Edited By Anu Malhotra,Updated: 05 Feb, 2025 11:27 AM
कभी पश्चिम बंगाल की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले भाजपा नेता इंद्रजीत सिन्हा की तस्वीरें सामने आते ही हड़कंप मच गया। बीरभूम जिले के तारापीठ श्मशान घाट में वह बीमार अवस्था में भीख मांगते नजर आए, जिसके बाद यह मामला चर्चा में आ गया। ‘बुलेट दा’ के...
नेशनल डेस्क: कभी पश्चिम बंगाल की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले भाजपा नेता इंद्रजीत सिन्हा की तस्वीरें सामने आते ही हड़कंप मच गया। बीरभूम जिले के तारापीठ श्मशान घाट में वह बीमार अवस्था में भीख मांगते नजर आए, जिसके बाद यह मामला चर्चा में आ गया। ‘बुलेट दा’ के नाम से मशहूर सिन्हा की यह स्थिति देख भाजपा नेताओं ने उनकी मदद के लिए कदम उठाया।
पार्टी के पुराने नेता को इस हालत में देखकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय शिक्षा मंत्री सुकांत मजूमदार ने तत्काल बीरभूम के जिलाध्यक्ष को निर्देश दिया कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया जाए। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने भी उनकी स्थिति पर चिंता जताई और उनके इलाज की व्यवस्था करने के निर्देश दिए। इसके बाद सिन्हा को कोलकाता के एक बड़े निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया।
इंद्रजीत सिन्हा भाजपा के स्वास्थ्य सेवा प्रकोष्ठ के संयोजक रह चुके हैं। उन्होंने संकट के समय पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों को सरकारी अस्पतालों में भर्ती कराने और इलाज उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने करीब दस साल पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा था और स्वास्थ्य क्षेत्र में पार्टी की पकड़ मजबूत करने के लिए लगातार काम किया। तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष राहुल सिन्हा की सलाह पर वह राजनीति में सक्रिय हुए और अपनी मेहनत से पार्टी में पहचान बनाई।
पिछले दो साल से वह कैंसर से जूझ रहे हैं। शुरुआत में ट्यूमर का पता चला, लेकिन बाद में डॉक्टरों ने लाइलाज कैंसर की पुष्टि की। इलाज के लिए कोई ठोस व्यवस्था न होने के कारण वह दर-दर भटकने को मजबूर हो गए। उनके पास न रहने का ठिकाना था और न खाने के लिए साधन। हालात इतने बिगड़ गए कि उन्हें तारापीठ श्मशान घाट में भीख मांगकर गुजारा करना पड़ा।
इंद्रजीत सिन्हा अविवाहित हैं और उनके माता-पिता का पहले ही निधन हो चुका है। परिवार में कोई सहारा न होने के कारण वह पूरी तरह बेसहारा हो गए। दो महीने से अधिक समय तक उन्होंने श्मशान घाट में एक पेड़ के नीचे रातें बिताईं। इस घटना के सामने आने के बाद राजनीति में काम करने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं की सामाजिक सुरक्षा को लेकर सवाल उठने लगे हैं। पार्टी में रहते हुए उन्होंने दूसरों के इलाज और भलाई के लिए काम किया, लेकिन जब खुद मुश्किल में पड़े तो कोई उन्हें देखने वाला नहीं था।