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नई कर व्यवस्था की बढ़ी लोकप्रियता, क्या पुरानी व्यवस्था अब हो जाएगी खत्म?

Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 01 Feb, 2025 05:32 PM

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2025 में कई महत्वपूर्ण बदलावों की घोषणा की है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या पुरानी कर व्यवस्था को खत्म किया जाएगा? इस बार के बजट में वित्त मंत्री ने पुरानी कर व्यवस्था का कोई जिक्र नहीं किया और बजट...

 

नेशनल डेस्क: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2025 में कई महत्वपूर्ण बदलावों की घोषणा की है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या पुरानी कर व्यवस्था को खत्म किया जाएगा? इस बार के बजट में वित्त मंत्री ने पुरानी कर व्यवस्था का कोई जिक्र नहीं किया और बजट दस्तावेज भी इस पर चुप है। हालांकि, दस्तावेज में साफ तौर पर यह बताया गया कि संशोधित कर स्लैब केवल उन करदाताओं के लिए लागू होते हैं, जिन्होंने नई कर व्यवस्था को अपनाया है। इस कदम के बाद अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या जल्द ही पुरानी कर व्यवस्था पूरी तरह से खत्म हो जाएगी।

पुरानी कर व्यवस्था क्या है?

पुरानी कर व्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जिसमें करदाताओं को विभिन्न कर छूटों का लाभ लेने का मौका मिलता है। इनमें हाउस रेंट अलाउंस (HRA), जीवन बीमा प्रीमियम, पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF), और मेडिकल बीमा जैसी चीजों पर छूट मिलती है। पुरानी व्यवस्था में, करदाता इन सभी छूटों का दावा कर सकते हैं, जिससे उनकी कर योग्य आय घटती है और फिर उस पर कर लगाया जाता है।

यह व्यवस्था अधिकतर उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो लंबी अवधि के लिए निवेश करने की योजना बनाते हैं और जो टैक्स बचाने के लिए विभिन्न प्रकार की छूटों का फायदा उठाते हैं। उदाहरण के लिए, 2.5 लाख रुपये तक की आय पर कोई कर नहीं होता, 2.5 लाख से 5 लाख तक 5 प्रतिशत कर लगता है, और 5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक की आय पर 20 प्रतिशत कर लगाया जाता है।

नई कर व्यवस्था का लाभ

वहीं, 2020 में मोदी सरकार ने नई कर व्यवस्था की शुरुआत की थी, जिसमें अधिकतर छूटों को हटा दिया गया था, लेकिन कर स्लैब को संशोधित किया गया था। इस व्यवस्था में करदाता को किसी प्रकार की छूट का लाभ नहीं मिलता, लेकिन कर स्लैब में रियायतें दी गई हैं। नए बजट में वित्त मंत्री ने मध्यम आय वर्ग के करदाताओं के लिए और अधिक छूट की घोषणा की है, जिससे नई कर व्यवस्था को और आकर्षक बनाया गया है।

क्या पुरानी व्यवस्था अब खत्म हो जाएगी?

नई कर व्यवस्था में कर स्लैब को और अधिक लचीला बनाया गया है, और अब पुराने कर स्लैब को खत्म करने की अटकलें तेज हो गई हैं। पिछले साल अगस्त में सरकार ने कहा था कि 2023-24 में दाखिल किए गए आयकर रिटर्न्स में से 72 प्रतिशत ने नई व्यवस्था को अपनाया, जबकि बाकी 28 प्रतिशत ने पुरानी व्यवस्था को चुना है। यह आंकड़ा यह संकेत देता है कि धीरे-धीरे लोग पुरानी व्यवस्था से नई व्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं।

अब बजट में नई कर व्यवस्था के तहत अधिक छूट और रियायतें मिलने के बाद, यह संभावना जताई जा रही है कि बहुत जल्द पुरानी कर व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है। खासकर क्योंकि सरकार ने अब नई व्यवस्था को डिफ़ॉल्ट बना दिया है और करदाताओं को पुरानी व्यवस्था चुनने के लिए विशेष रूप से आवेदन करना होगा।

पुरानी और नई कर व्यवस्था में तुलना

आइए समझते हैं कि दोनों व्यवस्थाओं में कितना अंतर है। मान लीजिए आपकी सालाना आय 16 लाख रुपये है।

नई व्यवस्था में
16 लाख रुपये में 4 लाख रुपये तक कर नहीं लगेगा, 4 लाख रुपये से 8 लाख रुपये के बीच 5 प्रतिशत यानी 20,000 रुपये का टैक्स, 8 लाख से 12 लाख रुपये के स्लैब में 10 प्रतिशत यानी 40,000 रुपये का टैक्स और 12 लाख से 16 लाख रुपये के स्लैब में 15 प्रतिशत यानी 60,000 रुपये का टैक्स लगेगा। कुल मिलाकर आपको 1,20,000 रुपये का टैक्स देना होगा, जो पिछले बजट के मुकाबले 50,000 रुपये कम है।

पुरानी व्यवस्था में
अगर आप पुरानी व्यवस्था के तहत 4 लाख रुपये की छूट का दावा करते हैं, तो आपकी कर योग्य आय 12 लाख रुपये होगी और उस पर पुरानी स्लैब के हिसाब से 1,72,500 रुपये का टैक्स लगेगा। यह टैक्स नई व्यवस्था के मुकाबले 52,000 रुपये अधिक है।

क्या आपको पुरानी से नई व्यवस्था में बदलाव करना चाहिए?

यह सवाल आपके व्यक्तिगत वित्तीय स्थिति और आपके द्वारा दावेदार छूटों पर निर्भर करेगा। अगर आप पुरानी व्यवस्था में छूट का पूरा लाभ उठा रहे हैं, तो नई व्यवस्था आपके लिए उतनी फायदेमंद नहीं हो सकती। हालांकि, नई व्यवस्था में टैक्स स्लैब को अधिक लचीला बनाया गया है, और करदाता को अधिक लचीलापन मिलेगा।

नई व्यवस्था के फायदे और नुकसान

नई कर व्यवस्था में आपको किसी प्रकार की छूट का दावा नहीं करना होगा, जिससे आपको अधिक लचीलापन मिलेगा। आप अपने पैसे को कहीं भी निवेश करने में सक्षम होंगे और इसका फायदा यह होगा कि सरकार के पास ब्याज के भुगतान का बोझ नहीं होगा। हालांकि, इसका एक नकारात्मक पहलू यह हो सकता है कि इससे सामाजिक सुरक्षा उपायों, जैसे मेडिक्लेम या PPF जैसी बचत योजनाओं में निवेश करने की प्रवृत्ति घट सकती है, जो लंबी अवधि के लिए सुरक्षा प्रदान करती हैं।

 

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