Edited By Mahima,Updated: 05 Nov, 2024 11:31 AM
सुप्रीम कोर्ट ने 5 नवंबर को फैसला सुनाया कि सरकार कुछ विशेष परिस्थितियों में निजी संपत्तियों का अधिग्रहण और पुनर्वितरण कर सकती है, लेकिन यह केवल तब होगा जब संपत्ति का सार्वजनिक हित में उपयोग जरूरी हो। कोर्ट ने अनुच्छेद 39(बी) और 31(सी) के तहत सरकार...
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 5 नवंबर को एक अहम फैसला सुनाया है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(बी) और अनुच्छेद 31(सी) के संदर्भ में निजी संपत्ति के अधिग्रहण से संबंधित है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सरकार को कुछ विशेष परिस्थितियों में निजी संपत्तियों का अधिग्रहण कर उनका पुनर्वितरण करने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार केवल तब लागू होगा जब सार्वजनिक हित में यह जरूरी माना जाए।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ में सुनवाई के बाद आया, जिसमें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने फैसले की अगुवाई की। इस मामले की सुनवाई 1 मई 2024 को शुरू हुई थी और उसके बाद यह फैसला सुरक्षित रखा गया था। मंगलवार को, CJI चंद्रचूड़ ने बहुमत के फैसले में यह बात स्पष्ट की कि निजी संपत्तियों का सामुदायिक संपत्ति के रूप में पुनर्वितरण केवल तभी किया जा सकता है जब यह जनहित में हो और यह संपत्ति की स्थिति, उसकी उपयोगिता और सार्वजनिक आवश्यकता पर निर्भर करेगा। कि किसी भी निर्णय से किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो।
क्या है अनुच्छेद 39(बी) और 31(सी)?
अनुच्छेद 39(बी) भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो यह निर्धारित करता है कि किसी भी नीति को लागू करते वक्त सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि संपत्ति का वितरण सार्वजनिक हित में हो। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संपत्ति का वितरण उस तरीके से हो जो समाज के बड़े हिस्से के लाभ में हो, न कि केवल कुछ विशेष वर्गों के लिए। अनुच्छेद 31(सी) का उद्देश्य नीति निदेशक सिद्धांतों (Directive Principles of State Policy) को लागू करने में मदद करना है। यह अनुच्छेद यह बताता है कि यदि कोई कानून नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुसार बनाया गया है, तो उसे संविधान के मूल अधिकारों (Fundamental Rights) के खिलाफ होने पर भी न्यायिक समीक्षा से मुक्त किया जा सकता है। यह अनुच्छेद यह सुनिश्चित करता है कि सरकार अपने विकासात्मक योजनाओं को लागू करने के लिए आवश्यक कानून बना सके, जो संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप हों।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में यह स्पष्ट किया कि सरकारी नीतियों के तहत यदि किसी निजी संपत्ति का अधिग्रहण जनहित में किया जाए, तो इसे संविधान के नीति निदेशक सिद्धांतों के तहत उचित ठहराया जा सकता है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं माना जा सकता। केवल वही संपत्तियाँ जिन्हें सार्वजनिक हित में उपयोगी माना जाएगा, उनका ही पुनर्वितरण किया जा सकता है। CJI चंद्रचूड़ ने कहा, "हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति की तरह नहीं देखा जा सकता है। संपत्ति की स्थिति, सार्वजनिक उपयोगिता, और उसकी आवश्यकता जैसे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही उसे सामुदायिक संपत्ति माना जा सकता है।" उन्होंने यह भी कहा कि पुराने न्यायिक फैसले जो एक विशेष आर्थिक विचारधारा पर आधारित थे, अब बदल चुके समय और स्थितियों के अनुरूप नहीं हैं। न्यायालय ने यह निर्णय लिया कि आज के आर्थिक ढांचे में निजी क्षेत्र की अहम भूमिका है। इसलिए निजी संपत्तियों को सामुदायिक संपत्ति मानने का प्रश्न तब उठेगा, जब उनका सार्वजनिक हित में पुनर्वितरण जरूरी हो।
सरकार को क्या अधिकार मिलेगा?
इस फैसले के बाद सरकार को यह अधिकार मिलेगा कि वह कुछ विशेष परिस्थितियों में निजी संपत्तियों का अधिग्रहण करके उनका वितरण कर सकती है। हालांकि, यह निर्णय केवल उन मामलों में लागू होगा जहां सार्वजनिक उपयोगिता के लिए संपत्ति की आवश्यकता हो। उदाहरण के लिए, अगर किसी क्षेत्र में भूमि की कमी हो और यह भूमि सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए आवश्यक हो, तो उस संपत्ति का अधिग्रहण किया जा सकता है। लेकिन, यह अधिकार केवल तब होगा जब संपत्ति के सार्वजनिक उपयोगिता की पुष्टि हो और अदालत इस बात को सही ठहराए कि इसका पुनर्वितरण जनहित में है।अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया में केवल वही संपत्तियाँ शामिल होंगी, जिनकी आवश्यकता समाज की भलाई के लिए होगी।
क्या यह फैसला सभी निजी संपत्तियों पर लागू होगा?
यह फैसला सभी निजी संपत्तियों पर लागू नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि सभी निजी संपत्तियाँ स्वतः सामुदायिक संपत्ति के रूप में पुनर्वितरित नहीं की जा सकतीं। केवल उन्हीं संपत्तियों का पुनर्वितरण किया जा सकता है जो सार्वजनिक उपयोग के लिए जरूरी हैं और जिनके बिना समाज की बड़ी परियोजनाओं का कार्य नहीं चल सकता। मुख्य बिंदु यह है कि संपत्ति के अधिकार की रक्षा और सार्वजनिक हित का संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
आर्थिक ढांचे में बदलाव और निजी क्षेत्र की भूमिका
CJI चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में यह भी कहा कि वर्तमान समय में आर्थिक ढांचा पूरी तरह से बदल चुका है। आज के दौर में, निजी क्षेत्र की भूमिका बहुत अहम हो गई है। इसलिए, हर मामले में यह देखना होगा कि निजी संपत्ति का जनहित में पुनर्वितरण समाज के लाभ में है या नहीं। इससे यह संकेत मिलता है कि सरकार के पास भविष्य में कुछ विशेष परिस्थितियों में निजी संपत्तियों को अधिग्रहित करने का अधिकार होगा, लेकिन यह अधिकार विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत में निजी संपत्तियों के अधिग्रहण और पुनर्वितरण के संबंध में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
इस फैसले से सरकार को जनहित के लिए कुछ विशेष संपत्तियों का अधिग्रहण करने का अधिकार मिलता है, लेकिन यह अधिकार केवल तब होगा जब संपत्ति की स्थिति, आवश्यकता और सार्वजनिक उपयोगिता का सही मूल्यांकन किया जाए। इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया है कि सरकार को जनहित में संपत्तियों के पुनर्वितरण की प्रक्रिया के दौरान संविधान के नीति निदेशक सिद्धांतों का पालन करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी निर्णय से किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो। यह फैसला यह भी दर्शाता है कि सरकारी नीतियाँ अब समाज के विकास के लिए अधिक उत्तरदायी और उद्देश्यपूर्ण तरीके से बनाई जा रही हैं, जिनमें निजी क्षेत्र की भूमिका और उसकी संपत्तियों का उपयोग भी शामिल होगा।