Ajmer Sex Scandal : अश्लील तस्वीरें, ब्लैकमेलिंग और 100 से अधिक लड़कियों के साथ गैंगरेप से हिला पूरा शहर, दिल दहला देगी ये कहानी

Edited By Mahima,Updated: 20 Aug, 2024 05:02 PM

blackmailing and gang rape of more than 100 girls shook the whole city

राजस्थान के अजमेर में 32 साल पहले हुए सेक्स रैकेट और ब्लैकमेलिंग कांड के मामले में न्याय की एक नई झलक देखने को मिली है। इस मामले के बचे हुए 6 आरोपियों को हाल ही में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है, जिससे पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीद जगी है।

नेशनल डेस्क: राजस्थान के अजमेर में 32 साल पहले हुए सेक्स रैकेट और ब्लैकमेलिंग कांड के मामले में न्याय की एक नई झलक देखने को मिली है। इस मामले के बचे हुए 6 आरोपियों को हाल ही में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है, जिससे पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीद जगी है। यह मामला 1990 से 1992 के बीच उजागर हुआ था और इसमें कई स्थानीय प्रभावशाली लोग शामिल थे।

अजमेर सेक्स रैकेट का पर्दाफाश
साल 1990-1992 के दौरान अजमेर के सोफिया गर्ल्स स्कूल की छात्राओं के साथ यौन शोषण और ब्लैकमेलिंग का एक बड़ा मामला सामने आया था। दैनिक नवज्योति में प्रकाशित खबर ने इस कांड का पर्दाफाश किया, जिसमें बताया गया कि स्कूल की लड़कियों को फार्म हाउस पर बुलाकर उनके साथ रेप किया जाता था। इस दौरान उनकी अश्लील तस्वीरें खींच ली जाती थीं और फिर उन्हें ब्लैकमेल किया जाता था। उस वक्त क्या नेता, क्या पुलिस, क्या प्रशासन, क्या सरकार, क्या सामाजिक धार्मिक नगर सेवा संगठन से जुड़े लोग सब के सब सहम गए थे। सबके दिमाग में उस वक्त एक ही चीज थी कि यह कैसे हो गया? कौन हैं? किसके साथ हुआ? हैरानी की बात ये थी कि लड़कियों के घरवालों को भनक तक नहीं लगी। इन लड़कियों में सिर्फ आम घर की के साथ साथ AS, IPS की बेटियां भी शामिल थीं। इतना ही नहीं पीड़ित लड़कियों की संख्या जानकर तो आप सब हैरान हो जाएंगे। 17 से 20 साल की उम्र वाली इन लड़कियों की संख्या 100 से अधिक थी। 

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पत्रकार संतोष गुप्ता की रिपोर्टों ने किया उजागर
इस खबर के बाद अजमेर में हड़कंप मच गया। स्थानीय नेता, पुलिस और प्रशासन के लोग सहम गए और मामला दबाने की कोशिश की गई। पुलिस को डर था कि कहीं साम्प्रदायिक दंगे न हो जाएं, इसलिए उन्होंने कार्रवाई में देरी की। इसके बावजूद, पत्रकार संतोष गुप्ता की रिपोर्टों ने इस मामले को उजागर किया और लोगों को सड़क पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया।

आरोपियों की गिरफ्तारी और सजा
मामले की गंभीरता को देखते हुए CID CB ने जांच शुरू की और कई आरोपियों को गिरफ्तार किया। इनमें फारूक चिश्ती, नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती शामिल थे, जो कि यूथ कांग्रेस के नेता थे। अन्य आरोपियों में स्थानीय प्रभावशाली लोग और तकनीशियन भी शामिल थे। हालांकि इस कांड की शुरूआत में सबसे पहले फारूक चिश्ती नाम के एक शख्स ने पहले सोफिया स्कूल की एक लड़की को फंसाया था। उसके बाद उसके साथ रेप किया और इस दौरान उसने उसकी अश्लील तस्वीरें खींच ली। इसके बाद वो इन अश्लील तस्वीरों के जरिए फारूक ने उसे ब्लैकमेल करना शुरू किया। इस सबके चलते वह लड़की से उसके स्कूल की दूसरी लड़कियों को बहला-फुसला कर बुलवाने को कहता और उन के साथ भी आगे यही करता।  

