Edited By Mahima,Updated: 11 Jan, 2025 11:13 AM
दिल्ली चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की उम्मीदें अब मुफ्त योजनाओं पर टिकी हैं। इन योजनाओं के चलते सरकारों के सामने वित्तीय संकट पैदा हो रहा है। दिल्ली, महाराष्ट्र, हिमाचल और झारखंड जैसे राज्यों में मुफ्त योजनाओं के बोझ से राज्य की...
नेशनल डेस्क: दिल्ली विधानसभा चुनाव अब मुफ्त योजनाओं के मुद्दे पर गहराई से प्रभावित हो गया है। आम आदमी पार्टी (आप) द्वारा शुरू की गई मुफ्त योजनाओं को पहले "मुफ्त की रेवड़ी" और "मुफ्तखोरी" के रूप में आलोचना का सामना करना पड़ा था, लेकिन अब यह तरीका भाजपा और कांग्रेस जैसी अन्य पार्टियों द्वारा भी अपनाया जा रहा है। कुल मिलाकर दिल्ली के चुनावी दंगल में तीनों प्रमुख राजनीतिक दलों की उम्मीदें मुफ्त योजनाओं पर ही टिकी हुई हैं।
दिल्ली में मुफ्त बिजली और पानी देने के वादे ने आम आदमी पार्टी को सत्ता में बैठाया था, लेकिन अब इन मुफ्त योजनाओं का राज्य पर भारी आर्थिक बोझ पड़ रहा है। दिल्ली सरकार का बजट लगभग 76,000 करोड़ रुपये का है, जिसमें से 15-20% हिस्सा मुफ्त योजनाओं के लिए आवंटित किया जाता है। दिल्ली सरकार हर साल 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने के लिए लगभग 3,250 करोड़ रुपये खर्च करती है। इसके अलावा, मुफ्त पानी और अन्य सब्सिडी के कारण राज्य के खजाने पर भारी दबाव पड़ रहा है। यदि अरविंद केजरीवाल द्वारा महिला सम्मान योजना लागू की जाती है, तो इससे दिल्ली सरकार पर 4,560 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च हो सकता है।
इसके अलावा, भाजपा और कांग्रेस ने भी चुनावी वादों के तहत कई मुफ्त योजनाओं की घोषणा की है। भाजपा ने वाणिज्यिक उपभोक्ताओं के लिए भी बिजली सब्सिडी देने का वादा किया है, जबकि कांग्रेस ने 400 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने की योजना बनाई है। कांग्रेस ने इसके अतिरिक्त, प्रत्येक निवासी के लिए 25 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा और महिलाओं को 2,500 रुपये मासिक सहायता देने का वादा किया है। इन घोषणाओं के चलते दिल्ली सरकार पर वित्तीय दबाव बढ़ सकता है, क्योंकि मुफ्त योजनाओं पर भारी खर्च किया जा रहा है। दिल्ली सरकार के वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य को अगले कुछ वर्षों में भारी घाटे का सामना करना पड़ सकता है। अगर इन योजनाओं को पूरे राज्य में लागू किया गया, तो सरकार को इसके लिए और अधिक संसाधन जुटाने की आवश्यकता पड़ेगी।
दिल्ली के अलावा, अन्य राज्यों में भी मुफ्त योजनाओं के बोझ का सामना किया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर, महाराष्ट्र में भाजपा सरकार द्वारा लाड़की बहिन योजना को लेकर वित्तीय संकट का सामना किया जा रहा है। चुनाव से पहले इस योजना के तहत राज्य सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह देने का वादा किया था। बाद में, इस राशि को बढ़ाकर 2,100 रुपये करने का भी वादा किया गया। इसके लिए सरकार को हर साल लगभग 63,000 करोड़ रुपये चाहिए। पिछले साल के बजट में महाराष्ट्र सरकार ने इस योजना के लिए 46,000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, लेकिन अब राज्य सरकार को इस भारी बोझ को उठाने में कठिनाई हो रही है। राज्य के कृषि मंत्री ने हाल ही में कहा कि लाड़की बहिन योजना के कारण कृषि ऋण माफी योजना को लागू करने में दिक्कत आ रही है।
हिमाचल प्रदेश में भी सुक्खू सरकार ने मुफ्त योजनाओं का वादा किया था। राज्य सरकार ने महिलाओं को 1,500 रुपये और 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का वादा किया था। जब इन योजनाओं को लागू किया गया, तो राज्य की आर्थिक स्थिति बहुत बिगड़ गई। यहां तक कि 1 सितंबर 2024 को राज्य के 2.5 लाख सरकारी कर्मचारियों और 1.5 लाख पेंशनर्स के खातों में न तो सैलरी आई, न ही पेंशन। सरकार ने जरूरी योजनाओं पर खर्च करने में कठिनाई महसूस की और बाद में बिजली सब्सिडी छोड़ने की अपील की। अनुमान है कि 2024-25 में हिमाचल का वित्तीय घाटा 10,784 करोड़ रुपये तक जा सकता है।
झारखंड में भी हेमंत सोरेन सरकार ने मुफ्त योजनाओं के जरिए सत्ता हासिल की थी। यहां मइया सम्मान योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे की महिलाओं को 1,000 रुपये प्रति माह दिए जा रहे थे, जिसे बाद में बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया गया। इसके अलावा, राज्य सरकार ने मुफ्त बिजली देने की योजना भी लागू की है। लेकिन इन योजनाओं का बोझ राज्य के खजाने पर बढ़ रहा है। जनवरी 2025 में इस योजना के तहत महिलाओं के खातों में राशि ट्रांसफर करते समय राज्य खजाने पर एक महीने के लिए 1,415 करोड़ रुपये का बोझ पड़ा। यदि यह योजना जारी रहती है, तो राज्य सरकार को सालाना 16,980 करोड़ रुपये का खर्च उठाना पड़ सकता है। इसके अलावा, राज्य सरकार ने केंद्र से 1.36 लाख करोड़ रुपये का फंड मांगा है, जो राज्य को मिलनी वाली कोयला रॉयल्टी का हिस्सा है।
इसका साफ मतलब है कि मुफ्त योजनाओं का बोझ सरकारों के लिए भारी पड़ सकता है। हालांकि, अगर इन योजनाओं को रणनीतिक रूप से लागू किया जाए तो ये नकारात्मक नहीं हो सकती हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि महिलाओं को पेशेवर प्रशिक्षण देने के लिए वित्तीय सहायता दी जाए, तो यह एक सकारात्मक कदम हो सकता है। इसी तरह, बेरोजगारी भत्ते के बजाय मेधावी छात्रों को स्कॉलरशिप देने से समाज में नई प्रतिभा का विकास हो सकता है।