Edited By Harman Kaur,Updated: 16 Aug, 2024 01:21 PM
बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने अपने एक फैसले में कहा कि स्पर्म और एग डोनर के पास बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होता। इसका मतलब है कि डोनर बच्चे के जैविक माता-पिता होने का दावा नहीं कर सकता। कोर्ट ने हाल ही में एक 42 वर्षीय महिला को उसकी 5...
नेशनल डेस्क: बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने अपने एक फैसले में कहा कि स्पर्म और एग डोनर के पास बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होता। इसका मतलब है कि डोनर बच्चे के जैविक माता-पिता होने का दावा नहीं कर सकता। कोर्ट ने हाल ही में एक 42 वर्षीय महिला को उसकी 5 साल की जुड़वा बेटियों से मिलने का अधिकार दिया है। कोर्ट ने महिला को शनिवार और रविवार को तीन घंटे बेटियों से मिलने की अनुमति दी है। साथ ही हफ्ते में दो दिन फोन पर बात करने की इजाजत भी दी है। यह व्यवस्था अस्थाई होगी।
महिला की बहन थी एग डोनर....
महिला ने कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उसने बताया कि उसकी बेटियां सरोगेसी के जरिए पैदा हुई हैं और अब उसके पति और उसकी छोटी बहन के पास रह रही हैं। छोटी बहन एग डोनर है। याचिकाकर्ता के पति ने दावा किया था कि उसकी साली एग डोनर है, इसलिए उसे जुड़वा बेटियों का कानूनी माता-पिता माना जाना चाहिए। पत्नी के अनुसार, उसे बेटियों का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन जस्टिस मिलिंद जाधव ने पति के इस तर्क को अस्वीकार कर दिया।
डोनर के पास नहीं होता बच्चे पर कानूनी अधिकार
कोर्ट के आदेश के अनुसार, मामले की जांच के लिए नियुक्त न्याय मित्र ने बताया कि महिला और उसके पति के बीच सरोगेसी समझौता 2018 में हुआ था, जबकि उस समय सरोगेसी पर 2021 का कानून लागू नहीं था। इसलिए, इस मामले को 2005 के आईसीएमआर दिशा-निर्देशों के अनुसार देखा जाएगा। जस्टिस जाधव ने कहा कि जुड़वा बेटियां याचिकाकर्ता और उसके पति की हैं, क्योंकि दिशा-निर्देशों के अनुसार, डोनर के पास बच्चे पर कानूनी अधिकार नहीं होता।