Edited By Harman Kaur,Updated: 17 Apr, 2025 06:33 PM
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम निर्णय दिया है कि सास भी अपनी बहू के खिलाफ घरेलू हिंसा (महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 ) के तहत मामला दर्ज करा सकती है।
नेशनल डेस्क: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम निर्णय दिया है कि सास भी अपनी बहू के खिलाफ घरेलू हिंसा (महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 ) के तहत मामला दर्ज करा सकती है।
जानिए पूरा मामला क्या है?
लखनऊ में रहने वाली एक महिला ने कोर्ट में शिकायत की थी कि उसकी बहू उसे मानसिक रूप से परेशान कर रही है। शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया कि बहू अपने पति (शिकायतकर्ता का बेटा) पर दबाव डाल रही है कि वह अपने माता-पिता (यानि सास-ससुर) को छोड़कर अलग जाकर उसके मायके वालों के साथ रहे। सास ने यह भी कहा कि बहू आए दिन झगड़ा करती है, गाली-गलौज करती है और झूठे केस में फंसाने की धमकी देती है। इस पर लखनऊ के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने बहू और उसके परिवार वालों को समन जारी किया था।
हाई कोर्ट में क्या हुआ?
बहू और उसके रिश्तेदारों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर समन को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि यह शिकायत झूठी है और सिर्फ इसलिए दर्ज कराई गई है, क्योंकि बहू ने पहले ही अपने ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा और दहेज का केस कर रखा है। परंतु, हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने यह स्पष्ट किया कि- 2005 के अधिनियम की धारा 12 के तहत कोई भी महिला, जो साझा घर में घरेलू संबंध में रह रही हो और किसी अन्य सदस्य से परेशान हो, शिकायत दर्ज कर सकती है। यह जरूरी नहीं कि पीड़ित महिला केवल बहू ही हो, सास भी हो सकती है यदि वह घरेलू हिंसा का शिकार हो। इसलिए ट्रायल कोर्ट द्वारा समन जारी करने का फैसला सही था।
कोर्ट ने क्यों कहा कि सास को भी अधिकार है?
कोर्ट ने कहा कि जब कोई महिला (चाहे सास हो या बहू) किसी साझा घर में घरेलू संबंध के तहत रहती है और उसे शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है, तो उसे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत राहत पाने का पूरा अधिकार है।