Edited By Tanuja,Updated: 13 Jan, 2025 03:44 PM
एक अध्ययन में ब्रिटेन की काली करतूतों का रोंगटे खड़े करने वाला खुलासा हुआ है। ब्रिटिश उपनिवेशवाद 1880 से 1920 के बीच भारत में लगभग 165 मिलियन मौतों का कारण बना, और इसने भारत से खरबों डॉलर की संपत्ति भी लूटी।...
London: एक अध्ययन में ब्रिटेन की काली करतूतों का रोंगटे खड़े करने वाला खुलासा हुआ है। ब्रिटिश उपनिवेशवाद 1880 से 1920 के बीच भारत में लगभग 165 मिलियन मौतों का कारण बना, और इसने भारत से खरबों डॉलर की संपत्ति भी लूटी। एक प्रमुख अध्ययन में सामने आया यह आंकड़ा ब्रिटिश उपनिवेशवाद के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई भयंकर मानव त्रासदी को दर्शाता है। इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि यूरोपीय साम्राज्यवादी नरसंहारों ने Adolf Hitler और Benito Mussolini जैसे फासीवादी नेताओं को प्रेरित किया, जिनके शासन में भी इसी प्रकार के नरसंहार किए गए। आर्थिक मानवशास्त्री जेसन हिकल और उनके सहलेखक डायलन सुलेवान ने "कैपिटलिज़्म और अत्यधिक गरीबी" नामक एक शोध पत्र में यह निष्कर्ष निकाला कि ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत में अपने शासन के दौरान लगभग 165 मिलियन अतिरिक्त मौतें करवाईं।
"Over roughly 200 years, the East India Company and the British Raj siphoned out at least £9.2 trillion (or $44.6 trillion)... To put that sum in context, Britain’s 2018 GDP estimate is about $3 trillion" https://t.co/1iyV3oXrjJ
— AnnieZaidi (@anniezaidi) November 19, 2018
यह आंकड़ा नाज़ी होलोकॉस्ट सहित दोनों विश्व युद्धों की मृतकों की संख्या से भी कहीं अधिक है। इन शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में यह उल्लेख किया कि भारतीय जीवन प्रत्याशा 1950 तक ब्रिटिश उपनिवेशवाद के प्रभाव से ठीक से बढ़ी भी नहीं। भारत में उपनिवेशी शासन के दौरान भुखमरी, गरीबी और मृत्यु दर में भयंकर वृद्धि हुई। 1810 में जहां भारत में 23% लोग गरीब थे, वहीं 20वीं सदी के मध्य तक यह आंकड़ा 50% से ऊपर पहुंच गया। इसके अलावा, वास्तविक मजदूरी में गिरावट और अकालों की आवृत्ति में भी वृद्धि हुई। ब्रिटिश साम्राज्य के शासन का यह समय (1880 से 1920) भारत के लिए सबसे काला दौर था। इन वर्षों में भारत में मृत्यु दर काफी बढ़ी, और जीवन प्रत्याशा में गिरावट आई। 1880 में भारतीयों की मृत्यु दर 37.2 प्रति 1,000 थी, जबकि 1910 के दशक में यह बढ़कर 44.2 प्रति 1,000 हो गई। इसी अवधि के दौरान भारतीय जीवन प्रत्याशा 26.7 वर्ष से घटकर 21.9 वर्ष रह गई। ब्रिटिश उपनिवेशी शासन के दौरान भारत में न केवल मृत्यु दर में वृद्धि हुई, बल्कि ब्रिटिश सरकार ने जानबूझकर कई बार भोजन की कमी पैदा की, जिससे अकाल और भुखमरी की स्थिति बनी।
"Over roughly 200 years, the East India Company and the British Raj siphoned out at least £9.2 trillion (or $44.6 trillion)... To put that sum in context, Britain’s 2018 GDP estimate is about $3 trillion" https://t.co/1iyV3oXrjJ
— AnnieZaidi (@anniezaidi) November 19, 2018
1943 में बंगाल में हुए अकाल ने 30 लाख से ज्यादा भारतीयों की जान ले ली। ब्रिटिश सरकार ने खाद्यान्न का निर्यात जारी रखा और भारतीयों को खाद्य आपूर्ति से वंचित किया। यह अकाल पूरी तरह से ब्रिटिश नीतियों के कारण हुआ, खासकर ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल के आदेशों के बाद। चर्चिल खुद भारतीयों से घृणा करते थे और उन्होंने एक बार कहा था, "मैं भारतीयों से नफरत करता हूं, वे एक घिनौने लोग हैं।" उपनिवेशवाद के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत से अरबों डॉलर की संपत्ति लूटी। भारतीय अर्थशास्त्री उषा पट्नायक ने अनुमान लगाया है कि ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत से $45 ट्रिलियन की संपत्ति लूटी।
यह लूट मुख्य रूप से व्यापार और औद्योगिकीकरण के दौरान हुई, जब भारतीय संसाधनों का शोषण कर ब्रिटेन में समृद्धि का निर्माण हुआ। इस लूट के कारण भारत में विकास की गति ठप हो गई, और जनता की जीवन स्तर में गिरावट आई। ब्रिटिश साम्राज्य के नरसंहारों ने सीधे तौर पर हिटलर और मुसोलिनी जैसे फासीवादी नेताओं को प्रेरित किया। ये नेता यूरोपीय साम्राज्यवादी और उपनिवेशवादी विचारधाराओं से प्रभावित थे। यह देखा गया कि यूरोप में हुए साम्राज्यवादी अपराधों ने फासीवाद को जन्म दिया और इन नेताओं ने अपने देशों में भी बड़े पैमाने पर हिंसा और नरसंहार किए।