oct, 2019 08:16 AM

bali pratipada

सनत्कुमार संहिता के अनुसार वामनरूपधारी भगवान विष्णु जी ने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक 3 दिनों में दैत्यराज बलि से सम्पूर्ण लोक ले उसे पाताल जाने पर विवश किया था। सर्वस्व ले लेने के

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सनत्कुमार संहिता के अनुसार वामनरूपधारी भगवान विष्णु जी ने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक 3 दिनों में दैत्यराज बलि से सम्पूर्ण लोक ले उसे पाताल जाने पर विवश किया था। सर्वस्व ले लेने के पश्चात भगवान वामन ने बलि से इच्छित वर मांगने को कहा तो बलि ने लोक कल्याण के लिए यह वर मांगा कि ‘प्रभो! आपने मुझसे 3 दिन में तीनों लोक ग्रहण किए हैं। अत: मैं चाहता हूं कि उपर्युक्त 3 दिनों में जो प्राणी मृत्यु के देवता यमराज के उद्देश्य से दीपदान करे उसे यम-यातना का भागी न बनना पड़े और उसका घर कभी भी लक्ष्मी विहीन न हो। 

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तब श्रीमन नारायण ने राजा बलि के कथन को स्वीकार किया, तभी से दीपोत्सव पर्व मनाने का प्रचलन प्रारंभ हुआ। इस पर्व से युगों-युगों का इतिहास जुड़ा हुआ है।

दिवाली पूजा से अगले दिन कार्तिक प्रतिपदा के दिन बाली प्रतिपदा का उत्सव मनाया जाता है। इसे बाली पूजा भी कहा जाता है। आज के दिन गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव भी बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। ये पर्व भगवान कृष्ण और गिरिराज जी को समर्पित है। दानवराज बाली का आशीष पाने के लिए बाली पूजा करने का विधान है। दक्षिण भारत में राजा बाली की पूजा ओणम के दौरान किए जाने का विधान है। उत्तर भारत में बाली पूजा कार्तिक प्रतिपदा पर होती है।

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बाली पूजा का शुभ मुहूर्त
प्रतिपदा तिथि का प्रारम्भ 28, अक्टूबर को 9 बजकर 8 मिनट से होगा और समापन 29, अक्टूबर की सुबह 6 बजकर 13 मिनट पर होगा।

बलि पूजा का सायाह्न काल मुहूर्त- 3:26 से लेकर 5:40 तक है। इस दैरान पूजा करना सर्वोत्तम है।

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वामन अवतार की कथा
देव और दैत्यों के युद्ध में दैत्य पराजित होने लगे थे। पराजित दैत्य मृत एवं आहतों को लेकर अस्तांचल चले जाते हैं तथा दूसरी ओर दैत्याराज बलि इंद्र के वज्र से मृत हो जाते हैं। तब दैत्यगुरु शुक्राचार्य अपनी मृत संजीवनी विद्या से बलि और दूसरे दैत्यों को भी जीवित एवं स्वस्थ कर देते हैं। राजा बलि के लिए शुक्राचार्य एक यज्ञ का आयोजन करते हैं तथा अग्रि से दिव्य रथ, बाण, अभेद्य कवच पाते हैं। इससे असुरों की शक्ति में वृद्धि हो जाती है।

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तब इंद्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और वामन रूप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। दैत्यराज बलि द्वारा देवों को पराभव के बाद ऋषि कश्यप के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। तब विष्णु भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन माता अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण करते हैं। वामन रूप में भगवान एक पग में स्वर्गादि उध्र्व लोकों को और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लेते हैं। वामन के तीसरे पैर रखने के लिए स्थान कहां से लाएं? ऐसे में राजा बलि अपना सिर भगवान के आगे कर देते हैं और कहते हैं कि तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ठीक वैसा ही करते हैं और बलि को पाताल लोक में रहने का आदेश करतेे हैं। बलि के द्वारा वचन पालन करने पर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और दैत्यराज बलि को वर मांगने को कहते हैं। इसके बदले में बलि रात-दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लेता है। श्री विष्णु अपने वचन का पालन करते हुए पाताल लोक में राजा बलि का द्वारपाल बनना स्वीकार करते हैं।


 

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