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सगी बहन के साथ लिव इन में रह रहा था भाई ! जीजा के खिलाफ किया मुकदमा

Edited By Mahima,Updated: 06 Mar, 2025 12:43 PM

brother was living in live in relationship with real sister

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अजीब मामले में सगी बहन के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए भाई को फटकारा और उसके जीजा के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि संविधान किसी को विवाहित महिला के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने का अधिकार नहीं देता,...

नेशनल डेस्क: राजस्थान हाईकोर्ट में मंगलवार, 5 मार्च को एक बेहद अजीब और हैरान करने वाला मामला सामने आया। एक व्यक्ति ने अपनी सगी बहन के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद अपने बहनोई (जीजा) के खिलाफ बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता का आरोप था कि उसका बहनोई उसकी बहन को अवैध रूप से घर में बंद कर के रखा है और उसे उसकी मर्जी के खिलाफ वहां रखा हुआ है। इस याचिका में भाई ने मांग की थी कि उसे अपनी बहन के साथ रहने की अनुमति दी जाए और बहन को उसके जीजा के पास से छुड़ाया जाए।

मामला जब राजस्थान हाईकोर्ट के सामने आया तो जज भी इस मामले को सुनकर हैरान रह गए। जस्टिस चंद्रशेखर और जस्टिस मदन गोपाल व्यास की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि किसी व्यक्ति को विवाहित महिला के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, और खासकर जब वह महिला उस व्यक्ति की सगी बहन हो। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि नैतिकता को नजरअंदाज करना और अनैतिक कार्यों को कानूनी रूप से समर्थन देना समाज के लिए हानिकारक हो सकता है।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया, जिसे उसे चार सप्ताह के अंदर जोधपुर स्थित राजकीय अंध विद्यालय में जमा करना होगा। इस फैसले में अदालत ने संविधान के अधिकारों का सही तरीके से उपयोग करने की बात की और यह भी कहा कि कोई भी व्यक्ति संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का दुरुपयोग नहीं कर सकता। अदालत ने इस मामले को गंभीरता से लिया और समाज में नैतिकता, जिम्मेदारी और सही आचार विचार को बनाए रखने की बात की।

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसके बहनोई ने उसकी विवाहित बहन को अवैध रूप से घर में बंद कर रखा है, और उसे बाहर जाने से रोका जा रहा है। यह आरोप अदालत में सुनते हुए जज ने कहा कि इस तरह के मामलों में अगर कोर्ट ने याचिका मंजूर की तो यह समाज में नैतिकता के उल्लंघन की ओर इशारा करेगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि भारतीय संविधान किसी को भी अनैतिक कृत्य करने का अधिकार नहीं देता, और ऐसे मामलों में फैसला लेते समय नैतिक जिम्मेदारियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 

हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए यह भी कहा कि अगर इस प्रकार की याचिकाओं को स्वीकार किया गया, तो इससे समाज में और भी अधिक अनैतिकता का प्रचार होगा, जो कि किसी भी परिस्थिति में उचित नहीं है। कोर्ट ने यह फैसला दिया कि एक विवाहित महिला को अपने पति से अलग होकर किसी अन्य पुरुष के साथ रहने का अधिकार नहीं है, और यह किसी भी स्थिति में कानून के तहत सही नहीं ठहराया जा सकता। इस मामले में अदालत ने समाज में नैतिकता के मूल्य और जिम्मेदारियों की अहमियत को रेखांकित किया। न्यायालय ने कहा कि हर व्यक्ति को संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का दुरुपयोग करने से बचना चाहिए और समाज में अपनी नैतिक जिम्मेदारी को निभाना चाहिए।

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