रेप के वक्त खींची गई तस्वीरें
1990 से 1992 के बीच अजमेर के सोफिया गर्ल्स स्कूल की करीब 100 से ज्यादा लड़कियों के साथ यौन शोषण किया गया। यह सब घर वालों की नजरों के सामने चलता रहा और ये लड़कियां फार्म हाउसों पर जाती रही। इतना ही नहीं उनको लेने के लिए बाकायदा गाड़ियां आती थीं और घर छोड़ कर भी जाती थीं। रेप करते समय इन लड़कियों की तस्वीरें ले ली जाती और बाद में डराया-धमकाया जाता। स्कूल की इन लड़कियों के साथ रेप करने में नेता, पुलिस, अधिकारी भी शामिल थे।

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फारूक चिश्ती: रैकेट का मास्टरमाइंड
इस सेक्स रैकेट का मास्टरमाइंड फारूक चिश्ती था, जो यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष था। उसके साथ नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती भी शामिल थे। इनकी राजनीतिक और धार्मिक पहुंच के चलते पुलिस और प्रशासन ने कार्रवाई करने में कतराई। रेप की शिकार लड़कियां ज्यादातर हिंदू परिवारों से थीं, जबकि आरोपी मुस्लिम समुदाय से थे, जिससे साम्प्रदायिक दंगे भड़कने का डर था।

पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता
मामले की जानकारी होते हुए भी पुलिस ने कार्रवाई में देरी की क्योंकि उन्हें साम्प्रदायिक दंगे फैलने का डर था। धीरे-धीरे, पूरे शहर में इस स्कैंडल के बारे में जानकारी फैल गई और लड़कियों की अश्लील तस्वीरें भी वायरल हो गईं। इस मामले में शामिल लोगों ने लड़कियों को ब्लैकमेल करके उनका यौन शोषण किया। 

खुदकुशी और प्रेस की भूमिका
इस मामले में समाज की बेइज्जती से परेशान होकर 6-7 लड़कियों ने खुदकुशी कर ली। इसके बाद दैनिक नवज्योति के पत्रकार संतोष गुप्ता ने इस केस की सीरीज छापनी शुरू की। उनकी रिपोर्टों ने पुलिस और प्रशासन पर दबाव डाला। खबरों ने जनता को सड़कों पर उतरने और अजमेर बंद का ऐलान करने के लिए मजबूर किया।

केस की दबाने की कोशिश और सीआईडी सीबी की एंट्री
राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे सीआईडी सीबी को सौंप दिया। 30 मई 1992 को सीआईडी सीबी ने जांच शुरू की और कई आरोपी गिरफ्तार किए। सीनियर आईपीएस अधिकारी एन.के पाटनी की अगुवाई में मामले की जांच तेज की गई।

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आरोपियों की गिरफ्तारी और सजा
सीआईडी सीबी की जांच के बाद फारूक चिश्ती, नफीस चिश्ती, अनवर चिश्ती और अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। स्थानीय अदालत ने आठ लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई, लेकिन कुछ आरोपी जमानत पर बाहर आ गए या खुदकुशी कर गए। 19 साल बाद, एक आरोपी को पकड़ा गया, लेकिन वह भी जमानत पर रिहा हो गया।

बता दें कि अब, 32 साल बाद, स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ने बाकी बचे 6 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। इनमें नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, सोहिल गणी, और सैयद जमीर हुसैन शामिल हैं। एक आरोपी को दिल्ली से लाया जा रहा है। इस तरह, 1992 के इस बड़े सेक्स रैकेट मामले में अब तक 18 आरोपियों में से 9 को सजा सुनाई जा चुकी है, जबकि एक आरोपी अन्य मामले में जेल में है, एक ने आत्महत्या कर ली, और एक फरार है।

 

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