Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 18 Jan, 2025 07:00 PM
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपांकर दत्ता ने हाल ही में दिल्ली में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (JGU) में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम के दौरान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और कानून के संबंध में अपनी राय साझा की। उन्होंने एआई के कानूनी पेशे में बढ़ते...
नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपांकर दत्ता ने हाल ही में दिल्ली में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (JGU) में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम के दौरान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और कानून के संबंध में अपनी राय साझा की। उन्होंने एआई के कानूनी पेशे में बढ़ते प्रभाव पर अपनी आपत्ति जताते हुए कहा कि वर्तमान में एआई वकीलों और जजों की जगह नहीं ले सकता। यह बयान इस बहस को और भी महत्वपूर्ण बना देता है, जब हम भविष्य में एआई की भूमिका और कानूनी जगत में इसकी प्रभावी उपस्थिति के बारे में सोचते हैं।
एआई एक शक्तिशाली उपकरण पर मानवता की जगह नहीं
जस्टिस दत्ता का मानना है कि एआई के पास ऐसी अद्भुत क्षमता है, जो शिक्षा, कानून और न्याय में सकारात्मक बदलाव ला सकती है, लेकिन इसका व्यापक उपयोग तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि इसे पूरी जिम्मेदारी के साथ परखा और आलोचना न किया जाए। उनका कहना था, "AI को इंसानों की जगह लेना संभव नहीं है, खासकर वकीलों और जजों की। यह एक गलत धारणा हो सकती है।"
उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे वकील अपने मुवक्किल के केस में अंतर्दृष्टि प्रदान करने और सूचित निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका यह भी कहना था कि एआई, मनुष्यों की तरह सोचने और संवाद करने की क्षमता नहीं रखता। खासतौर पर भारत जैसे बहुसांस्कृतिक और विविधतापूर्ण देश में, मुवक्किलों को एक ऐसा वकील चाहिए होता है, जो उनकी भाषा और संस्कृति को समझ सके।
संवेदनशील मामलों में एआई का कोई स्थान नहीं
जस्टिस दत्ता ने यह भी स्पष्ट किया कि कानूनी मामलों में संवेदनशीलता महत्वपूर्ण होती है, और एआई इसमें सहायक साबित नहीं हो सकता। "कानून में संचार की शक्ति और मनुष्यों की अंतर्दृष्टि आवश्यक होती है," उन्होंने कहा। अदालतों में, जजों को हर मामले के बारे में गहरी समझ और सूक्ष्म दृष्टिकोण की जरूरत होती है, जो कि एआई के लिए संभव नहीं है।
इस प्रकार, जस्टिस दत्ता का मानना है कि हालांकि एआई न्यायाधीशों को अनुसंधान और विश्लेषण में मदद कर सकता है, यह इंसानी मूल्यों, भावनाओं और कानूनी दृष्टिकोण को पूरी तरह से समझने में असमर्थ रहेगा।
एआई के फायदे और खामियां
जस्टिस दत्ता ने यह भी माना कि एआई का सही उपयोग कानूनी प्रणाली की दक्षता और गति को बढ़ा सकता है। एआई न्यायपालिका के लिए एक शक्तिशाली उपकरण बन सकता है, जो मामलों को जल्दी निपटाने, उनका वर्गीकरण करने और आंकड़ों के आधार पर निष्कर्ष तक पहुंचने में मदद कर सकता है। लेकिन इसके बावजूद, उन्होंने इस तकनीक के सीमित उपयोग की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि यह कानूनी प्रक्रिया में कोई खामी न पैदा करे।
सॉलिसिटर जनरल और अन्य विशेषज्ञों की चिंताएं
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी एआई के बढ़ते प्रभाव पर अपनी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि एआई को केवल लॉजिस्टिक समस्याओं को हल करने तक ही सीमित रखना चाहिए, जैसे कि मामलों की संख्या और उनके तेजी से निपटारे के तरीकों का विकास। मेहता ने यह भी कहा कि एआई के एल्गोरिदम को नियंत्रित करने के लिए एक ठोस नीति बनानी चाहिए, ताकि यह हमारी मर्जी के खिलाफ न हो जाए। इस अवसर पर केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमानी, और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी भी मौजूद थे।